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कब तक छलकेंगे कश्मीर के आंसू ?

sach ka aaina
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कब तक छलकेंगे कश्मीर के आंसू ?

धारा 370 के कारण पाक और कश्मीर के अलगाववादी आये दिन बड़ी हिमाकत कर रहे हैं। भारत की राजनीति मे बहुत से मुद्दो मे एक मुद्दा धारा 370 बहुत बड़ा मुद्दा रहा है, जिसे राजनीतिक पार्टिया अपने अपने लाभ के लिये उठाती रही है धारा 370 पर हमेशा देश की राजनीति में उबाल आता रहा है। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है। भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं अगर ये समाप्त नही किया गया, तो आगे भी ऐसा ही होता रहेगा l कोई इसके पक्ष में है तो किसी के पास इसका विरोध करने के पर्याप्त आधार है। किसी को लगता है कि संविधान की इस धारा में संशोधन होना चाहिए तो किसी को यह बहस का मुद्दा लगता है। स्वतन्त्र भारत के लिये कश्मीर का मुद्दा आज तक समस्या बना हुआ है चूँकि धारा 370 में कश्मीर में शरीयत का कानून लागू है, इसलिये जब भी धारा 370  के बारे में बहस होती है तो उसके साथ ही समान नागरिक संहिता की बात जरूर उठती है l अगर उसी समय नेहरु जी ने अपनी दूरदर्शिता दिखाई होती तो शायद आज देश में काश्मीर का ये हाल नहीं होता, और कश्मीर के लोग अपने आपको पहले हिंदुस्तानी मानते और कश्मीरी बाद मे l
एक बात और आपकी जानकारी में होनी चाहिए कि भारतीय संविधान की प्रथम अनुसूची में भारतीय संघ में शामिल सभी राज्यों की सूची है जिसमें जम्मू-कश्मीर 15वें स्थान पर है। जम्मू कश्मीर राज्य का संविधान उपरोक्त तथ्य की पुष्टि करता है। इस संविधान का अनुच्छेद 3 कहता है कि जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। अनुच्छेद 4 के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य का अर्थ वह भू भाग है जो 15 अगस्त 1947 तक राज्य के राजा के आधिपत्य की प्रभुसत्ता में था। अनुच्छेद 147 कहता है कि अनुच्छेद 3 कभी नहीं बदला जा सकता। इसके बाद भी कोई और अनुच्छेद राज्य के साथ संघ के रिश्तों का निर्धारण करे, यह बात ही बेमानी है। देखा जाये तो आज तक आम लोगोँ को इसका कोई फाएदा नहीं हुआ। उलटे इसके कारण नेता आराम से लोगोँ का पैसा लूट रहें हैं l कश्मीर को जितनी सहूलियत और आज़ादी हिन्दुस्तान में मिली है उतनी पाकिस्तान जैसे खुराफाती, दकियानूसी और सैनिक तानाशाही जैसे राष्ट्र में कभी नहीं मिल सकती। इस धारा के कारण वहां के नेता तो मस्त है, लेकिन जनता बदहाल है.
देखा जाये तो हम में से काफी लोगों को ये पता ही नहीं कि आखिर धारा 370  है क्या जो समय समय पर लोगों की बहस और विरोध का कारण बन जाती है जिसके चलते धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर को लेकर लोगों के बीच झगड़े होने लगते हैं। वहां पाकिस्तानी झण्डे सरेआम लहराते नजर आ जाते है l ज्ञात हो कि गोपालस्वामी आयंगर ने संघीय संविधान सभा में धारा 306 ए, जो बाद में धारा 370 बनी, का प्रारूप प्रस्तुत किया था, इस तरह से जम्मू कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से अलग अधिकार मिल गए l
आपको ज्ञात होना चाहिए कि बाबा भीमराव अम्बेडकर धारा 370  के खिलाफ थे ….

बहुत ही कष्टप्रद महसूस होता है जब आज भी अधिकांश लोग यही मानते हैं कि बाबा भीमराव अम्बेडकर ने ही संविधान की धारा 370  का मसौदा तैयार किया था l बाबा भीमराव अम्बेडकर ने खुद अपने संसमरण में इसका खंडन किया है,  बाबा साहेब लिखते हैं कि जब सन 1949  में संविधान की धाराओं का ड्राफ्ट तैयार हो रहा था, तब शेख अब्दुल्लाह मेरे पास आकर कहते हैं कि नेहरू ने मुझे आपके पास यह कह कर भेजा हैं कि आप अम्बेडकर से कश्मीर के बारे में अपनी इच्छा के अनुसार ऐसा ड्राफ्ट बनवा लीजिये, जिसे संविधान में जोड़ा जा सके l बाबा भीमराव अम्बेडकर कहते हैं कि मैंने शेख की बातें ध्यान से सुनी और उनसे कहा कि एक तरफ तो आप चाहते हो कि भारत कश्मीर की रक्षा करे, उनके विकास और उन्नति के लिए प्रयास करे और कश्मीरियों को भारत के सभी प्रांतों में सुविधाये और अधिकार दिए जाएँ, लेकिन भारत के अन्य प्रांतों के लोगों को कश्मीर में वैसी ही सुविधाओं और अधिकारों से वंचित रखा जाये, आपकी बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि आप भारत के अन्य प्रांतों के लोगों को कश्मीर में समान अधिकार देने के खिलाफ हो, यह कहकर अम्बेडकर ने शेख से कहा मैं कानून मंत्री हूँ, मैं देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकता ( “I am (the) Law Minister of India, I cannot betray my country.” ) अम्बेडकर के यह शब्द स्वर्णिम अक्षरों में लिखने के योग्य हैं l यह कहकर अम्बेडकर ने शेख अब्दुलाह को नेहरू के पास वापिस लौटा दिया, अर्थात बाबा भीमराव अम्बेडकर ने शेख अब्दुलाह के ड्राफ्ट को संविधान में जोड़ने से साफ मना कर दिया था  ,
गौरतलब है कि अगर कश्मीर से धारा 370 समाप्त नही की गई तो भारत के लिए एक धीमे जहर का काम करेगी l इससे भारत की आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सुरक्षा खतरे मे है आतंकवादी खुलेआम घूमते है न तो सरकार कुछ कर पाती है न तो फौज क्योंकि, अगर फौज ने गोली चलाई और किसी आदमी को लग गई तो उसे जेल जाना पडता है, कश्मीर के जेल में उसे भयानक यातनायें दी जाती है ऐसे में कौन फौजी सुरक्षा करेगा l कश्मीर पाकिस्तान से सटा है भारत सुरक्षा की द्रष्टि से खतरे मे है l संविधान की धारा 370  ने कश्मीर के मामले में संविधान को लचार और बेसहाय बना  दिया ………….
यहाँ मैं ये बताती चलूं कि आखिर धारा 370  है क्या ?
०-भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
०-वित्तीय आपातकाल लगाने वाली धारा 360 भी जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होती।
०-धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI लागू नहीं है। RTE लागू नहीं है। CAG लागू नहीं होता।
०-भारत का कोई भी कानून लागू नहीं होता।
०-जम्मूकश्मीर का अलग झंडा है।
०-जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
०-जम्मू कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
०-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।
०-भारत की संसद जम्मूकश्मीर में रक्षा विदेश मामले और संचार के अलावा कोई अन्य कानून नहीं बना सकती।
०-धारा 356 लागू नहीं, राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं।
०-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहरी से शादी करती है तो उसकी कश्मीर की नागरिकता छिन जाती है।
०-जम्मू कश्मीर में राष्टपति शासन नही लग सकता है l
०-जैसे कि “धारा 370 की वजह से ही पाकिस्तानियो को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है । इसके लिए पाकिस्तानियो को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है। इस धारा का सबसे खतरनाक पहलू, जो हमारे कश्मीर सहित समूचे भारत में एंटीनेशनल लोगों को उपद्रव फैलाने का बढ़ावा देता है l कुछ तथाकथित मुस्लिम आज भी बहकावे में आ जाते हैं और पाक को अपना रहनुमा समझने लगते हैं। यह उन लोगों की भूल है। पाकिस्तान मजहब के नाम पर सबसे बड़ा तमाचा है। वहां मुसलमान खुद महफूज़ नहीं है। संक्षेप में कहें तो भारत का कोई भी कानून वहाँ लागू नहीं होता ।
धारा ३७० की वजह से ही हिंदुस्तान मैं पाकिस्तानी घुसपैठ कर पा रहे हैं अगर एक बार ये धारा ३७० समाप्त कर दी जायेगी तो हिन्दुस्तान मैं एंटीनॅशनलसेंटीमेंट कश्मीर का बाल बांका नहीं कर सकते l
आप ही बताइये ऐसे में क्या धारा 370 का कोई रिलोवेंश रह गया है, क्यूँ कश्मीर को एक अलग से स्टेट की तरह पला पोसा जा रहा है, क्यूँ धारा 370 को समाप्त करने की शुरुआत नहीं की जा रही है ? जब तक ये होगा कश्मीर के अन्दर बैठे हुए अलगाववादी रहेंगे भी इण्डिया में, आयेंगे भी इण्डिया में, कमाएंगे भी इण्डिया में और इण्डिया को तोड़ने की भी बात करेंगे, ये वो लोग हैं जो कश्मीर की आजादी को चिल्लायेंगे लेकिन कश्मीर के अन्दर में से जो कश्मीरी पंडित मार के, जला के और लूट के भगा दिए गए थे उनकी बात करने में ये हिचकिचाएंगे l इसलिए अगर आप देश के प्रति बफादार हैं तो इन एंटीनेशनल लोगों को एंटीनॅशनलसेंटीमेंट को एक पर्शेंट भी सपोट मत दीजिये ………..
वैसे अगर गौर किया जाये तो इस धारा में ही उसके सम्पूर्ण समाप्ति की व्यवस्था बताई गयी है। धारा ३७० का उप अनुच्छेद ३ बताता है कि ‘‘पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते है कि यह धारा कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड दिया जाये तो समाप्त की जा सकती है।
पाकिस्तान की खोपड़ी में कश्मीर मुद्दे को लेकर बहुत खुराफात भरी हुई है। पाक ये समझता है कि मुस्लिम आबादी होने के कारण कश्मीर उसका हिस्सा हो जायेगा। लेकिन ये ग़लत है l कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है, लेकिन धारा 370 की वजह से ऐसा लगता है जैसे वो कोई और राज्य हो l ये सत्य है कि हमारे जवांन अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी उसकी हिफाज़त करते है l यह किस प्रकार संभव है कि किसी एक देश के बाकी राज्यों में अलग कानून लागू हो और उसी देश के एक अन्य राज्य में अलग कानून लागू हो l धारा ३७० का मतलब सिर्फ जम्मू कश्मीर के लोगों का ही नहीं वरन भारत और समस्त भारतवासियों का भी अपमान है l
देखा जाये तो संविधान ने राष्ट्रपति को कुछ विशेषाधिकार दिए हुए हैं। यदि राष्ट्रपति हस्तक्षेप करें तो कुछ बात बन सकती है। हम हिन्दुस्तानियों ने पूरी दुनिया में फैले ताकतवर अंग्रेज़ों को अपने मुल्क से खदेड़ दिया तो क्या अलगाववादियों को हम नहीं भगा सकते। राजनीतिक रोटियां सेंकने के अलावा ऐसे रुख का कोई खास मकसद नहीं है अमल के हिसाब से देखें तो बीते 67 सालों के दरम्यान धारा 370 का वजूद काफी हद तक खत्म हो चुका है.
मुझे सरकार की इस नीति पर हैरत हो रही है इतने साल बीत जाने के बाद भी इस अतिसंवेदनशील मुद्दे को लेकर सरकार की तरफ से कुछ एक्शन होता दिखाई नहीं दे रहा है। ये है हमारी सरकार की व्यवस्था और उसकी विवशता l
आपको इस बात को जानना होगा कि “धारा के पूर्ववर्णित विधान के बावजूद, राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना के द्वारा, यह घोषणा कर सकता है कि इस धारा को रद्द कर दिया गया है।’ “लेकिन राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी करने से पहले राज्य विधानसभा की सहमति जैसा कि खण्ड (2) में बताया गया है, जरूरी होगी।’ राष्ट्रपति की घोषणा से पहले एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है राज्य विधानसभा की सहमति। दूसरे शब्दों में,यदि केन्द्रीय सरकार इस धारा को रद्द भी करना चाहे तो ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि इसके लिए राज्य की विधानसभा की अनुशंसा आवश्यक होगी। धारा 368 के अन्तर्गत संशोधित प्रावधान भी कोई सहायता नहीं कर सकते।
प्रथम सूची के अनुसार जम्मू-कश्मीर भारत का पन्द्रहवां प्रदेश है और धारा 1 इस पर पूरी तरह लागू होती है। दूसरी ओर धारा-370 अस्थायी है। संविधान के xxi वें भाग का शीर्षक है “अस्थायी, अल्पकालिक विशेष विधान’। इस प्रकार, जब धारा 370 बनाई गई थी तो इस विचार के साथ कि यह संविधान में बहुत कम समय के लिए देश के परिवर्तन के दौर तक ही रहेगी। क्योंकि राज्य की संवैधानिक सभा अब नहीं है तो धारा 370 के अन्तर्गत इसकी सहमति का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए, धारा 368 के अन्तर्गत केन्द्रीय संसद द्वारा, जो प्रदेश के लोगों का भी प्रतिनिधित्व करती है, संविधान को संशोधित किया जा सकता है। इसके बाद, राज्य की संविधान सभा की सहमति का विधान भी हटाया जा सकता है। यह विधान हटाये जाने के बाद राष्ट्रपति आवश्यक घोषणा कर सकता है। और इस तरह धारा 370 को रद्द किया जा सकता है।

मैं देशहित में “भारत सरकार” से ये अपील करती हूँ कि……इस धारा को जल्द से जल्द हटाये जाने की कार्यवाही करते हुए कश्मीर को भारत में शामिल करे, जिससे कि कश्मीर में शांति स्थापित हो और कश्मीर में भारत का कानून लागू हो सके तथा वहां के मूल निवासीओं  और पीड़ित कश्मीरी पंडितो को वहां सकूंन से रहने का अधिकार मिल सके, और कश्मीर एक साफ सुथरा और शांतिपूर्ण राज्य बन सके l ऐसा होने से वहां टूरिज्म विकसित हो सकेगा, लोगों को वहां के मधुर और अलौकिक वातावरण का आनंद मिल सकेगा और साथ ही लोग वहां बिना खौफ आ जा सकेगें l मेरी सोच है कि जो देश के लिए खतरा बन जाए इस प्रकार की धारा के पक्ष में मैं नहीं हूँ। वर्तमान संदर्भ में, जबकि जम्मू-कश्मीर बाहरी आक्रमण और भीतरी अशांति के प्रति अति संवेदनशील हो गया है और धारा 370 भीतरी अशांति फैलाने तथा बाह्र उग्रता को सरल बनाने में प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है तो यह केन्द्रीय सरकार के लिए आवश्यक हो जाता है कि वह धारा 355 के अन्तर्गत अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए धारा 370 को रद्द कर दे। इस प्रकार, यदि 370 को धारा 1 और 355 के साथ पढ़ा जाए तो 368 के अन्तर्गत 370 के उपबन्ध को रद्द करना पूर्णतया तर्कसंगत होगा। और यह शर्त रद्द करने के बाद, पूरी धारा 370 को रद्द करने की राष्ट्रपति की घोषणा स्थिति को बिल्कुल साफ और स्पष्ट कर देगी।
गौरतलब हो कि जब तक धारा 370 के हिमायती देश में कम थे, देश के दूसरे हिस्सों के लोग बड़े आराम से श्रीनगर समेत कश्मीर के दूसरे हिस्सों की सैर करते थे। लेकिन इन हिमायतियों की वजह से न सिर्फ अलगाववादियों को शह मिली बल्कि देश के ज्यादातर लोगों ने कश्मीर का रुख करना छोड़ दिया। आज स्थिति ये है कि अमरनाथ जैसी यात्रायें दहशत के साये में करनी पड़ती है क्यों l देश का बहुसंख्यक समाज देश के एक हिस्से में जाकर इतना असुरक्षित क्यों हो जाता है ? क्यूंकि कश्मीर राजनीती के चलते व्यक्तिगत स्वार्थो की ज़मींन  हो कर रह गया है l कश्मीर, सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र है और इसलिए वैश्विक शक्तियों ने भी कश्मीर समस्या को उलझाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में प्रगा़ता की राह में कश्मीर सबसे बड़ा रोड़ा है। भारतीय साम्प्रदायिक ताकतें भी कश्मीर मुद्दे को हवा देती रहती हैं। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था। इसीलिए स्वतन्त्र भारत के लिये कश्मीर का मुद्दा आज तक समस्या बना हुआ है।
केंद्र सरकार सिर्फ धारा 368 के तहत ही इस धारा को रद्द कर सकती है लेकिन इस धारा के तहत किया गया किसी भी तरह का कोई संशोधन राज्‍य में तब तक मान्‍य नहीं होगा जब तक कि उसे राज्‍य सरकार की ओर से मंजूरी नहीं मिल जाती है। कोई भी राज्‍य सरकार ऐसा कदम उठा ही नहीं सकती है । धारा 370 और धारा 1 के बीच संविधान की धारा 1 जम्‍मू एवं कश्‍मीर को भारतीय सीमा के तहत शामिल करती हैं और यह धारा 370 लागू होने वाले किसी भी राज्‍य पर मान्‍य होती है। ऐसे में अगर 370 को हटाया भी जाता है तो धारा 1 अपने आप ही राज्‍य में लागू हो जाएगी।
विदित हो कि भारतीय जनता पार्टी सहित पूरा संघ परिवार शुरुआत से ही धारा 370 के ख़िलाफ़ रहा है इसे समाप्त करवाने के लिए न जाने क्या क्या हथकंडे अपनाए गए एक अभियान छेड़ा गया था जिसके नारे थे “एक देश में दो विधान नहीं”, “370 धोखा है, देश बचा लो”
ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक धारा 370 नही हटेगी तब तक देश ऐसी आतंकवादी गतिविधियों से गुजरता ही रहेगा |

सुनीता दोहरे
प्रबंध संपादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

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