आज लोगों की बदलती जीवन शैली और बढ़ते शहरीकरण के चलते इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का ज्यादा प्रयोग होने लगा है मगर इससे पैदा होने वाले इलेक्ट्रोनिक कचरे के दुष्परिणाम से आम आदमी बेखबर हैl निसंदेह अभी पूरी दुनिया का ध्यान विकास की ओर है l साइंस की तरक्की ने हमें जो साधन और सुविधाएं मुहैया कराई हैं, उनसे हमारा जीवन पहले के मुकाबले आसान भी हुआ है l कंप्यूटर, मोबाइल फोन और इन जैसी तमाम अन्य चीजों ने हमारा कामकाज काफी सुविधाजनक बना दिया है. लेकिन इन सारी चीजों का इस्तेमाल करते वक्त इनसे पैदा होने वाले खतरों को लेकर एक दुविधा भी कायम है l सिर्फ एक मोबाइल फोन की बैटरी अपने बूते छह लाख लीटर पानी दूषित कर सकती है l देखा जाए तो इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से मार्किट फल फूल रहा है। तकनीक में नित नए बदलावों के कारण उपभोक्ता भी नए-नए इलेक्ट्रॉनिकक उत्पादों को खरीद रहे हैं। नये उत्पादों के खरीदने से पुराने उत्पादों को वह कबाड़ में बेच देता है जिससे ई-कचरे की समस्या उत्पन्न होती है l जब बिजली से चलने वाली चीजें पुरानी या खराब हो जाती हैं जिससे उन्हें बेकार समझकर फेंक दिया जाता है जो ई-वेस्ट कहलाता है। या यूँ कहें कि जिस शब्द के साथ ई जुड़ जाता है वह आधुनिकता और प्रगति का पर्याय बन जाता है I लेकिन ई (इलेक्ट्रॉनिक)-कचरा या ई-वेस्ट एक ऐसा शब्द है जो तरक्की के इस प्रतीक के दूसरे पहलू की ओर हमें इंगित करता है। जो कि है पर्यावरण की शुद्धता और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के साथ खिलवाड़ है l ई-वेस्ट का मसला सीधे आर्थिक विकास से जुड़ा है। जिस हिसाब से देश की लोगों की क्रय शक्ति बढ़ रही है। इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का इस्तेमाल और ई-वेस्ट की मात्रा उसी अनुपात में बढ़ रही है। घर और ऑफिस में डेटा प्रोसेसिंग, टेलिकम्युनिकेशन, कूलिंग या एंटरटेनमेंट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आइटम इस कैटिगरी में आते हैं, जैसे कि मोबाइल, सीडी, टीवी, कंप्यूटर, एसी, फ्रिज, अवन सीडी, आदि। ई-वेस्ट से निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं। इससे कैंसर के साथ लीवर व किडनी से जुड़ी बीमारियां बढ़ रही हैं। ई-कचरे से मरकरी, लेड, कैडमियम, क्रोमियम समेत एक हजार से ज्यादा जहरीले पदार्थ निकलते हैं जिससे जमीन और भूजल दूषित होता है इसके प्रभाव में आने से सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उल्टी, उबकाई और आंख में जलन होती है। मानसिक बीमारियां होने का खतरा रहता है। सबसे खास बात यह कि बगैर जरूरी इंतजाम व एहतियात के कचरा बीनने के लिए गरीब बच्चे ई-वेस्ट निपटान की अलग-अलग गतिविधियों में काम कर रहे हैं। इससे न सिर्फ उन मासूम बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है, बल्कि आबोहवा भी खराब हो रही है। कंपनियां एक बार सामान बेच कर निश्चिंत हो जा रही है। लोग भी अपने सामान कबाड़ियों को बेच दे रहे हैं। जो इन्हें तोड़-फोड़ कर अधिक प्रदूषण फैलाने के काम करते हैं। फिलहाल, हमें इसके निपटान का कारगर तरीका ढूंढना ही होगा। जरूरी यह भी कि दूसरे देशों से और राज्यों से आने वाले ई-कचरे पर भी रोक लगे। 70 फीसदी ई-कचरा सरकारी, लोक व निजी उद्यमों से निकलता है। जबकि 15 फीसदी हिस्सेदारी घरेलू सामानों की रहती है। देखा जाये तो ई-कचरे कि वजह से पूरी खाद्य श्रंखला बिगड़ रही है l ई-कचरे के आधे-अधूरे तरीके से निस्तारण से मिट्टी में खतरनाक रासायनिक तत्त्व मिल जाते हैं जिनका असर पेड़-पौधों सहित मानव जाति पर पड़ रहा है l पौधों में प्रकाश संशलेषण कि प्रक्रिया नहीं हो पाती है जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन के प्रतिशत पर पड़ रहा है l जिन इलाकों में अवैध रूप से रीसाइक्लिंग का काम होता है उन इलाकों का पानी पीने लायक नहीं रह जाता है l यहाँ ये कहना उचित होगा कि तकनीकों के सृजन, मशीनों के उन्नत विकास की आपाधापी और इनफार्मेशनहाईवे के इस मकड़जाल ने हमारे इर्द गिर्द एक वर्चुअल दुनिया विकसित कर ली है जिससे निजात पाना मुश्किल सा लग रहा है। ये सच्चाई कि कचरा प्रबंधन को लेकर सरकार के लचर रवैये के कारण कई शहरों के परिवेश पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इन शहरों में प्रतिदिन निकलने वाले कचरे से लेकर ई-कचरा समस्या बनता जा रहा है। कचरा प्रबंधन के नियमों का अनुपालन नहीं हो पाने के कारण ई-कचरे को लेकर निर्धारित गाईड लाईन के अनुसार ई-वेस्ट के प्रबंधन न होने से समस्या गहराती जा रही है l ई-वेस्ट से निपटने का सबसे अच्छा मंत्र रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकलिंग का है। यानी इलेक्ट्रॉनिक्स को संभलकर और किफायत से इस्तेमाल करें, पुराने आइटम को जरूरतमंद को दे दें या बेच दें और जिन चीजों को ठीक न कराया जा सके, उन्हें सही ढंग से रीसाइकल कराएं। अब ऐसे मैं सरकार और जनता, दोनों को अपने अपने स्तरों पर जागृति की जरूरत है, अन्यथा यह हमारे ही गले की फांस बन जाएगी l साथ ही इनके निपटान के लिए वैश्विक स्तर पर उन्नत मॉडल विकसित किए जाए जिसमे ग्राहकों से इ-कचरे के कलेक्शन से लेकर डंपिंग और उनके रीसाइकलिंग तक की प्रक्रिया शामिल हो । सरकार को चाहिए कि वह ई-कचरे के प्रबंधन के ठोस तथा व्यावहारिक नियम बनाए और उनका पालन सुनिश्चित करें। साथ ही उपभोक्ताओं में गैजेट के अंधाधुंध इस्तेमाल करने से बचने की समझदारी विकसित हो तभी बात बन सकती है l इलेक्ट्रानिक और इलेक्ट्रिकल सामान बनाने वाले उत्पादकों के लिए राष्ट्रीय नीति लागू हो ताकि नियमों का उलंघन करने वालों की संख्या कम हो l वहीँ इलेक्ट्रानिक और इलेक्ट्रिकल सामानों की व्यापक उपस्थित को देखते हुए विशिष्ठ संग्रह केंद्र भी शुरू होने चाहिए l साथ ही उत्पादकों को ई-कचरे के संबंध में व्यापक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए l सुनीता दोहरे….
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