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वो रोज़ व्यथित हो उदित होती है, क्योंकि उम्मीदों के पाँव भारी है

sach ka aaina
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sunita dohaare


नारी अपनी समूची आत्मा और देह से अनंत गहराइयों तक अपने पति यानि की पुरुष को प्यार करती है, कभी कभी मन सोचने पे विवश हो जाता है जब “मैं” और “तुम” से “हम” शब्द नही बनता तो अटूट प्यार का ये बन्धन बेमानी है ! मैं अपने इस लेख में एक नारी के दिल में उठी उस व्यथा को बताने की कोशिश कर रही हूँ ! लेकिन इसके पहले नारी ह्रदय का भाव महज कुछ चन्द लाइनों में आप तक पहुँचाने की कोशिश कर रही हूँ ! गौर फरमाइयेगा कि …….
सुन सखी की बात सुहानी, “देहरी” हँस के बोली, रानी
हाँथ की मेहँदी सुर्ख सहेली, खुल के कह गई बात पुरानी
घूँघट बना गया लाज का पर्दा, दो नयनों की कारस्तानी
आँखों ही आँखों में कह दी, झूठी सच्ची एक कहानी,
चटक चांदनी खुल के खिल गई, चंदा ने जब की शैतानी
हँसते हँसते दोहरी हो गई, वो टूटी सी दीवार पुरानी
महक उड़ा कर कहती फिरती, मैं हूँ रात में रात की रानी
बिन बादल ही झूम के बरसी, कहती घूमे दुल्हन की नथनी
पायल, बिछिया, मेहँदी, कंगना, देते है सौगात सुहानी
तू मेरे जीवन का गहना, दे जा मुझको प्रेम निशानी !!!!!

सुना है भावनाएं शब्दों को सच्चे मित्रों की तरह जोड़तीं हैं जब नारी नई नवेली दुल्हन बनकर अपने संस्कारों को वहां ले जाती हैं जहाँ वो कभी नहीं गई होती, पति से मिले वो प्रेम के एकांत क्षण उसके अपने होते है जिन्हें संजोकर वो ताउम्र रखती है! प्रेम के सब्जबाग खिले रहते हैं लेकिन तभी तक, जब तक जिन्दगी की उठा पटक नहीं होती! सच्चाई से कोसों दूर दुल्हन के ख्वाब सजते और संवरते रहते हैं पर सच तो ये है कि हकीकत ख्यालों की दुनियां से बहुत इतर होती है जब दोनों रिश्तों को इसका भान होता है तब विवाह के पहले के हसीन सपनों में किचन के मसालों की गंध आने लगती है क्योंकि तब तक प्रेम का इत्र उड़ चुका होता है दुल्हन बन आई नारी ताउम्र अपनी मांग में सिंदूर सजाकर उन भावनाओं को सहेजती रहती है जिन्हें कभी कुंवारे ह्रदय ने कुलांचे मारकर संजोया था !!!!….. दिन, महीने, और साल बीतते जाते हैं पल पल जलती चूल्हे की आंच की तपन रिश्तों की मधुरता को विलीन करने लगती है और धीरे धीरे रिश्तों की गर्मी एक ठन्डे रेत के ढेर में तब्दील हो जाती है !!!  यथार्थ की विडम्बना देखिये पति रिश्तों को संवारने के लिए दिन रात मेहनत करता है अपने बच्चों और पत्नी को हर सुख देने के लिए अपनी जरूरतों को ताक पे रखकर दुनियां की वो हर ख़ुशी खरीदना चाहता है जो उनके परिवार को सुकून दे, इसी उधेड़बुन में उलझ कर रह जाता है और पीछे छूट जाती हैं पति और पत्नी के बीच की वो छोटी-छोटी खुशियाँ जिनकी उम्मीद दिल में सजाये पत्नी बिलखती रहती है…..सुना क्या समझा भी है कि पति-पत्नी का रिश्ता अगर मधुर हो तो जिंदगी हसीन लगती है, लेकिन इसमें अगर कड़वाहट आ जाये तो जीवन नर्क बनते देर नहीं लगती ! वही दूसरी तरफ अपने पति की बेबसी से अनजान पत्नी अपने मन में अनेकों ख्वाहिशे लिए हुए इसी उम्मीद में जीती है कि शायद किसी दिन वो कहें कि….. महज घर के काम काज, खाने, पीने और इतनी मेहनत करने के लिए नहीं बने हैं ये तुम्हारे हाथ, ये तो बने हैं मेरे हांथों में रहने के लिए क्योंकि ये हाथ तो अच्‍छे लगते हैं सिर्फ मेरे हाथों में, जब कभी तुम इन हांथों को थाम लेती हो तो मेरा हर पल दीवाली हो जाता है, और जब कभी मन दुखी हो तो सहज ही वो दो हाथ बड़ी ही नफ़ासत से इन गिरते आंसुओं को अपनी अंजुरी में भरके कहें कि तुम्‍हारे इन झरते आसुओं को मैं गिरने न दूंगा, देखो तो मैंने अपने नेह की एक गांठ और लगा दी है इसे सदा बांध के रखना, जब भी तुम सुबह की चाय अलसाए चेहरे से मेरे हांथों में थमाती हो, तो मेरी हर सुबह ईद हो जाती है…………
कुछ इसी तरह के अल्फाजों की प्रतीक्षा पत्नी ह्रदय करता है जबकि नारी ह्रदय का व्यथित मन ये खूब जानता है कि धरातल की दुनिया स्वप्नों की दुनियां से एकदम उलट होती है !
ईश्वर गवाह है कि अग्नि के समक्ष लिए हुए उन पवित्र सात फेरों की गरिमा में बंधकर ये रिश्ता इतना निखर जाता है जिसका नूर पत्नी की आँखों में करवाचौथ के दिन देखने को मिलता है !
सारे रिश्तों को निभाते हुए नारी अपने पति के अरमानों को सफल करने के लिए एक पत्नी रूप में कई किरदारों को जीती है…कभी एक माँ की तरह उसे संभालती है, कभी बहिन की तरह दिलासा देती है, कभी दोस्त बनकर सलाह देती है और पत्नी बनकर सवांरती है कभी सोचा है कि कितना पारदर्शी और अलौकिक है “मैं” और “तुम” से मिलकर बना “हम” नाम का ये मीठा बंधन !
पत्नी कभी देह की नदिया बनकर अपना सर्वस्त्र सौंप देती है वो अपने एक स्पर्श मात्र से पति के मन की पीड़ा का हरण कर लेती है…… लेकिन जब भी पत्नी का ह्रदय अपनी इस व्यथा को पति की आँखों में झांककर, तुमसे “तुममें” समाकर “मैं” और “तुम” को “हम” बनाने के लिए प्रयत्न करने की कोशिश करता है तो पति ह्रदय सोचने लगता है ऑफिस वर्क की, या फिर रोजमर्रा की वही घिटपिट, या फिर सोशल साईटस को खोलकर उसमें समा जाना या फिर दोस्तों से मोबाइल पर घंटों बातें करना अगर इनसे थक गये तो अपने लेपटॉप पर सन अस्सी के दशक से लेकर आज तक की नई पुरानी उन तमाम फिल्मों को देखना, मानो पतियों के लिए मूवी देखना बहुत ही अहम् वर्क है इसके बिना मानो ऑफिस में एन्ट्री नहीं मिलेगी !
इस तरह की दिनचर्या देखकर पत्नी का दिल और मन ना चाहकर भी नफरत की दीवार उठाने लगता है एक ऐसी नफरत जो कभी प्रेम में बदलती है तो कभी आंसुओं की धार बनकर आँचल में समां जाती है ! उनके दुख उन्हें बेतहाशा विचलित करते हैं, तो कभी मन विचलित हो यूँ सोचता है कि एक भरे-पूरे परिवेश में पति प्रेम के सामने अपनी पहचान खोना कितना सुखद है एक ऐसे पथिक के प्रेम की तरह जिसके पास निरंकुश संवेदनाएं न होकर आदर्शों के कम्पास में त्याग की देवी, दुःख को समेटने की ताकत और मानवता की दिशाएँ हैं जो फल फूल कर एक विशाल वृक्ष बन चुकी हैं जिनकी टहनियों ने चारो तरफ से उसे समेट रखा है ताकि वो हमेशा संवेदनाओं के इन जंगलों में बस चलती रहे, बस एक उसका हाथ अपने हांथों में लिए हुए ! प्रेम में तपकर न जाने कब वो प्रेयसी से पत्नी बनी गयी, ह्रदय पर चलती छुरियों की पैनी धार से बचने के लिए उसने अपनी आत्मा के हज़ार टुकड़ों के मुक़ाबले अपनी देह के सौ टुकड़े कर देना ज्यादा उचित समझा और ता-उम्र रिश्तों की मर्यादा को निभाने का प्रण लेकर अपनी पीठ पर अपने ही टुकड़े बाँध कर फिर रही है,  ज़िंदगी ने उसे पीठ के दर्द दिए हैं बस एक ही सवाल के जवाब को पाने के लिए कि आख़िर शान्ति और सन्नाटे में कोई तो फ़र्क होता होगा ना जाने कब उम्र की सारी बारिशें, नमक के टीलों में बदल गई अचानक हुए इस परिवर्तन में कैसे बदलाव लाया जाए,  कैसे कोई “एक सौ बीस” मनकों की माला को पिरोये और माला का वो रेशमी धागा इतना मजबूत हो जो कभी ना गले, ना टूटे और उम्र के सारे बसंत सुबह की ओस की बूंदों में ढलकर निखरते रहें !
लेकिन यहाँ सवाल ये उठता है कि पत्नी के इन स्वप्नों को पूरा करने के लिए पति समय कहाँ से लाये, ले दे कर एक रविवार मिलता है उसमें भी घरेलू जरूरतों की मांग को पूरा करने में रविवार पार हो जाता है तो ऐसे में पत्नी को चाहिए कि पति के साथ संबंधों के मामले में आत्मसंतुष्टि का रवैया अपनाएं, क्योंकि आंतरिक आत्मसंतुष्टी न केवल अपने प्रति ईमानदार होती है बल्कि अपने साथी की शारीरिक, मानसिक जरूरतों को भी समझने का जज्बा रखती है विशेषकर दांपत्य जीवन में मधुर और सार्थक संबंध आपसी विश्वास की बदौलत ही अधिक मजबूती से टिके होते हैं आत्मसंतुष्टि के भाव से ही आपसी विश्वाश का भाव भी मजबूत होता है ये तो सभी जानते हैं कि दांपत्य रिश्ते की मजबूत डोर का आधार होता है आपसी प्रेम, अपनापन और आपसी सामंजस्य ! अपने पति की भावनाओं को समझिये रोजमर्रा के काम की आपा धापी व्यक्ति को तोड़ देती है बाहर तो पति पर बॉस का रौब चल ही रहा है अगर घर में भी पत्नी का रवैया सहयोगी का नहीं होगा तो फिर उसे कौन समझेगा?
पति के दिन भर की थकन तभी दूर हो जाती है जब वो अपनी पत्नी के मुखमंडल को निहार लेता है बस फर्क इतना होता है कि वो इसे कम समय और थकान के कारण एहसास नहीं करवा पाता है आपको चाहिए कि प्रेम में, आपसी सम्बन्धों में और दाम्पत्य जीवन में अपने आपसी विशवास को कभी ना टूटने दीजिये क्योंकि एक बार आपसी विश्वास अगर टूट जाये तो फिर कभी नहीं जुड़ता यदि जुड़ भी गया तो गांठ तो पड़ ही जाती है जिससे रिश्तों में पहले जैसी मधुरता नहीं रहती !
सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
“इण्डियन हेल्पलाइन”
लखनऊ (उत्तर-प्रदेश)

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