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स्त्री का सूक्ष्म संघर्ष स्त्री से ही है….

sach ka aaina
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sunita dohare (2)

स्त्री का सूक्ष्म संघर्ष स्त्री से ही है….

आज इस आधुनिक युग में भी, समस्त संसार में नारी के लिए कहीं तो बहुत ही उपजाऊ भूमि उपलब्ध है, और कहीं कहीं वो बंजर जमीन सी असहाय होकर पथरीली चुभन को सह रही है l आज कहने को भले ही महिलाएं आधुनिकता का दंभ भरती हो, अब ऐसे में आप क्या कहेंगे l में ये नहीं कहती कि पुरुष अत्याचार नहीं करते l आज नारी योग्यताओं के शिखर पर जा कर भी, दहेज़ की बलि चढ़ी तो कभी, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार से छली गई तो कभी, परित्यक्ता बनी, तो कभी किसी के घर को उजाड़ने का कारण बनी, बजह अगर देखी जाये तो यही निकल कर सामने आती है कि स्त्री ने कभी पुरुष और पुरुष ने स्त्री पर जहाँ विश्वास नहीं किया वहाँ नारी ना श्रद्धा बनी ना पुरुष को ही मान सम्मान मिला। अगर ये मान भी लिया जाये कि, नारी पर हो रहे अत्याचारों में सबसे बड़ा हाथ पुरुषों का है, तो मैं ये कहने से भी पीछे नही हटूंगी कि, नारी भी नारी पर अत्याचार करने में पीछे नहीं हटती l कहते हैं कि स्त्री का सूक्ष्म संघर्ष स्त्री से ही है। समूची नारी जाति को ये समझना होगा कि, जिस तरह कभी रक्त को रक्त से नहीं धोया जा सकता, आग से आग को नहीं बुझाया जा सकता, क्रोध से क्रोध को रोका नहीं जा सकता, ठीक उसी प्रकार नफरत को नफरत से कम नही किया जा सकता l एक स्त्री होकर, आप बेटी के लिए तो चाहती है कि वो योग्य और समझदार हो, लेकिन देवरानी और बहू के लिये आपकी सोच विपरीत होती हैं आप चाहती हैं, कि देवरानी या बहू आपसे कम समझदार आये, ताकि हमेशा आपकी मातहत बनी रहे, अक्ल मे आपसे कमजोर हो, दहेज ज्यादा से ज्यादा लाए l इसी मानसिकता वश नारी ही नारी की दुश्मन बन जाती है l आए दिन बढ़ती व्यावहारिकता, प्रदर्शनप्रियता, दिशाहीनता और संवेदनहीनता आज की मूल चिंता है। अब ऐसे हालातों में भारतीय नारी को अपनी आत्मशक्ति पहचानने की आवश्यकता है क्यूंकि इस संस्कृति व संस्कारों को केवल भारत की पूज्य नारियां ही अपनी आत्मशक्ति को जगाकर साहस, र्धेय, संयम, त्याग और तपस्या से ही जीवित रख सकती है l समाज में स्त्री-पुरुष की समानता को लेकर परिवार के सामंजस्य को बिगाड़ने की रवायतें बहुत ही खतरनाक हैं l
देखा जाये तो आज हर स्त्री कभी तो खुद अपनी फ़ितरत के कारण तो कभी अपनों के ही कारण हाशिए पर है । बस फ़र्क है, तो सिर्फ़ इतना कि हाशिए की यह रेखा परिस्थितिजन्य है l समाज और परिवार में नारी के केवल सम्मान की बात होनी चाहिए. क्योंकि स्त्री जगत की वो पवित्र ज्योति है जिसके स्वभाव में त्याग, दया, धर्म, सहनशीलता, प्रेम, छमाँ ही जीवन की धारा है l नारी जन्मदात्री है उसकी रातों को जागने का सफर, ममता ,प्यार, लाड दुलार, दुआओं में संवरता बचपन उसका अमृत रूपी दूध पीकर हष्ट-पुष्ट होता है l माँ की वाणी से मुस्कराता, खिलखिलाता, बोलना और हंसी से हंसना सीखता है l नारी जीवनदायिनी है l इस दुनियां का प्रत्येक व्यक्ति उसकी गोद में पलकर ही समाज में सर उठाकर चलने के काबिल होता है l नारी भावना प्रधान होती है अपने इन्हीं दिव्य गुणों के कारण हमारे समाज में नारी को “देवी” का दर्जा दिया जाता है.
ये सत्य है कि हर नारी अत्याचार से पीड़ित नहीं होती, लेकिन जो होतीं हैं उनमें ज्यादातर नारी का हाथ होता है l जैसे घरेलू हिंसा, बहु को प्रताड़ित करना, दहेज़ प्रथा, बहू बेटी में भेद करना ये सब नारी ही करती है l इस तरह के अत्याचार पुरुष नहीं करते, इन सब अत्याचारों की जड़ में कही ना कही नारी का रोल होता है l समाज में स्त्रियों को सास, देवरानी, जेठानी, मां, बहन, बेटी, आदि से ही ज़्यादा खतरा रहता है। इसलिए समूची नारी जाति को विपरीत परिस्थितियों में भी एक दूसरे का सम्मान करना नही छोड़ना चाहिए l जिस दिन एक स्त्री दूसरी स्त्री के दुख को समझने लगेगी, अपनी बहू को बेटी का दर्जा देगी और किसी स्त्री पर अत्याचार होता नहीं देखेगी, उस दिन समूची नारी जाति की सारी समस्याएं खुद ब खुद दूर हो जाएंगी, जिससे जगत का कल्याण होगा l इसलिए समाज को और अधिक तंदरुस्त बनाने के लिए जरुरी है कि, स्त्री को चाहिए कि वो एक स्त्री के स्तर को और बेहतर करने की कोशिश करे l नारी आत्मनिर्भर बन सके इसके लिए आवश्यकता है कि, समाज के विचार परिवर्तन हों, और साथ ही सामाजिक संकीर्णताओं से मुक्ति मिले l |गौरतलब हो कि आज सामाजिक तौर पर तो महिलाएं सक्षम है ही, राजनीतिक स्तर पर भी उनकी योग्यताएं अधिक सरल और सहज दिखाई देती हैं,कुछ उनको और उनकी सफलताओं को मद्देनजर रखते हुए अपनी विचारधाराओं को भी साकारात्मक बनाइए l आप आपस में एक दूसरे को सम्मान दीजिये l साथ ही आप अपनी सोच भी बदलिए और इस समाज में फैली हुई कुरीतियों को मिटाइए, ताकि एक स्वस्थ समाज की रचना हो सके l

सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

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