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जो कर गयी घायल, मेरे खूने जिगर को पानी
वो कौन सी बूटी थी, जो मैं जज्ब ना कर सकती थी
आहिस्ता अहिस्ता मैं बूँद से, दरिया में ढली
मैं छोटी नाव सही, पर समुन्दर को लांघ सकती थी……
लिख लिख के पन्ने को मोडने वाले
मैं भी अपना हर दर्द कागज़ पे उतार सकती थी
सजा तो तुमने दी और देके जुदा हो भी गये
ये तो पता होता मुझे, जो मिली वो दफा कौन सी थी…….
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२-
कभी किसी की उम्मीद तो, कभी चाहतों के वास्ते
यूँ तो हम बैठे रहे उम्र भर, तेरी बन्दगी के वास्ते
सुना है इंतज़ार ज़रूरी है गमें दर्द उठाने के वास्ते
लो जी हम खुद बदल गये, तेरी तमन्नाओ के वास्ते……
मेरे अपने कुछ तजुर्बे, कुछ ख्यालात थे देने के वास्ते
सुलगी कितनी करूणा, बांचे कितने संदेश तेरे वास्ते
रही भीड़ में झूठ बनकर हंसने और हंसाने के वास्ते
लो जी जला लिया घर, तेरे घर में रौशनी देने के वास्ते…….
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३-
जब छलक आये आंसू, निगाहों से अगर
तो मयखाने में जाके पनाह लीजिये
जब हुश्न वाला कोई, तोड़ दे दिल तेरा
दो घूँट मयखाने में, मय के, लगा लीजिये
यूँ तो मदिरा के कई जाम, मयखाने में पिये
उनकी आंखों की मय से, कुछ बढ़कर नहीं
पी के मय, लम्हा-लम्हा दर्द अपना भुला दीजिये
कहीं अजनबी मोड़ पर, ठहर जाए जब जिंदगी
तो महबूब की आँखों की, मय का नशा लीजये
गम-ए-जिन्दगी को दर्द से जब, सिलते रहना पड़े
दिल के घावों पे, पी के मय को, मरहम लगा लीजिये…….
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४-
इस दुनियाँ में दर्द के, पैमाने बहुत हैं
रंजो गम के इस जहाँ में, मायने बहुत हैं
जहाँ पी जाते हैं मैं को, मय में, वो मयखाने बहुत हैं
हो जाओ अगर तन्हा, तो रहने के ठिकाने बहुत हैं
ना मिलना हो किसी से तो, ना मिलने के बहाने बहुत है
जल जाये अगर शमां, तो जलने को परवाने बहुत हैं
ना हो कोई अपना , तो अनजाने बहुत हैं
इस शहर की तनहाई में, इश्क़ के दीवाने बहुत हैं
सुनने वाला हो कोई तो, सुनाने को अफसाने बहुत हैं
इस शहर की भीड़ में, बेगाने बहुत हैं ……………
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५-
मुकम्मल हो जाते गर अलफ़ाज़ मेरे
तो खुदा से मैं, नूरे जिगर मांग लेती
मुकम्मल हो जाती, गर इबादत मेरी
तो दुआओं में सबकी, खुशी मांग लेती
मुकम्मल हो जाते जो, दीदार तेरे
तो फिर कोई हसरत, मैं आने ना देती
मुकम्मल हो जाते, जो क़दमों के निशाँ तेरे
तो सजदे में हर रोज़, सर को झुकाती
गर राहों में तेरी, काँटों की होती कतारें
तो अपने आँचल को, तेरे क़दमों में बिछाती…….
………सुनीता दोहरे ……
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