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जैसे-जैसे वो मेरे गले से नीचे उतर रही थी, वैसे-वैसे मेरे बचपन की मासूमियत जलकर खाक हो रही थी…

sach ka aaina
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जैसे-जैसे वो मेरे गले से नीचे उतर रही थी, वैसे-वैसे मेरे बचपन की मासूमियत जलकर खाक हो रही थी...

एक वक्त था जब लोग अपनी शर्ट के अन्दर बोतल को छिपा कर घर आया करते थे। लेकिन, अब तो ड्राइंगरुम में बकायदा एक बार होता है। रोज नशे से शामें रंगीन करना तो जैसे, आज का चलन बन गया है lआज मुझे देखकर ये हैरानी होती हैं कि पानी और चाय के बाद दुनिया में सबसे अधिक शराब पी जाती है। मेरी ये समझ नहीं आता l कि, क्या ये कोई टॉनिक है, या फिर कोई ताकत की दवा, जो शराबी इसे अमृत समझकर गटक जाते हैं। ज़हरीली शराब पीकर मरना भारत में शायद सबसे बुरी मौत है, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि बहुत तकलीफ़ होती है, बल्कि इसलिए भी कि इसके शिकार वैसी सहानुभूति के हक़दार नहीं होते जो दूसरी दुर्घटनाओं में होते हैं lवैसे अगर आपमें विल पावर है तो लाख चाहें आपके सामने ये रखी रहे और अगर शराबी चाह ले तो शराब छोड़ कर अच्छा बन सकता है l इसी से सम्बन्धित आपको मैं एक सच्ची घटना सुनाती हूँ ……

आजकल मुझे उत्तर प्रदेश में शराबबंदी अभियान के तहत कार्य करने का मौका “संघर्ष समिती के अध्यक्ष “मुर्तजा अली” जी से मिला l गली मुहल्ले से लेकर पूरे शहर में शराबबंदी अभियान में शामिल होने के लिए हम कई महिलाओं से मिले l ये जानकर बहुत ही सुकून मिला कि, मेरी तरह इस शहर की महिलाये इस अभियान में हर संभव मदद करने को तैयार हैं l उन्ही महिलाओं में मेरी एक अच्छी दोस्त भी बन गई, उनके कहने पर मैं एक शाम शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति से मिलने गई क्यूंकि, मुझे उनके शराब को “अपनाने से छोड़ने तक” के सफर को अपनी कलम से बयाँ करना था l मैं भी धुन की पक्की जो ठहरी, मैं पहुँच गई उनके दरवाजे l खैर आधे घंटे का समय मिला l मैं उनके ड्राइंगरूम में जाकर बैठ गई l थोड़ी ही देर में लंबा कद, गौरवर्ण और हसमुख चेहरा लिए प्रभावी व्यक्तित्व का मालिक मेरे सम्मुख रूबरू था l उन्होंने मेरे अभिवादन का जवाब दिया और बोले,…..कुसुम चाय लेकर यही आ जाओ l मैंने कहा, सर मुझे गीतांजलि ने आपके पास भेजा है l मैं उत्तर प्रदेश में शराबबंदी अभियान के तहत कार्य कर रही हूँ और उसमें मुझे आपकी मदद की आवश्यकता है l उन्होंने बहुत ही सहजता से कहा ! … अवश्य, मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा l
उनकी पिछली जिन्दगी को लेकर मैं उनसे डायरेक्ट कुछ पूंछ नहीं सकती थी l सो मैंने बात को घुमाकर पूंछा कि, सर मैंने गीतांजली से सुना है कि, एक वक्त था जब आप अपने कॉलेज के हीरो हुआ करते थे l प्लीज़ अपनी जिन्दगी के उन सुनहरे सालों पर थोड़ी सी रौशनी डालिए l मैं अपनी कलम में उन पलों को कैद करना चाहती हूँ l थोड़ी देर के लिए तो चुप हो गए l फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोले…..
एक शराबी अपने होशो हवाश में होकर जब अपनी जिन्दगी के पन्ने पलटता है, तब उसे इस बात का एहसास होता है कि, लड़कपन और जवानी के जोश में मैंने क्या क्या और कैसी कैसी दुर्घटनाओं को अंजाम दिया था l मैं जब तक कॉलेज नहीं गया तब तक मैंने कभी भी शराब या किसी भी प्रकार के नशे को हाँथ नहीं लगाया था l लेकिन, आज के करीब २० साल पहले की बात है l उन दिनों कालेज के होस्टल में होली का जश्न मनाया जा रहा था, होली की उमंग थी सब होली के रंगों में खोये हुए थे l शराबखोरी और मांसखोरी के भरपूर इंतजामात थे। मैं भी पूरे जोश में था l सभी 20, 22 की आयु वर्ग के जोशिले युवा थे, सो हंगामा तो होना था। इससे पहले मैंने कभी शराब को हाँथ नहीं लगाया था l लेकिन दोस्तों की महफ़िल का असर मुझ पर हावी हो रहा था, सो मैं भी इसे चखने का आनन्द लेना चाहता था l दोस्तों की जिद और इसे चखने की लालसा ने मुझे इसे पीने पर मजबूर कर दिया l इन दोस्तों के शराबी बचपन को संभालना किसी के बस में नहीं था। आप अंदाजा लगा सकते हैं। अमूमन सभी चार से पांच पैग पी गए थे l इन पैगों में ढेर होने वाले ये मेरे ऐसे दोस्त थे, जो पहले कई बार इन पैगों के साथ खेल चुके थे । कुछ दोस्त तो मेरी तरह थे जिन्होंने शराब को पहली बार छुआ था l जैसे जैसे शराब मेरे गले से नीचे उतर रही थी, वैसे वैसे मेरे बचपन की मासूमियत जलकर खाक हो रही थी। और, मेरे अन्दर की आग जो उस मासूम चेहरे की स्याही ना पढ़ सकी, उसे और दहका रही थी। मैं, अपने आपको एक मदहोश कर देने वाली दुनिया में तरंगे ले रहा था । मानो यूँ लग रहा था कि, इस दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान मैं ही हूँ l लेकिन, मेरा सहपाठी जिसने इसे पिया नहीं था l मेरे होश में आने के बाद कह रहा था कि, तू नशे में बोल रहा था, कि…. अंशु जीईईइ , अंशु जीईईईइ , मेरी बात को तवज्जो दीजिये l आप चिंता ना करें l ये मुझपे चढ़ी नहीं है, और चढ़ भी नहीं सकती लेकिन मेरा दिमाग कंट्रोल में नहीं है। मेरा शरीर मेरे कंट्रोल से बाहर है, मैं किसी भी चीज़ को पकड क्यूँ नहीं पा रहा हूँ, मैं खड़ा नहीं पा रहा हूँ l यूँ ही चिल्लाते चिल्लाते तू और तेरा दिमाग भी सो गया था l ये सुनकर मुझे अंशु की बातों पर बहुत हसी आई थी मुझे लगा था कि ये झूठ बोल रहा है l खैर छोडिये, आगे सुनिए l …..ज्यादा नशे का एक कारण ये भी था कि तब हमें शराब पीने का सलीका नहीं था l हम सारे दोस्त एक एक बोतल शराब की पूरी की पूरी निखालिस गटक जाते थे और नशे में टल्ली होकर बेसुध हो जाते थे  शराब शुरु करने के बाद आपके शरीर पर जो साइड इफेक्ट्स होते हैं वो सालों बाद असर दिखाते हैं l लेकिन मेरे घर में इसका असर बहुत जल्दी दिखने लगा था l मेरा मध्यमवर्गीय परिवार संघर्षों के दौर से गुजर रहा था पिता अपनी सरकारी नौकरी में खप के और मेरी माँ दिन रात घर मे काम करके किसी तरह अपनी गृहस्थी की गाड़ी बमुश्किल खींच रही थे। जिसमें मैं उनके ऊपर एक बोझ की तरह था l वो क्यूँ ? क्यूंकि मैं, पढ़ाई के अलावा सारे वो कार्य करता था जो, मेरे भविष्य के लिए घातक थे l मेरी बहिन  एमबीबीएस फस्ट इयर मे थी । जो दिन रात किताबों में डूबी रहती थी l पिता जी उसको देखकर कहते थे, कुछ इसी से सीख ले, क्यूँ मेरी जान का दुश्मन बना हुआ है ? उस समय मेरा मन विद्रोही होने को उतावला हो जाता था। लेकिन, मन मसोस कर रह जाता, क्यूंकि मैं जानता था कि मैं गलत हूँ l फिर भी मन ये मानने को तैयार नहीं था कि, मैं सही कर रहा हूँ या गलत कर रहा हूं। बस मेरे दिमाग में कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन था l शराब पीने के कारण मुझ पर और मेरे घर वालों की जिन्दगी पर खासा प्रभाव पड़ रहा था । आये दिन शराब के रंग में मेरी शामें रंगीन होने लगीं थी l उन्ही दिनों मुझे एक लड़की से इश्क हो गया l वो भी इसी कालेज में पढ़ती थी स्वभाव से एकदम शालीन और कुलीन परिवार से सम्बन्धित थी l देखिये किस्मत का खेल मुझे इश्क भी हुआ तब, जब उस दौर में जिन्दगी अपने शबाब पर होती है और आप जवान होते हैं। जवानी के सपने होते हैं, उन्हें पूरा करने का जोश और मौके भी होते हैं। पढ़ाई करके अपने भविष्य को संवारने का समय होता है उसी समय मुझे ये दोनों लतें लगनी थी l जैसे कि शराब और इश्क.
आप ये तो जानती ही होगी कि, घर के बड़े हमेशा से इन लतों से दूर रहने को अपने बच्चों को आगाह करते रहते है पर अफसोस, जवा खून किसी की सुनता नही और अक्सर शराब और इश्क के भंवर में फंस जाता है l खैर मैं, जब भी उस लड़की से बात करने की कोशिश करता वो मुझसे यही कहती कि, मैं शराब पीने वाले लोगों से दूर रहती हूँ l कृपया मुझे तंग ना करें l मैं अवाक सा रह जाता l मैं मन ही मन घुटने सा लगा l इसी जद्दोजहद में ज्यादा पीने लगा l एक दिन मैंने ठान ही लिया कि, इस लड़की से मैं बात करके ही रहूँगा l मैंने उसे रोका और पूंछा मुझमे क्या बुराई है, बस शराब ही तो पीता हूँ और तो कोई ऐब नहीं है मुझमें l उसने बड़े ही सधे शब्दों में कहा कि, नीरज जी शराब सारी बुराइयों की जड़ है, जैसे कि स्वास्थ्य गिराती है, भविष्य को गर्त में ले जाती है, पढ़ाई नहीं हो पाती है, इसके कारण आप अपना भविष्य नहीं बना सकते l आप कहते हैं कि मैं प्यार करता हूँ ठीक है लेकिन, आपको पता होना चाहिए कि जीवन की सच्चाई ये है कि कोई भी लड़की प्यार उसी से करती है, जिस पर उसे पूरा भरोसा हो और उसे ये महसूस हो कि, सामने वाला व्यक्ति उसके साथ शादी करके उसकी जिम्मेदारी उठा सकेगा कि नहीं l समाज में सर उठाकर चलने के काबिल है भी या नहीं l या फिर हर रात लडखडाते क़दमों से घर में एंट्री करे  l इतना कहकर वो  भारी पलके लिए तेज़ क़दमों से चली गई.

उस दिन मेरा दिल जार जार रोया था l मैं चुपचाप सर झुकाए हॉस्टल आ गया था l दो दिनों तक कालेज नही गया l दोस्तों को आशंका हुई कि, अवश्य ही कुछ गड़बड़ है इसलिए कालेज छूटने के बाद वो सब सीधे मेरे पास ही आ गये थे l हजारों सवाल मेरे सामने खड़े कर दिए l मैं क्या जवाब देता l मैं कुछ नही बोला l थक हांर कर सब चले गये लेकिन, अंशु नहीं गया l उससे रहा नहीं गया वो चिल्लाकर बोला, शाले तू बताएगा या यही तुझे मार मारकर अधमरा कर दूँ l बोल जल्दी l आखिर हुआ क्या है, क्यूँ यहाँ घुसकर बैठा है, पढने भी नहीं आता l शाले तेरा दिमाग घास चरने चला गया है l माँ बाप के बारे में सोच जरा, कैसे तेरी फीस भरते हैं तुझे यहाँ तक पहुँचाने के लिए कितनी मुसीबत उठाई है उन्होंने l मेरी आँखों से आंसू बहने लगे, मुझे तो सिर्फ अपनी प्रेयसी का मासूम चेहरा ही दिख रहा था l मैंने सारी बात उसे बता दी l वो गुस्से में बोला तेरा कुछ नहीं हो सकता, तू यूँ ही मर शाले l आखिरकार माथापच्ची करके अंशु भी चला गया, दिन बीतने लगे ना मुझसे शराब छूटी और ना ही उस मासूम चेहरे की यादें ही धुंधली हुई l मैं जब कालेज जाता तो वो मुझे कभी कभी दिख जाती उसकी कातर निगाहें मुझसे ये सवाल करती कि “प्लीज़ नीरज मेरे लिए शराब छोड़ दो, और वो अपनी नजरों को झुका कर दूसरी ओर देखने लगती l उसकी डबडबाई आखों के कोरों पर पानी की बूंदे साफ झलक जाती थी, उसका दुख मुझे अन्दर तक काट के रख देता l शाम होते ही ना जाने मुझे क्या हो जाता कि, मैं फिर एक बोतल गटक कर औंधा हो जाता l पढने में तेज़ होने के कारण मैं आगे बढ़ता गया l पढ़ाई पूरी होते ही मेरी एक अच्छी कम्पनी में जॉब लग गई l ऑफिस से जब भी मैं घर को लौटता तो मैं और मेरी शराब दोनों एकांत ढूढते और सोचते काश इसके साथ तुम मेरे सामने होती l दिन व दिन मेरी शराब पीने की आदत बढती गई l मैं बीमार भी रहने लगा l एक अनजान शहर और ऑफिस का काम इन्ही के बीच मेरी जिन्दगी उलझ कर रह गई l इस शहर में मेरा नया नया तबादला था इसलिए मैं लोगों को ज्यादा जानता नही था l अपने सहकर्मी से सुना था कि यहाँ की बॉस बहुत ही कड़क है l देर से आने पर उसकी छुट्टी लगवा देती हैं साथ ही शराब पीने वालों को अपने ऑफिस से ट्रांसफर करवा देती हैं l मैं ऑफिस मैं आकर बैठा ही था कि मेरे पेट में असहनीय दर्द होने लगा l मैं छुट्टी लेकर अस्पताल आ गया डाक्टर ने मुझे एडमिट कर लिया और दवा शुरू कर दी l किसी ने ठीक ही कहा है कि …..

“शराब ने मिटा दिये राजशाही, रजवाडे और सामंत
शराब चाहती है दुनिया में, सच्चा लोकतंत्र

तीन से चार दिन मैं ऑफिस नहीं गया सारा स्टाफ मुझे देखने आया था l उसी स्टाफ में वो मासूम चेहरा मेरी बॉस के रूप में, अथाह पीड़ा लिए मेरे सामने खड़ा था l वो मेरी बॉस यानि कुसुम त्रिपाठी जी थी जो आज भी मेरे दिल में हक़ से बैठी थीं l स्टाफ के सामने ही कुसुम बिलख कर रो पड़ी, अगर तुम्हे कुछ हो गया तो मैं क्या करुँगी l उनका एक शब्द मेरे कानों में पड़ा कि, नीरज मैंने तुम्हे समझाया था तुम नहीं माने, मेरे पायताने बैठकर वो फूट फूट कर रो रही थी और मैं असहाय सा हो उसे निहार रहा था l अब तो मैं उसे ये दिलासा भी नही दे सकता था कि अब नही पियूँगा l क्यूंकि मैं शराब का आदी हो चुका था मैं अगर शराब नही पीता तो भी पेट में दर्द होता था l धीरे धीरे थोड़ी हालत ठीक हुई l क्यूंकि अब कुसुम एक साए की तरह मेरे सामने रहती और साथ ही मुझ पर नजर रखती l कुसुम ने भी शादी नहीं की थी l मुझे सुधारने के लिए उसने ना जाने कितने डाक्टरों की सलाह ले डाली l लिहाजा कुसुम और डाक्टरों मे चर्चा शुरु हुई की शराब के नशे को कैसे कम किया जाए। मैंने भी थोड़ी हिम्मत दिखाई और कसम खाई कि,अब कभी भी शराब को हाँथ नहीं लगाऊंगा l बस एक बार ठीक हो जाऊं l मैंने शराब छोड़ने का फैसला लिया क्यूंकि, मेरे साथ कुसुम का प्रेम था l  और मेरे पास था मेरा हौसला, मैंने सबसे पहले अपने अन्दर के शराबी से लड़ने का फैसला किया। चाहे जो हो जाए मैं शराब नहीं पिऊँगा। मैं स्वयं से एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहा था। अपने प्यार से, अपने विश्वास से, हालात से और स्वयं से । मुझे न जाने क्यूँ यकीन हो चला था कि, अगर मैं खुद से जीत गया तो हालात पर काबू पा ही लूंगा ।  कुसुम के प्यार और विश्वास ने मुझे बिखरने नही दिया l मैं पूरा दिन ऑफिस में कुसुम के सानिध्य में रहता  और साथ ही अपनी हर शाम कुसुम के साये में गुजारता l जब से मुझे दुबारा कुसुम मिली थी तब से कुसुम ने हर उस मौके पर मुझे सहारा दिया, जब जब मैं कमजोर हुआ था । आज मैं पूरी तरह शराब छोड़ चुका हूँ | मैं मानता हूँ कि शराब छोड़ने में मुझे बहुत तकलीफ हुई थी, लेकिन इतनी भी नहीं कि, मैं इसे सहन नही कर सकता था l

वो पीड़ा कम से इस पीड़ा से तो कम ही थी जिसे, मैं हर पल कुसुम के चेहरे और आँखों में देखा करता था.

मेरे साथ कुसुम का निश्छल प्रेम है l आज अगर किसी पत्रिका में भी शराब की बोतल की फोटो दिख जाती है और उस पेज पर गलती से ऊँगली छू जाये तो डर के कारण मेरे हाँथ कांपने लगते हैं l मन यही कहता है कि, उफ़ !!!!  तुझे छूने का एहसास कितना डरावना है l तो मेरे अंत का परिणाम कितना भयानक होता l
और अब यही कहूँगा कि शराब को ग्रहण करने वालों आप लोगों को ये बात अच्छे से समझनी होगी कि, शराब जिस्मों पर कुप्रभाव खूब तेजी से डालती है l अधिकांश का लीवर खराब हो जाता है, इसलिए शराब के आदी होने से पहले इसे त्याग दीजिये क्यूंकि, जो शराब के लती हैं वो अगर इससे दूर होना चाहेंगे तो नशा मुक्ति का इलाज शुरु होते ही ‘विदड्राल सिंम्प्टम्स’ में लूज मोशन, आंखों से पानी, जोड़ों में दर्द जैसे चीजों से इन्हें जूझना पड़ेगा l तो इन परिवर्तनों से डरिये नही l डाक्टर की देख रेख में अपना इलाज़ करवाइए और स्वस्थ रहिये l
देखा जाये तो हर साल सैकड़ों जानें लेती है ये जहरीली शराब l प्रदेश में समय समय पर शराबबंदी के मुद्दे पर गाँव बस्ती और शहरों से लेकर सत्ता के गलियारों तक इसकी गूँज उठती है लेकिन सरकार ‘मूक’ बनी रहती है और ‘टस से मस’ नहीं होती l या फिर उठने वाली आवाजों का गला घोंट देती है l शराब पर पाबंदी लगाने का दबाव सरकारें झेल रहीं है लेकिन, राजस्व का लालच ऐसा है कि शराब पर सख्ती नहीं हो पा रही है l बड़े ही आश्चर्य की बात है कि सब कुछ जानने के बावजूद सरकारें इस गंभीर मामले पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं…..

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

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