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कृपया अपने विवेक का स्तेमाल करें

sach ka aaina
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hi

कृपया अपने विवेक का स्तेमाल करें….

किसी महिला की पहचान उसके पति से ही होती है, इस धारणा को मायावती ने आधारहीन साबित कर दिया है अविवाहित होने के बावजूद आज वह सफल राजनेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं मायावती ने अपनी मजबूत छवि का निर्माण अपनी योग्यता और वैयक्तिक विशेषताओं के बल पर किया  है l

आजकल राजनीतिक जमीन को लेकर बड़ी हलचल है क्यूंकि, 2017 का रंगमंच सजने की तैयारी में है, जिससे नया राजनीतिक समीकरण विकसित होने लगा है, गौरतलब हो कि सजग हो चली वो आवाम जो दबंगों द्वारा दबाई गई है उत्तर प्रदेश की भूमि पर फिर से अपने मतों का सही प्रयोग करते हुए बगावत पर उतरने वाली है l दबी जुबान में लोग ये भी कह रहे हैं कि दलितों के प्रति बढ़ती असुरक्षा उन्हें फिर बसपा और मायावती के पक्ष में तेजी से गोलबंद कर रही है l यह देखना रोचक होगा कि आगे और क्या क्या होता है.

एक समय था जब मायावती की बड़ी रैलियों में पहले जहाँ पत्रकारों के खड़े होने तक का स्थान तय नहीं होता था वहीं अब मीडिया के लिए गैलरी बनी मिलती है l एक वक्त था जब मायावती अपने राजनीतिक जीवन में मीडिया से भी चार कोस की दूरी बना कर रखती थीं l मीडिया को लेकर मायवती की सजगता का ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि उन्हें पता नहीं रहता कहाँ क्या हो रहा है और मीडिया में किसके बारे में क्या छप रहा है l उन्हें सब पता होता है l प्रशासनिक कार्यवाहियों में अपनी बोल्ड छवि के चलते उनके शासन में ला एंड आर्डर बेहद सख्त था अवाम सुकून से रात में सोती थी l लेकिन मौजूदा सरकार की नाकामियों के चलते आज आवाम बेहाल है चारो तरफ अपराध फल फूल रहा है लेकिन, मीडिया हर अपराध को दबा जाती है l अगर सही आंकलन किया जाए तो अखिलेश सरकार में हो रहे दलित मुद्दे भी मीडिया नहीं दिखाती और वहीँ बसपा कभी भी अपने कार्यकर्ताओं की गाढ़ी कमाई से मिले चंदे का इस्तेमाल मीडिया पर विज्ञापन देने में खर्च नहीं करती हैं । फिर चाहें मीडिया को जो छापना हो, वह छापे, जो दिखाना हो, वह दिखाए। पार्टी का प्रचार करने के लिए मीडिया को माध्यम बनाने वाली विरोधी पार्टियाँ और मीडिया विद्वान मायावती के इस ठेंगे पर रखने वाली प्रक्रिया को देख सुनकर चकित हैं l यहाँ मुझ ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि, बसपा अब सिर्फ दलित मुद्दे नहीं उठाती और ना ही सिर्फ दलितों की पार्टी है बल्कि बसपा सर्वजन पार्टी है l अगर ऐसा नहीं होता तो बसपा सुप्रीमो आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णो के लिये आरक्षण की मांग  व संविधान संशोधन की बात  नहीं करतीं। हाँ कभी आज के चौदह साल पहले बसपा दलितों की पार्टी हुआ करती थी। लेकिन अब नहीं है l इस बात को आवाम जितनी जल्दी स्वीकार कर ले उतना ही आवाम के लिए सेहतमंद होगा । बहुजन समाज पार्टी एकमात्र ऐसी पार्टी है जो कहने और घोषणाओं में नहीं बल्कि जनहित व जनकल्याण में भरपूर कार्य करके दिखाने में विश्वास रखती है। बहुजन समाज पार्टी की नीति है “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।“

चौथी बार 13 मई 2007 को मायावती ने मुख्यमंत्री पद जब ग्रहण किया था तब 2007 के चुनावों में बसपा के लिए केवल दलितों ने ही नहीं अपितु सभी जातियों ने भी वोट किये थे कमजोर और दलित वर्गों का उत्थान और उन्हें रोजगार के अच्छे अवसर दिलवाना उनके द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का केन्द्र है l 2007 में मायावती को प्रदेश की कमान मतदाताओं ने इसलिए सौंपी थी कि मुलायम सिंह के खिलाफ़ मतदाताओं के गुस्से का इजहार ज्यादा था और बसपा सरकार पर उनका भरोसा था l उस बार उन्होंने पूरे पांच साल तक राज किया लेकिन, 2012 में समाजवादी पार्टी से हार गयीं थीं । हार का प्रमुख कारण पूरे प्रदेश में अपनी मूर्तियां लगाने और अपने मंत्रियों द्वारा घोटाले थे। सबसे बड़ा विवाद है ताज कॉरिडॉर केस था । उनकी हार सबसे बड़ा मुख्य कारण था कि उन्होंने अपने आप को कुछ चुनिंदा नौकरशाहों के घेरे में कैद कर लिया था और यही नौकरशाह उनके प्रशासन को अपनी मनमर्जी से चलाने लगे थे जिसका खामियाजा मायावती ने अपने मुख्यमंत्री के पद को देकर चुकाया था l मायावती की सबसे कमजोर स्थिति का कारण उनका अपने शासन काल में अपने कैबिनेट सहयोगियों से बहुत ही कम या कह लें कि कभी कभार ही संवाद किया करती थी क्यूंकि, मायावती के ज़हन में हर चीज़ को लेकर एक विशेष एजेंडा या पॉलिसी रहती है इसलिए वे ज़्यादातर चीज़ें खुद ही जनता के सामने रखतीं रहीं हैं l
मायावती अपने शासन काल में बेहद बोल्ड तो थी ही पर आज भी उनकी तानाशाही और सनक मिजाज को राजनीतिक चतुराई से आंका जाता रहा है इन्ही खामियों के चलते बीते सालों ने उनकी राजनीतिक छवि को खासी चोट पहुंचाई है l लेकिन अब हालातों को मद्देनजर रखते हुए मायावती काफी बदल चुकी हैं l उनकी एक आदत जो कि समाज में अच्छी छाप छोडती है वो ये कि, उन्हें जो भी कहना होता है वो जनता के सामने कहने से नहीं झिझकती l फिर चाहे भले ही उनकी पार्टी की छवि धूमिल हो जाये l उनके विरोधी हमेशा यही कहते रहे हैं कि, मायावती सरकार ने अपने शासनकाल में सिर्फ़ स्मारकों पर ही बेशुमार धन खर्च किया है तो मुझे कोई ये बताये क्या धन को बर्बाद करने के कार्य किसी और पार्टी ने नहीं किये, कई पार्टियों ने किये हैं l ये जानते सभी हैं लेकिन, विरोधी पार्टियों के गलत कार्य किसी को दिखाई नहीं देते l जबकि, असलियत ये है कि अंबेडकर गांव और महामाया योजनाओं के तहत बसपा सरकार ने लाखों परिवारों को मदद पहुंचाने का भी काम किया था l निश्चित तौर पर ये पहलू भी गरीबी को कम करने में बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं l मायावती सरकार ने अपने शासनकाल में सिर्फ़ स्मारकों पर ही बेशुमार धन खर्च नहीं किया है बल्कि अंबेडकर गांव और महामाया योजनाओं के तहत लाखों परिवारों को मदद पहुंचाने का भी काम किया था l किसी महिला की पहचान उसके पति से ही होती है, इस धारणा को मायावती ने आधारहीन साबित कर दिया l अविवाहित होने के बावजूद आज वह सफल राजनेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं मायावती ने अपनी मजबूत छवि का निर्माण अपनी योग्यता और वैयक्तिक विशेषताओं के बल पर बनाई है l उनके विरोधिओं को ये बात समझनी होगी कि मायावती का वोटर प्रतिबद्ध है और मीडिया उसकी प्रतिबद्धता को ना तो बढ़ाता है और न घटा पाता है। ऐसे में जनता के जहन में ये सवाल उठता है कि मायावती की हार क्यों होती है तो इसका जवाब यह है कि उनके प्रतिबद्ध वोटरों के अलावा जो वोटर हैं, वे उसे हराते या जिताते हैं। इसलिए इन वोटरों पर भरोसा बनाए रखना उनकी पहली प्राथमिकता है।  आजकल दलितों के मध्य, मीडिया में और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच भी यह राय बनने लगी है कि दलितों की गोलबंदी फिर से मायावती और बसपा के पक्ष में मजबूत हो रही है l इसका एक महत्वपूर्ण कारण उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का दलितों के प्रति रवैया माना जा रहा है यूं तो समाजवादी पार्टी के शासन में कानून व्यवस्था की स्थिति सामान्यतः सबके लिए खराब है, किंतु दलितों के प्रति अधिपत्यशाही समूहों का अन्याय बढ़ा है, साथ ही राज्य दलित कल्याण के मुद्दे पर या तो उदासीन है या ऐसी नीतियां लागू कर रही है, जिन्हें दलित हितों के ख़िलाफ़ माना जा रहा है l लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि, देश के सर्वसमाज खासकर गरीबों, दलितों, पिछड़ों, मुस्लिमों व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के हित व कल्याण के मामले में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी व बीजेपी का रवैया पूरी तरह से घोर विरोधी रहा है। हम इसे भी नकार नहीं सकते कि उत्तर प्रदेश में गंभीर आपराधिक घटनाएं अब मुख्यमंत्री व पुलिस प्रमुख के घरों के पास व उनकी नाक के नीचे घटती रहतीं हैं। यह स्थिति प्रदेश में व्याप्त जंगलराज को दर्शाती है। समाजवादी सरकार अपराध नियंत्रण व कानून व्यवस्था के मामले में बुरी तरह से विफल साबित हुई है। ये बात भी आने वाले चुनावो में बसपा के हित में होगी l
समाजवादी पार्टी सरकार के द्वारा राज्य सरकार की नौकरी में प्रमोशन में एससी एसटी कर्मचारियों के लिए नौकरी में निर्धारित किए गए कोटा को समाप्त करने का निर्णय, राज्य सरकार ने अपने एक ऑफिस आर्डर के तहत नौकरी में प्रोन्नत किए गए एससी एसटी कर्मचारियों को पदावनत (डिमोशन) करने का निर्णय l इस आदेश से लगभग 2 लाख एससी-एसटी कर्मचारियों को पदावनत होने का ख़तरा सामने होने से साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग ने इस ऑफिस आर्डर को ध्यान में रख पूर्व में प्रोन्नत किए गए एससी/एसटी कर्मचारियों को पदावनत करने का आदेश देने से दलित समाज में समाजवादी पार्टी सरकार के इस पहल का काफी विरोध होता रहा है जिससे दलितों में वर्तमान सरकार के प्रति गुस्सा और नाराजगी बढ़ गई l समाजवादी पार्टी सरकार का एक और निर्णय दलितों के हितचिंतकों को रास नहीं आया था जिससे ख़ुद दलित भी एक बड़ी संख्या में इस निर्णय से खफा है दलितों की भूमि खरीद और विक्रय संबंधी क़ानून में एक बड़ा परिवर्तन किया, इस नियम परिवर्तन के कारण भूमि माफियाओं का उत्साह बढ़ा तो दूसरी ओर दलितों में असहायता बढ़ी l समाजवादी पार्टी के इन फैसलों ने दलितों में असुरक्षा बोध विकसित किया l इस असुरक्षा बोध ने उन्हें फिर बसपा की ओर तेज़ी से गोलबंद किया है l
मायावती का सख्त प्रशासन आवाम की निगाह पर चढ़ा हुआ है l अभी हाल ही की बात है कि पार्टी में अनुशासनहीनता के खिलाफ बसपा सुप्रीमो मायावती का रवैया सख्त हो गया जिससे दो सिटिंग विधायकों समेत चार नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
ठीक इसके विपरीत कल की खबर ये कि विधानसभा चुनाव की चुनौतियों से रूबरू सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी ने पूर्वांचल में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए माफिया का हाथ थाम लिया। डान मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का मंगलवार को यहां सपा में विलय हो गया।सपा महासचिव शिवपाल यादव ने कौमी एकता दल के अध्यक्ष व मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी की मौजूदगी में इस विलय का ऐलान कर दिया । गुंडों और माफियाओं से युक्त पहले से बदनाम पार्टी जनता की निगाह में और गर्त में चली गई है इसका असर भी सपा के लिए घातक हो सकता है जबकि बसपा के लिए संजीवनी बूटी का काम l बहरहाल जो भी हो 2017के चुनाव में, चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा ये समय के गर्भ में छुपा है l
मेरा मानना है की आवाम को इस बार अपने दिमाग का स्तेमाल करना चाहिए किसी जाति के तहत या धर्म के तहत अपना वोट ना दे कृपया अपने विवेक का स्तेमाल करें और उत्तर प्रदेश को स्वस्थ सरकार दें ताकि, उत्तर प्रदेश एक उत्तम प्रदेश बन सके l

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

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