इंसान नशे के बिना ज़िंदा नहीं रह सकता l नशा जिन्दगी के हर इंसान में किसी ना किसी रूप में विराजमान होता है, जैसे शराबी को शराब से नशा, संत का अपना नशा, अमीरी को धन का नशा , कुटिल का अपना नशा, समाजसेवी को समाजसेवा और परोपकार का नशा, भक्त को भक्ति का नशा , प्रेमी को प्रेम का नशा आदि……
वैसे तो नशे कई प्रकार के होते हैं, लेकिन तीन तरीके के नशे का दौर ज्यादा जोर शोर से अपराध को बढ़ावा देता है, पहला तो सत्ता का नशा, दूसरा शराब का नशा और तीसरा शबाब का नशा l लोग कहते हैं कि सबसे बड़ा नशा शराब का होता है, लेकिन मैं कहती हूँ इन तीनों में सत्ता का नशा एक ऐसा नशा है जिसमें गुंडई, शराब और शबाब तीनों नशों का मिश्रण होता है l सत्ता के नशे में रंगा हुआ व्यक्ति जिसे हम जनता का सेवक कहते हैं वो इशारों पर अपराध करवाता है l दिन को सफेद वस्त्रों में और रात को काले में नजर आता है l जब सत्ता का सुरुर चढ़ता है तो शराब और शबाब दोनों का रंग कहीं किसी होटल में, गेस्ट हॉउस में या फिर किसी रंगीन महफिल में पूरे शबाब पर होता है l उस समय इन सफेदपोशों की लालची नजर से दूर कहीं, देश की प्रगति और विकास का मुद्दा एक और सुबकता नजर आता है l सत्ता का नशा जब सर चढ़ कर बोलता है तो आम जनता की पुकार कानों में नहीं पड़ती। उत्तर प्रदेश सरकार के लिए भले ही आप कुछ भी कहें, लेकिन सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और मंत्रियों को सत्ता का नशा अभी भी इस कदर छाया है कि उन्हें अपने आगे कुछ दिखाई ही नही देता। पर वो ये भूल जाते हैं कि हर दुष्कर्मी अपने करनी की सजा इसी दुनिया में ही पाता है। कहते हैं कि, किसी अनाड़ी को देश का या प्रदेश का मुखिया बना दिया जाय तो वह, सत्ता की शक्ति को नही पचा पायेगा और सत्ता का ऐसा भयंकर दुरुपयोग करेगा जैसा किसी ने कल्पना भी नही की होगी l वो कहते हैं कि……
बिगड़ैल राजनेता की झूठी उम्मीदों को आवाम निहारा करे, वो तो जनता को लूटेगा, उसके वादों का मगर एतबार कौन करे।
यह सच है कि दुनिया का सबसे बड़ा नशा सत्ता में होता है। इसके सामने सारे नशे फीके हैं l सत्ता का नशा जब चढ़ता है तो उतरता बड़ी मुश्किल से है, जब तक की मोटी कमाई न कर ले l धन, सम्मान, यश और कीर्ति पाकर छोटे से छोटे आदमी का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच जाता है l यानि कि बिगड़ैल राजनेता करनी पर आ जाए तो कुछ भी उलटा सीधा कर जाते हैं l ”सत्ता” नाम में ही कुछ ऐसा नशा है, जिसे सुनकर व्यक्ति की चाल में कड़क, आवाज में तेजी और दिमाग में दादागीरी पनपने लगती है । सत्ता का नशा कोई आज का नया नशा नहीं है बल्कि प्राचीन काल से चला आ रहा है। सत्ता को बनाये रखने के लिए समय समय पर युद्ध होते रहे हैं, फिर चाहे वो वाक् युद्ध हो या रण भूमि का युद्ध हो l जिसके पास सत्ता है वो उसका प्रयोग अवश्य करेगा l फिर चाहें वो बल से करे या विवेक से करे l आजकल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश को उत्तर प्रदेश की सत्ता का नशा सर चढ़कर बोल रहा है जबकी उनके पिता उत्तर प्रदेश के एक बड़े नेता रहे हैं, लगता है आज उनकी शक्ति, आभा और राजनीतिक क्षमताओं को ग्रहण लग गया है और वे अपना ओज खोते जा रहे हैं l प्रदेश में आवाम की तकलीफों को तो जैसे उन्होंने ताक पर ही रख दिया है l सभी बड़े समाचार पत्रों को देखिये तो लगता है कि मानो उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने सभी अखबारों को खरीद लिया हो, पेपर अखिलेश सरकार की एक साल की उपलब्धियों के विज्ञापन से भरे हुए रहते हैं । कन्या विद्या धन योजना, बेरोजगारी भत्ता, वूमेन पॉवर लाइन, समाजवादी एम्बुलेन्स सेवा, लैपटॉप वितरण योजना और अवस्थापना एवं औद्यौगिक विकास के शीर्षक से सरकार की उपलब्धियों को खूब बखान किया जाता है l उन्हें ये नही दिखाई दे रहा, कि उनके राज्य में शराब के कारण कितने अपराध हो रहे l आये दिन बलात्कार, राह चलती लड़कियों को छेड़ना आम बात हो गई है l मुझे ये कहने में कतई संकोच नहीं कि उनकी पकड पुलिस प्रशासन पर ना के बराबर रह गई है l लेकिन जब आप अखबार के अंदर के पन्नों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि लूट, चोरी डकैती की खबरों से अखबार पटा पड़ा है, अखबार के पहले पन्ने पर विज्ञापन रूपी ये वही भ्रमजाल है जो चुनाव से ठीक पहले वोटरों को अपने पक्ष में रिझाने के लिए रचा जाता है लेकिन इस बार सरकार की नाकामियों को ढ़कने के लिए रचा गया है l प्रदेश में निश्चित तौर पर पिछली सरकार की तुलना में अपराध बढ़ा है, बस बसपा सरकार की जगह अखिलेश ने ले ली है, सरकारी अमला भी वही है, लोग भी वही हैं, अपराधी भी वही हैं तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ जो अखिलेश सरकार के गठन के बाद वारदातें ज्यादा हो रहीं हैं। जिस किस्म की घटनाएं हो रही हैं वो पिछली सरकार में कम सुनी जाती रही हैं, मसलन बलात्कार, लूट, चोरी डकैती की घटनाये l लेकिन आज आवाम चैन की नींद भी नहीं सो सकती, नेता अपनी अलग जुगाड़ में लगे रहते हैं इन सफ़ेदपाशों के लिए अदालत के आदेश भी कोई मायने नहीं रखते l पुलिस प्रशासन पर तो पूरी तरह जातिवाद का रंग चढ़ा हुआ है l अगर कोई पीड़ित अपनी रिपोर्ट लिखवाने जाता है तो थाने में बैठा थानेदार सरनेम सुनकर यही बोलता है “अच्छा शाले तुम्हारी जाति ही ऐसी है तभी तब सब मते रहते हो, शाले मार मार कर भूषा भर देंगे, भाग यहाँ से, अब दुबारा आया तो तेरी खैर नहीं”……अब ऐसे में एक गरीब जो न्याय के लिए दर दर की ठोकरें खाने वाला आखिर जाये तो जाये कहाँ.
और ऊपर से फिरौती के लिए अपहरण, लूट, हत्याएं और दबंगई वैसे ही हो रहे हैं जैसे सपा सुप्रीमों के दौर में उत्तर प्रदेश बदनाम हुआ करता था। हमारा संविधान कहता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं। लेकिन होता क्या है? अगर उन्हें सजा हो भी जाये तो दबंग और धनवान जेल अधिकारियों और डॉक्टरों को सम्मोहित कर जेल में ही मनचाही सुविधाए पाते हैं। सत्ताधारियों के आगे गरीब, बेबस, लाचार व्यक्ति, किसान, कर्मचारी, दुकानदार, व्यापारी या उद्योगपति, ट्रांसपोर्टर आदि का जमकर शोषण होता है। सपा सरकार को ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि “व्यक्ति का कद कितना भी बढ़ जाये, पर पांव जमीन ही रहने चाहिए। वरना मुंह की खाता है l
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