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दबे हैं जो राज पीके में, अगर लब खोल दूँ अपने तो कत्लेआम हो जाए

sach ka aaina
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दबे हैं जो राज पीके में, अगर लब खोल दूँ अपने तो कत्लेआम हो जाए

उत्तर प्रदेश में आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ टैक्स फ्री हो गई है। फिल्म पीके के खिलाफ हिन्दूवादी संगठनों के जोरदार प्रदर्शन के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बुधवार को इसे राज्य में मनोरंजन कर से मुक्त करने के निर्देश दे दिए थे इसी के चलते उत्तर प्रदेश में जगह-जगह हिन्दू युवा वाहिनी और कुछ अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं ने सिनेमाघरों के बाहर और अन्दर प्रदर्शन व तोड़फोड़ की थी और अभिनेता आमिर खान के पुतले जलाए थे। गौरतलब है कि “पीके” में धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले दृश्य और संवाद होने का आरोप लगाकर हिन्दूवादी संगठन इसके खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन इन संगठनों का तोड़फोड़ करके प्रदर्शन करना कहाँ तक उचित है मेरे हिसाब से अगर किसी को किसी फिल्म से शिकायत है तो उस फिल्म का विरोध करने का सबसे अच्छा तरीका है कि उस फिल्म को ना देखिये !
मेरे नजरिये से यह आपत्ति गलत है कि पीके में किसी एक धर्म को निशाना बनाया गया है। दरअसल, फिल्म में धर्म को निशाना बनाया ही नहीं गया है। निशाने पर तो पाखंड है। दूसरे ग्रह से आया प्राणी सभी धर्मों की शरण में जाता है, लेकिन ‘कन्फ्यूजिया’ जाता है। फिल्म का संदेश यही है कि अगर ईश्वर ने खुद लोगों को हिंदू या मुसलमान बनाया है तो फिर पैदा होते ही बच्चे के बदन पर कोई चिन्ह होना चाहिए।
देखा जाए तो फिल्म PK, धर्म के नाम पर पाखंड की दुकान चलाने वाले पाखंडी स्वामियों और बाबाओं की पोल खोलती हैं ! पीके की कहानी धर्म के नाम पे धंधा करने वालों ठेकेदारों पे केंद्रित है जिसने लगभग हर धरम के ठेकेदार को टारगेट किया है कहानी के मुताबिक कुछ ठेकेदार ज्यादा टारगेट हो गए ! लेकिन सभी ठेकेदारों के लिए बात एक ही कही गयी है जिस भगवान, अल्लाह, गॉड का भय दिखाकर इन लोगो ने इन्सान को इन्सान से अलग किया हैं समाज को समाज से बांटा हैं और अपने कर्मो को भाग्य के सहारे काम करने का धंधा बना रखा हैं उसी अंध भक्ती को अपने सुंदर अभिनय से समाज के सामने लाने का काम पीके फिल्म के नायक आमिरखान, डायरेक्टर और प्रोडूसर ने किया हैं !
फिल्म के एक सीन में भगवान शिव के वेश में एक कलाकर को बाथरूम में जाते हुये और भागते हुए दिखाया गया है मैं उन सबसे ये पूछना चाहूंगी कि जिसकी बजह से इन धार्मिक जाहिलों ने देश में अराजकता फैला रखी है तब उनके धर्म का अपमान नहीं होता जब हनुमान, शिव या किसी और देवी देवता का रूप धरकर घर घर भीख मांगते हैं और लोगों से चंदे के लिए जोर जबरदस्ती करते हैं तो वो क्या सनातन धर्म का प्रचार करते फिरते हैं ? शिवजी के इस अपमान पर उन्होंने कभी कोई ऐक्शन लिया ? सच तो ये है कि रामलीला में हम जिस हनुमान जी के किरदार पर जय बजरंगबली का नारा लगाते हैं वो मंच के पिछवाड़े हनुमान जी के गैटअप में अक्सर बीड़ी पीता और तम्बाकू खाता नजर आता है ! पीके का विरोध करने वाले सिर्फ एक बार किसी बाबा के द्वारा किये गये बलात्कार की शिकार किसी एक भी लड़की से मिल लें, उनके परिवारजनों से मिल लें सत्यता से उनका साक्षात्कार हो जायेगा और बाबाओं के प्रति जो उनकी श्रद्धा है, वह शायद उड़नछू ही हो जायेगी और इसी के डर से अब इन धर्म गुरुओं के सामने सबसे बङी समस्या यह हैं की कहीं हमारे अंधविश्वास की दुकान बंद न हो जाय, अपने धंधा की चिंता तो सबको होती हैं !
पीके फिल्म का विरोध करने वाले लोग सिर्फ जाति धर्म के नाम पर अशांति फैलाना चाहते हैं इस फिल्म का मकसद एक ही है भगवन के मंदिर मे चढ़ावा देना बंद करो और मजार मे चादर चढ़ाना बंद करो जितने का चादर मजार मे चढ़ाते हैं न, उतने का एक चादर या कपड़ा किसी गरीब को दे दोगे तो अपनी पूरी जिंदगी तक दुआ देता रहेगा और मंदिर मे दान देने से अच्छा हैं जो मंदिर के बाहर भिखारी बैठते हैं उन्हें कुछ खिला दो भिखारी भी खुश और जिसने उस भिखारी को बनाया हैं वो भी खुश !
मेरा मानना है कि फिल्म ‘पीके’ कुछ जरूरी सवालों को फिर से उठाती है जो यूरोपीय पुनर्जागरण के दौर से ही उठाए जाते रहे हैं, और किसी आधुनिक समाज की बुनियाद इन सवालों के बगैर पक्की नहीं हो सकती। फिल्म न ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठाती है और न लोगों को सलाह देती है कि वे ईश्वर को ना मानें। फिल्म बस ‘रांग नंबर’ लगाने के खिलाफ है जिसकी वजह से ‘तपस्वी जी’ जैसे लोग, आम लोगों की मेहनत की कमाई लूटकर अपना घर भरते हैं। एक तरह से फिल्म लोगों को ‘तर्क’ करने के लिए प्रेरित करती है, ताकि उनके डर और अभाव का फ़ायदा कोई पाखंडी ना उठा ले। ये फिल्म ‘आशाराम-रामपाल’ युग में यह एक अहम संदेश देती हुई नजर आती है कुछ भक्त धरम के नाम पर अपनी आँख इन जैसे भक्त ही संत रामपाल, आशाराम, निर्मल बाबा और किसिंग बाबा जैसे ढोंगियों का शिकार होते हैं अगर आपको पीके देखनी ही है तो उसके मैसेज पर ध्यान दीजिये यानि कि असली भगवान या ख़ुदा की लोकप्रियता को कैश कराने के लिए जिन पुरोहितों और मौलवियों ने फ्रंट कंपनियाँ खोलकर ‘यहाँ असली ख़ुदा और भगवान मिलता है’ का बोर्ड लगा रखा है, उनसे बचें और अपना ख़ुदा और भगवान स्वयं तलाश करें….

सुनीता दोहरे…...

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