मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के विरोध में इस योजना से प्रभावित होने वाले लोग पिछले 13 दिनों से शिवराज सरकार का विरोध कर रहे हैं। सरकार ओंकारेश्वर बांध की ऊंचाई 189 मीटर से 191 मीटर तक बढ़ाने की तैयारी में है। इसके प्रभाव में आने वाले लोग घोंघलगांव में जल सत्याग्रह करने की जगह के नजदीक ही टेंट लगाए हुए हैं। पानी में लगातार बैठे रहने से सत्याग्रहियों की तबीयत अब बिगड़ने लगी है। कई लोगों की त्वचा अब गलने लगी है तो कई बीमार पड़ गए हैं। त्वचा गलने से कई लोगों के शरीर से अब खून निकल रहा है। डॉक्टरों ने इन्हें पानी से बाहर आने की सलाह दी, लेकिन उनकी सलाह और खून निकलने की परवाह न करते हुए ये लोग अब भी डटे हुए हैं। गौरतलब हो कि पानी में शरीर गला रहे इन सत्याग्रहियों ने अपने विरोध को गीतों की आवाज दे दी है। इनके गीतों में, ‘शिवराज ने करी मनमानी, घोंघलगांव में भर दिया पानी, आश्वासन दिया वादा झूठा किया, किसान की बात न मानी’ जैसे गीत शामिल हैं। इन लोगों की नाराजगी की एक वजह स्थानीय सांसद और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान का वह बयान भी है जिनमें उन्होंने अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे इन लोगों के संघर्ष को नौटंकी बताया था। देखा जाये तो शिवराज सरकार सवेदनशील हो गयी है इनको किसानों की कोई चिंता नहीं है ! जल सत्याग्रह कर रहे मध्य प्रदेश के घोंघल गांव के लोग लगातार 13 दिनों से पानी में खड़े रहकर मध्य प्रदेश सरकार का विरोध करते हुए इन किसानों के पैरों में खून निकलते देख तो ऐसा लगता है कि वहां की सरकार ने आंखों में सूरमा डाल रखा है तभी तो दिख नहीं रहा है मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं को दरकिनार करके राज्य सरकार किस प्रकार की तरक्की को अपनी उपलब्धियों की फ़हरिस्त में शामिल कर जनता के सामने विकास की तस्वीर पेश करती है? क्या विकास जिंदा इंसानो के लिये करवाया जा रहा है या विकास के नाम पर जिंदा इंसानों की मौत का फरमान लिखने का प्रयास किया जा रहा है? क्यों नहीं मध्य प्रदेश सरकार प्रभावित किसानो को दूसरी जगहों पर भूमि उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है? मेरी राय है कि जब तक वैकल्पिक व्यवस्था न कर दी जाये तब तक सरकार किसानों को जमीन से बेदखल न किया जाये ! मीडिया के पास सत्ता की दलाली से फुर्सत नहीं है क्यों ये किसान आन्दोलन या आत्महत्या करने से पहले अपनी राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि सरकार आकर उनकी कुछ मदद करेगी l देशभर में बैमौसम बारिश ने किसानों का सब कुछ जैसे बरबाद कर दिया। इसी खराब हुई फसलों का अंबार लग रहा है उनकी उम्मीद सरकार पर टिकी थी, लेकिन सरकारें जिस तरह से हमेशा से किसानों के साथ मजाक करती आई हैं, वैसा ही इस बार भी हुआ। किसानों की रही सही उम्मीद भी जाती रही जिससे किसान फांसी के फंदे पर झूलने को मजबूर हो रहे हैं। फसलों की बर्बादी और सरकार की नाकामी ही उनकी आत्महत्याओ की वजहें बन रही है ! सुनीता दोहरे..
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