कभी जब नितांत अकेली होती हूँ तो मैंने अपने हिन्दुस्तान की आवाज सुनी है। मेरा दुखी मन व्यथित और विचलित हो उठता है अक्सर मेरे कानों में एक ही आवाज़ गूंजती है कि वो दिन कब आएगा जब इस देश से भ्रष्टाचार और गरीबी की जड़ें जड़ से उखड जाएँगी l हमारा भारत पाक और पवित्र है, वो इसलिए कि इस देश में ऐसे वीर पैदा हुए जिन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए हुए इस देश को आजादी का तोहफा दिया l लेकिन आज के हालत इसके ठीक उलट हैं. आज के समय में “नेता” शब्द इतना बदनाम हो गया है कि इसे सुनने मात्र से ही मन घृणा से भर जाता है क्यूंकि जो नेता सेक्युलरिज़्म की वकालत करते नज़र आते है वही जातिवाद की राजनीति करते भी नज़र आते है फिर किस बात की सेक्युलरिज़्म l जब आप देश को छलनी करने की राजनीती करते हुए जातिवाद को बढ़ावा देते है। नेता यानि लीडर और लीडरशिप यानी नेतृत्व करना l लीडर एक ऐसा शब्द है जिसके नाम को सुनते ही सफ़ेद कपड़ों में लिप्त एक लिजलिजा पदार्थ जो जिसके हाथ लग जाए तो छोड़ देता है एक ऐसा दाग जिसके लगने पर कालिख ही नजर आती है और वही लीडरशिप एक ऐसा शब्द है जो जेहन में आते ही राजनीतिज्ञ अथवा राजनीती का बोध कराता है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है |इसका दायरा असीमित है एक अच्छा शासक या नेता बनने के लिए अपने व्यक्तित्व व स्वभाव को इतना सरल और सहज बनाकर रखना चाहिए जिससे कोई भी व्यक्ति बेझिजक आपसे संपर्क कर सके l क्योकि कई बार देखा जाता है क़ि व्यक्ति का विराट व्यक्तित्व ही उसकी नेतृत्व छमता को प्रभवित करता है | अच्छे लीडर का सबसे बड़ा गुण होता है कि आपका नेत्रित्व भी प्रभावशाली होना चाहिए l नेता बनने पर जब आपकी लोकप्रियता बढ़ेगी तो उस समय आपकी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है क्योकि आवाम की आपसे अपेक्षाये भी बढ़ जाती हैं l इसलिए जब इन्हीं दलों को पूरे पांच साल काम करने का मौका मिलता है, उस दौरान ये इन वादों पर अमल क्यों नहीं करते ? वायदों का पिटारा ऐन चुनाव के वक्त ही खोलना क्या इस बात का परिचायक नहीं है कि यह लालच अथवा कवायद मतदाता को घूस देने की कोशिश करके अपना उल्लू सीधा करना भर है। ये नेता अपनी राजनीति की दुकान चमकाने के लिए हमारे धर्म और मज़हब को बदनाम करने मे लगे हैं l ये सत्य है कि जनता ही अपने शासक को चुनती है । क्यूंकि आज हमारे देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में नागरिकों के कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि वे योग्य और होनहार व्यक्ति को सरकार की जिम्मेदारी संभालने के लिए चुनें। आजादी के बाद अब तक हुए चुनावों में देश की जनता ने अपने शासक चुनने में अक्सर गलती ही की है l हरबार बड़बोले और दंभी नेताओं को ही आमतौर पर लोगों का समर्थन हासिल हुआ है l आज के नेताओं के तो क्या कहने l इनकी हर रैली में जातियों के नाम पर दिए गए भाषण उत्प्रेरक होते है जातियों के नाम पर वोट पाने के लिए एक-दूसरे के आगे निकलने की होड़ मची रहती है l सबसे आश्चर्यजनक बात तो ये लगती है कि इनके भाषणों को सुनकर जनता जमकर तालियां बजाती है। नेता भी इन तालियों को मतों से जोड़कर देख लेते हैं। और आवाम देश के विकास, विधि-व्यवस्था की बिगड़ती हालत, महंगाई और भ्रष्टाचार को भूलकर इनकी हाँ में हाँ मिलाती हैl चुनावी समर में उतरने से पहले तकरीबन सभी राजनीतिक दल देश की तस्वीर बदलने के वादे के साथ लोकतांत्रिक शुचिता की बात करते हुए दिखाई देते हैं लेकिन मतदान की तारीखें करीब आते ही उनके सुर बदल जाते हैं l चुनावों की इस प्रतिष्ठा की लड़ाई में सारे आदर्श और सारे सिद्धांत भुला दिए जाते हैं और सभी दल विजयी होने के लिए हर पैंतरा आजमाते हैं। हमेशा से भारत का दुर्भाग्य रहा है कि नेताओ को सत्ता चाहिए, देश का विकास नही.वो कहते हैं कि…..
सिसक रहा है देश…
सिसक रहा है देश दलों की, घटिया गुटबाजी में सरकारी ओहदे बिक जाते, रात की राम जुहारी में इक हूक उठी लाचारी में, नेता व्यस्त दलाली मे अच्छे अच्छे औंधे हो गये, लोकतंत्र की रखवाली मे सीधे साधे भ्रमित हो गये, संसद के गलियारे में विकास के मुद्दे धरे रहे, लफ्फाजी और गाली मे हर थाने में आका बैठे, जुर्म की खुला बाजारी में बड़े बड़े हैं भरते पानी, कोतवाली की चारदिवारी मे मेहनत की रोटी भी झूठी, नोटों की झलकारी में निर्धन की रोटी रखी है, धनवानों की थाली में इंसानी जमीर बह गया, भ्रष्टाचार की नाली में झूठी हमदर्दी दिखलाकर, नेता करे है छेद थाली में सोने की कुर्सी की खातिर, चले जुबान गाली में अच्छे नेता भौंडे हो गये, कुर्सी की दलाली में………….. इन हालातों को देखते हुए सरकार को चाहिए वो ऐसे काम करे जिनसे आम-आदमी को राहत मिले। l मेरा देश के जागरूक नागिको से अनुरोध है ऐसे नेताओ का पर्दाफाश करे इनको देश की बहुसंख्यक पावर दिखाए, सेक्युलरिज़्म का सच्चा पाठ पढ़ाये। हमारा नेता ऐसा हो जो जनता का दर्द समझ सके, जाति मजहब से परे हटकर कार्य करने वाला हो l व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति की बजह से वो राजनीति में ना आया हो बल्कि समाज सेवा ही उसका मकसद होना चाहिए l शिक्षित होने के साथ साथ वह शिक्षा और स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने के प्रति समर्पित हो और जनता की सेवा को अपना धर्म और कर्म मानते हुए देश और समाज के उत्थान के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाला हो l अपने बच्चो को सरकारी स्कूल में इमान के पैसे से पढ़ाता हो, चोरी और बेईमानी को मन से जो पाप मानता हो इसके साथ ही देश और देशवासियों की सुरक्षा उनकी प्राथमिकता होनी चाहिये……. सुनीता दोहरे प्रबंध सम्पादक इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
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