sach ka aaina
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शिद्दत से जो की जाए, हुई है क़द्र हर इक इबादत की
उसकी क़ीमत नहीं होती, जो मुफ्त में लोग लेते हैं
ये समझ ले दोस्त तू भी, दर्द कभी बेजुबां नहीं होता
दिन हर एक का बदलता है, लेकिन जब वक़्त आता है
तुम कभी मेरी शराफत को, मेरी बुजदिली मत कह देना
चले जब तक नही ट्रिगर, लगे असलहा एक खिलौना है ….
सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
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