समाजवादी विचारधारा, लोहियावाद या कार्यकर्ताओं की मेहनत के कारण 2012 के विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त बहुमत समाजवादी पार्टी को मिला था। सही मायने में देखा जाये तो 2012 के विधानसभा चुनाव में मायावती से लेकर भाजपा के आजमाए हुए और टूटते बिखरते चेहरों के बीच एकमात्र अखिलेश यादव ही जनता के बीच युवा चेहरे के रूप में बचे थे l और शायद इसीलिए ही जनता के बीच समाजवादी पार्टी को लेकर अगड़े पिछड़े के गिले शिकवे की जो खाई थी और साथ ही जो धारणाएं और मिथक बने थे, मतदाताओं ने उन्हें बिसरा दिया था। आवाम ये सोच रही थी कि उत्तर प्रदेश की बागडोर अगर नई सोच के नौजवान के हाथ में आएगी तो निश्चित ही राज्य में बड़े परिवर्तन की बुनियाद रख जाएगी, लेकिन आज की सच्चाई ये है कि आजादी के बाद आज तक हमारे राजनेता सिर्फ हमारी भावनाओं एवं जज्बातों का फायदा उठाकर सत्ता तक पहुंच रहे है। कभी जातिवाद का भेदभाव तो कभी दंगा फसाद, कभी मन्दिर-मस्जिद, तो कभी महापुरूषों के नाम पर हमें उलझाकर समाज को बेवकूफ बना, सत्ता में पहुंच कर समाज का दोहन करते आ रहे हैं। क्या इस तरह हम भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई मुक्त भारत का निर्माण कर पायेगे? यह हमारा दुर्भाग्य है कि आज ज्यादातर राजनेता भ्रष्ट एवं देश के अपराधी हैं जिन्हैं जेल के सलाखों के पीछे होना चाहिए था। वही लोग सरकारें चला रहे हैं जिन्हें पुलिस की गोली का शिकार होना चाहिए था, पुलिस उनकी ही सुरक्षा मे लगी हुयी है। यह बहुत चतुराई से जनता की मेहनत की कमाई का पैसा एवं गरीब, मजदूर, किसानों, बेरोजगारों के हक को लूटकर घोटाला कर अपनी तिजोरिया भर रहे हैं। ये सत्य है कि उत्तर प्रदेश की जमीन सत्ता के गलियारों से होती हुई दूसरे राज्यों के नेताओं के लिए शुरू से ही लाभदायक रही है यहाँ हमेशा से ही सियासी हलचल का बोल बाला रहा है लेकिन ज्यादातर उठा पटक बसपा और सपा के दिग्गजों में ही रहती है जिसका सितारा बुलंद होता है वही उतने दिनों के लिए उत्तर प्रदेश की शान बन जाता है l नेताओं की पहली पसंद सफेद रंग, एक ही रंग “सफेद रंग” मोहे भाये l इस कलर को क्यों चुनते हैं नेता क्योंकि मन तो इनके काले होते हैं। और उस पर अगर काले रंग का कुरता या काली लग्जरी गाड़ी में ये चलेंगे तो इनकी छवि ही इन्हें इनके द्वारा किये हुए काले कारनामों को और काला कर देगी इस डर से बेचारे सफेद रंग अपनाते हैं। रंगीन नहीं, क्योंकि इनकी जिन्दगी इतनी रंगीन होती है। कि इनके ऊपर सिवाय ऐय्याशी के कोई और रंग ही नहीं चढ़ता है बड़ी-बड़ी व महंगी लक्जरी गाडि़यों का काफिला जब सड़क से गुजरता है। तो आम जनता सड़क के किनारे चाहें धूप हो या बारिश हो रही हो इनके जाने के इन्तजार में खड़ी रहती है। क्योंकि ट्रैफिक को रोक दिया जाता है इन सफेद धकाधक निकलती गाडि़यों के शीशे पर लगी काली फिल्म, सभी गाडि़यों की नंबर प्लेटों पर लिखे एक समान अंक, गाडि़यों के ऊपर एक-एक बत्ती सुशोभित होती है व गाडि़यों के अंदर सुरक्षाकर्मी के रूप में बैठे राइफल व बंदूकधारी और इन सबके अगुआ सफेद रंग का वस्त्र पहने हुए नेताजी एक दो चमचों के साथ और इनके साथ जुड़ी हुई मुकदमों की एक लंबी फेहरिस्त जनता की ईमानदारी को छलती हुई निकल जाती है ये कोई नई बात नहीं है उत्तर प्रदेश में ये नजारा आपको हर रोज ही देखने को मिल जायेगा, उत्तर प्रदेश की सियासत में आम हो चुके ये नजारे आवाम की बददुआये लेते हुए निकल जाते है और सड़कों पर रह जाता है भीड़ का अम्बार, जो धुप की तपिश झेलते हुए धीरे धीरे कम हो जाता है। वैसे इसमें कोई दोराय नहीं कि नेताओं की लाइफस्टाइल में जबर्दस्त इजाफा हुआ है और आवाम वहीं की वहीं मंहगाई को रोती रह गई है। युवराज की ताजपोशी करके सपा सुप्रीमो ने समाजवादी पार्टी के भविष्य की राजनीति के दरवाजे तो खोल लिए थे, लेकिन उम्मीदों के दरकने की शुरुआत अखिलेश के सीएम पद की शपथ लेने के दिन से ही शुरू हो गई थी। उत्तर प्रदेश में बीएसपी सरकार के पतन के बाद एक युवा नेता, यानी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार आई, तो लोगों को उनसे खासी उम्मीदें थी, लेकिन ‘युवा’ सीएम लोगों की उम्मीदों पर कितने खरे उतरे हैं, ये तो अवाम अब खूब समझ चुकी है l वो कहते हैं कि….. “यूँ तराशी उसने युवराज की शख्शियत, जैसे उतारी आईने में फकत अपनी तस्वीर पहले तराशा उसने फूलों से उसका वजूद, फिर दागदारों को उसका रहनुमा बना दिया…………” लगभग बीस करोड़ की आबादी वाला उत्तर प्रदेश जनसंख्या के ऐतबार से भारत का सबसे बड़ा राज्य है. सपा सुप्रीमो की इस तथाकथित पार्टी में दागदार चेहरे बेख़ौफ़ होकर अपना राग अलापते हैं और पार्टी के उच्च पदों पर बैठे रहनुमाओं के कानों पर जूं तक नही रेंगती l समाजवाद के नाम पर परिवारवाद, भाई-भतीजावाद और जातिवाद का अजब घालमेल है इसी घालमेल के चलते अपराधियों का बोलबाला है l देश का सबसे बड़ा राज्य “उत्तर प्रदेश” एक अपराध का अड्डा बन गया है। एक नहीं सात प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश में परिस्थितियां दिन ब दिन बदलती जा रहीं हैं। बलात्कार, हत्या, लूट, सांप्रदायिक दंगे और दलितों के साथ होती अपराधिक वारदातें चरम पर हैं l प्रदेश में अपराध बेखौफ फल फूल रहा है ऊतर प्रदेश की जम्हूरियत दहशत के साये में पल रही है । बदमाश बेलगाम हो गए हैं। कानून का उन्हें मानो कोई डर ही नहीं है। यूपी में जुर्म तेजी से बढ़े हैं। दिन दहाड़े लूट और हत्याओं की सनसनीखेज वारदातें थम नहीं रहीं। आवाम के खिलाफ हो रहे अपराधों में पुलिस, नेता, मंत्री और खुद सरकार भी कुछ नहीं कर रही है। ये सत्य है कि मायावती सरकार में नेता और मंत्रियों पर भी फौरन कार्रवाई होती थी। आये दिन बढ़ रहे अपराधों से पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान पैदा हो रहे है। आखिर क्या वजह है कि पुलिस अपराधों को रोकने में नाकाम साबित हो रही है या यह सभी अपराध पुलिस के संरक्षण में हो रहे है? अखिलेश सरकार प्रदेश में सामाजिक तानेबाने और सांप्रदायिक सौहार्द को भी बनाए रखने में पूरी तरह से नाकाम रही है। आज के समय में समाजवादी पार्टी की सरकार केवल इस मामले में समाजवादी है कि कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से मोहभंग के बाद के दौर में भी वह इस अवधारणा पर आगे बढ़कर अपने राजनैतिक धरातल को मजबूत करने में लगी है। उत्तर प्रदेश की आवाम के पास सपा का विकल्प बसपा और बसपा का विकल्प सपा के रूप में ही है, जबकि व्यवस्था परिवर्तन का विकल्प इन दोनों पार्टियों के पास कभी नहीं रहा। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि सपा की तुलना में बीएसपी सरकार में लॉ एंड ऑर्डर बेहतर था, लेकिन मायावती सरकार भी सपा सरकार की तरह भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी, इसलिए जनता ने उसे दोबारा मौका नहीं दिया। देखा जाये तो भौगोलिक बनावट और बहुस्तरीय सघन आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश सचमुच बहुत चुनौती पूर्ण प्रदेश है । ग्रामीण जीवन और परम्परागत वातावरण के कारण विकास और आधुनिकता के लिये अलग से दिक्कते पेश आती हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि उत्तर प्रदेश को आधुनिक विकास वाले ढांचे में ढाले वगैर देष के समेकित विकास के बारे में भी नहीं सोचा जा सकता। जिसका भी शासनकाल आया जनता के लिये नरक बन गया है गरीबो, मजदूरों, किसानों की कोई सुनता ही नहीं। महिलाओं की आबरू से खिलवाड़ किया जा रहा है। जो भी पार्टी आती है उसके विधायक और नेता गुन्डागर्दी करते हैं कानून व्यवस्था प्रदेष में चरमरा जाती है, दंगों का रिकार्ड टूट गया है ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ जो जितना बड़ा अपराधी होगा वह उतना ही बड़ा नेता माना जायेगा । प्रदेश में बलात्कार और बलात्कार के प्रयास के सैकड़ों मामले सामने आए हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएँ ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में बढती जा रहीं हैं l कभी छेड़खानी का विरोध करने पर लड़की को जिन्दा जला दिया जाता है, कभी एक महिला के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया जाता है, ये मामले इतने नृशंस हैं कि हमें यक़ीन ही नहीं होता कि इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं हम लोग ये सोचते थे कि इस तरह की घटनाए सिर्फ उपन्यासों और फिल्मों में होती हैं हालाँकि राज्य में अपराध पहले भी होते रहें हैं लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह के क्रूर अपराध हुए हैं उसने लोगों को भौंचक्का कर दिया है । पीडिता और उसके परिवार के लिए बलात्कार से लेकर, कोर्ट ट्रायल, अपील, समय और सजा यह पूरी यात्रा इतनी नाजुक, तनाव पूर्ण और इससे निपटने का हमारा तरीका समाज का नजरिया सभी कुछ इतना असंवेदनशील, अपमानजनक है, कि व्यक्ति को महसूस होने लगता है की रिपोर्ट करके गलती कर दी है मुझे लगता है कि व्यवस्था भी यही चाहती है कि आदमी निराश हो जाए ! लानत है ऐसी व्यवस्था पर l मानव और मानवता की रक्षा के लिये बनाये गया क़ानून अपनी प्रक्रिया और इसमें शामिल क्रूर मानसिकता व असंवेदनशील लोगो के कारण अमानवीय हो गया है. मुकदमो का लम्बा खीचना ही अपराधियो को बढ़ावा देता है l अधिकतर मामलों में महिलाएं उस समय बलात्कार का शिकार हुईं हैं जब वो अपनी ज़रूरतों के लिए खेतों में गई थी, क्योंकि भारत के कई गांवों में अभी भी ग़रीबों के घरों में शौचालय नहीं हैं l विदित हो कि बहुत सारे मामले ऐसे हैं, जिनकी रिपोर्ट ही नहीं हो पाती, जबकि असलियत ये होती है कि पुलिस अपराध के मामले दर्ज ही नहीं करती है क्योंकि उसे अपने राजनीतिक स्वामियों से साफ़ निर्देश होते हैं कि अपराध के आंकड़ों को कम रखना है l चलिए खैर हम बात कर रहे थे कि उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन की, वैसे उत्तर प्रदेश की सियासत पर जितने भी वृक्ष लगे उन वृक्षों ने दिल्ली से पूरे देश को छाया दी हाँ अब वो अलग बात है कि उस छाया में कितने लोग सुकून पाए कितने नहीं…… सरकार आये दिन वादे करती है l जबकि इन वादों का कोई अर्थ नहीं जब तक कि अपराधी नहीं पकड़े जाते और उन्हें सज़ा नहीं दी जाती l ये बड़े शर्म की बात है कि अधिकारी अपराध कम होने की बात करते हैं l अगर अपराध के केवल दो मामले भी होते हैं तो सरकार को अपना सर शर्म से झुका लेना चाहिए l जाहिर है, इससे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की युवा नेता की छवि दरकी है। देश के सबसे बड़े प्रदेश में अच्छे दिन नहीं आए l अखिलेश राज में कानून व्यवस्था पहले से ज्यादा बिगड़ी, अखिलेश सरकार में भ्रष्टाचार ज्यादा रहा, जिसके चलते एक साल पहले से बसपा की तस्वीर उभर रही है मायावती सभी विरोधियों पर आगामी 2017 के विधान सभा चुनाव में बीस पड़ती दिखेंगी साथ ही भाजपा का पिछला चला जादू फीका पड़ सकता है l मायावती अभी विपक्ष में हैं लेकिन अखिलेश के मुकाबले ज्यादा लोग उन्हें सीएम के रूप में देखना चाहते हैं…. सुनीता दोहरे प्रबंध सम्पादक
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