उस दिन यानि 22 जुलाई 2016 को हजरतगंज लखनऊ का माहौल बड़ा ही गहमा गहमी भरा रहा l मैंने स्वयं इस भीड़ को देखा, और उस भीड़ से आने वाली तेज़ आवाजों को भी सुना l ऐसा लग रहा था जैसे ये आवाजें चीख चीख कर अपने मालिक के दर्द को कम करने की कोशिश कर रही हो l नीला झंडा लिए हजारों समर्थक दयाशंकर सिंह के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे । किसी ने ठीक ही कहा है कि जाति का अभिमान/दम्भ दब सकता है, लेकिन मिट नहीं सकता। इतनी भारी भीड़ में से कुछ उपद्रियों की हरकतें देखने में मुझे कोई मुश्किल नही हुई l बसपा समर्थकों का हुजूम और नारों की तेज़ होतीं आवाज़े एक भयानक माहौल पैदा कर रही थी बीच बीच में अचानक कोई कह देता कि दयाशंकर अपनी बेटी को पेश करो तो समर्थक उसी की बात को दोहरा देते और जोर जोर से चिल्लाने लगते क्यूंकि बसपा समर्थक ये चाहते थे कि दयाशंकर की बेटी, भीं और पत्नी को सामने लाया जाये ताकि हम उनसे पूंछ सकें कि क्या दयाशंकर सिंह का मायावती को वैश्या कहना क्या सही है ? क्या उसमें इतनी भी तमीज नहीं कि वो किसी स्त्री जा सम्मान कर सके l लेकिन विपक्षी पार्टी के वो गुंडे इस नारे को देकर दयाशंकर की पत्नी और बेटी को भड़का रहे थे ताकि वो इस बात का भावनात्मक फायदा उठा सकें l इतना डरावना माहौल, ट्रैफिक की भारी आवाजाही और ऊपर से तेज़ तेज़ आवाजें मेरे मन में एक भय सा पैदा कर रही थी, लेकिन काम तो करना ही था l सत्य जानने की लालसा जो हर मीडिया कर्मी को रहती है, मुझे भी थी l इसलिए ये जिज्ञासा मुझे उस और धकेल रही थी l ये सब मैंने अपनी आँखों देखा कानों सुना l इतनी दहशत कि उन गुंडों ने मेरे वजूद को हिला दिया था l उस पल एक ही विचार आ रहा था कि जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी नहीं है तब इतना बवाल और कहीं अगर हो जाती तो कयामत आ जाती l मुझे कहने में कतई डर नहीं कि ये सब बीजेपी की सोची समझी साजिश का एक ट्रेलर था l इस षड्यंत्र की शुरुआत कुछ समय पहले गुजरात से हो चुकी थी l हज़रतगंज चौराहे पर बसपा समर्थकों के बीच घुसपैठ करने वाले विपक्षी पार्टी के गुंडों द्वारा बोले गए नारों को बसपा समर्थक बोल रहे थे जिसमें शालीनता और भाषा संस्कार कहीं गुम हो चले थे l कारण कि समर्थकों के दिल में दर्द की भाषा रह रहकर टीस जगा रही थी l उन समर्थकों को ये पता ही नहीं चल पा रहा था कि घुसपैठिये अपना जाल बिछा चुके है l दयाशंकर सिंह ने बसपा सुप्रीमो को वेश्या से तुलना कर उस सीमा को पार कर दिया था, जिससे दलितों के सब्र का बांध टूट चुका था, समर्थक तेज़ आवाज़ में उन गुंडों की बात को दोहराकर अपना प्रतिकार कम कर रहे थे l गुस्से और दुःख में डूबे समर्थक ये भूल गए थे कि जिन लाइनों को वो लोग दोहरा रहे हैं वो बसपा समर्थकों की आवाज़ नहीं, वो उन विपक्षी पार्टियों के कुछ गुंडे थे जिन्हें राजनितिक पार्टियाँ पालती है ये वही लोग थे जिनकी जबान पर इस तरह की गलियां थी और बसपा समर्थक बिना सोचे समझे उन नारों को दोहरा रहे थे l वहां पर इतनी ज्यादा संख्या में मीडिया मौजूद थी लेकिन इस बात को किसी ने हाईलाईट नहीं किया सिर्फ बसपा समर्थकों की उन आवाजों को दिखाया जो ये लोग दोहरा रहे थे l ग्वालियर की ही बात ले लीजिये प्रदर्शनकारियों में शामिल 12 से 15 लड़के मुंह पर कपड़ा बांधकर न सिर्फ राहगीरों से मारपीट और वाहनों की तोड़फोड़ करते रहे। उन्होंने वाहनों को रोककर लोगों से मारपीट की। सड़क पर टायरों की लाइन बनाकर उनमें आग लगा दी। टेंपों के कांच फोड़ दिए। बीयर की खाली बोतलें राहगीरों की तरफ फेंक कर फोड़ीं। क्या आपको लगता है कि बसपा समर्थक जो सुप्रीमों के एक इशारे पर एक बड़े हुजूम में तब्दील हो जाते हैं वो मायावती के उसूलों के खिलाफ ऐसा कदम उठा सकते हैं l देखा जाये तो बीजेपी बनाम बसपा की लड़ाई की मीडिया कवरेज से साफ़ नजर आता है कि मीडिया में सबसे ज्यादा ब्राह्मण हैं और दलित लगभग शून्य हैं। चूँकि मैं मीडिया विभाग से जुडी हूँ तो इस विभाग से जुड़े हर व्यक्ति को जानती हूँ l बीते कुछ दिन पहले बसपा सुप्रीमो को वैश्या कहने वाले दयाशंकर सिंह की अभद्र टिप्पड़ी को मेंन स्ट्रीट मीडिया ने जैसे तैसे काट छांटकर दिखाया लेकिन दूसरे दिन जैसे ही बसपा समर्थकों ने हजरतगंज लखनऊ में अपना प्रदर्शन किया और घुसपैठियों के नारों को बसपा समर्थकों ने दोहराया तो उस दौरान भगौड़े दयाशंकर की बेटी को लेकर मीडिया ने बसपा समर्थकों के कथित नारों को आम जनता तक ऐसे पहुंचाया जैसे आज के पहले किसी और पार्टी के समर्थकों ने ऐसा किया ही न हो l बसपा सुप्रीमो को वैश्या कहने वाला दयाशंकर सिंह तो पुलिस के डर से भाग गया था लेकिन, उसकी अभद्र टिप्पड़ी मीडिया को नहीं दिखी लेकिन मीडिया टीवी पर पूरे दिन भगौड़े दयाशंकर की पत्नी और बेटी को चमकाती रहे l आज की मिडिया का अंतर मन बहुत ही निंदनीय है। जो खुद उसके हित में नहीं है। अगर गौर फरमाए तो सीधी सीधी एक बात हमारे सामने खुलकर आती है कि बीते कुछ ही दिनों के अन्दर ही गुजरात में दलितों की पिटाई का वीडियो, महाराष्ट्र में अंबेडकर भवन जैसी महत्त्वपूर्ण इमारत को गिराने की कार्रवाई, नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे दलितों पर अचानक बीजेपी समर्थित सिंह सेना का हमला बोलना, जिसमें सिंह सेना ने बच्चों और महिलाओं तक को नहीं छोड़ा और बसपा सुप्रीमों पर अभद्र टिप्पड़ी का करना l क्या ये सोची समझी साजिश के तहत नजर नहीं आ रहा l मैं आवाम से पूछती हूँ कि क्या ये सब संयोग है या इन सब घटनाओं के पाशे, सत्ता राजनीति की चौपड़ पर बिछाये गये हैं हाल ही की बात है कि गुजरात के उना में दलितों पर बेरहमी के वीडियो सोशल मीडिया पर लोगों को सिसकी भरने पर मजबूर कर रहे थे सबसे आश्चर्यजनक बात मुझे ये लगी कि ये वीडिओ शूट कथित तौर पर खुद वारदात करने वालों ने बनवाईं थीं। इन हालातों को देखकर कोई भी बता देगा कि ये सब खुलकर और पूरे प्रचार प्रबंध के साथ किया जा रहा है। अगर हम थोडा ठंडे दिमाग से सोचें तो पाएंगे कि किसी न किसी बहाने मुद्दा दलित बनाम सवर्ण की टकराहट का बनाया जा रहा है ताकि उन राजनैतिक दलों को भरपूर फायदा मिल सके जो उत्तर प्रदेश की जमीन पर अपनी बपौती समझते हैं और जनता को बेवकूफ समझते हैं l पिछले दिनों से दयाशंकर सिंह के ब्यान को लेकर सोशल मीडिया पर पोष्टों और कमेंटों की भरमार रही है l कोई मायावती का समर्थन कर रहा है कोई गाली दे रहा है ये सब पढ़कर लगता है कि हमारे देश की राजनीति गर्त में जा रही है l देश में अपनी अपनी विचार धारा व्यक्त करने के सबसे सशक्त प्लेटफार्म सोशल मीडिया पर इस समय स्वयंभू सदाचारियों और संविधान निर्माता के अनुयाइयों के बीच गाली गलौज प्रतियोगिता बड़े जोर शोर से चल रही है दोनों तरफ से समूची नारी जाति के सम्मान की रक्षा का कर्तव्य नारी को गाली देकर निभाया जा रहा है हालंकि दोनों ही तरफ से गालियों का आदान प्रदान एक सभ्य समाज के लिए निंदा का विषय है| अच्छे समाज के लिए जरूरी है कि राजनेतिक और सामाजिक सुचिता बनी रहे | देखा जाए तो भारत की मुख्यधारा की राजनीति में इतनी गिरावट आ गई है कि अब नेता सरेआम कुछ भी किसी दूसरे नेता या पार्टी के खिलाफ बोल देते हैं इस तरह की बेबुनियाद बातों से भारतीय संस्कृति आहत है। सच में मुझे ताज्जुब हो रहा है कि भाजपा लीडर दयाशंकर सिंह की बदजुबानी पर प्रधानमंत्री जी अब तक खामोश है l प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी से उत्तर प्रदेश में, दलितों को लेकर भाजपा का रुख स्पष्ट नही हो पा रहा है प्रधानमंत्री के मुंह से भाजपा और दलित समुदाय के अंतर्संबंधों को साधने का कोई भी वाक्य सुनने को नहीं मिला है आज बीजेपी के प्रदर्शन का खेल यह है कि मायावती व अखिलेश को सिर्फ दो तीन जातियों में समेट दो और बाकि को गोलबंद कर अपने बाड़े में डालो l हालांकि यह विनाशकाले विपरीत बुद्धि से ज्यादा कुछ नहीं l उत्तर प्रदेश में दांव पर बसपा सुप्रीमों की साख को देखते हुए उनके समर्थकों ने अनजाने में पीछे से आ रही आवाजों को दोहराकर जो नादानी की है वो किसी राजनैतिक दल की नैतिकता नहीं है इसको देखते हुए लगता है ये एक सोची समझी राजनैतिक चाल का ट्रेलर है पूरी पिक्चर अभी बाकी है जिसका लक्ष्य यूपी में वोटों का ध्रुवीकरण करने का है या यूँ कह लिया जाए कि सत्ता की चाह में समाज का ध्रुवीकरण किया जा रहा है सुनीता दोहरे प्रबंध सम्पादक इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज
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