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मेरी नजर….

sach ka aaina
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sunita dohaare

मेरी नजर….

इस कदर ना छोड़ मुझपे, जुल्मों सितम की बानगी,

देख के हालात उनके, काँप उठते हैं, मेरे अरमान भी

भेष बदलकर छुप के बैठे है, दंगाइयों से मेहमान भी,

शासकों से डर-डर के जी रहा, इस देश में शैतान भी

जज्बात मर गए इनके और सो गए इन्सान भी,

देख के इनकी हकीकत, हैं परेशा लोग सब, हैरान भी !!!!

कहने को मैं उत्तर-प्रदेश हूँ, मुझे आज अपना अस्तित्व ही समझ नही आ रहा है क्योंकि मुझे इन राजनीतिक अपराधियों ने सियासत का मोहरा बनाकर कभी दलितों और मुस्लिमों के नाम पर, कभी राम मंदिर और कभी मस्जिद के नाम पर मेरे वजूद का स्तेमाल किया है l मेरे अस्तित्व को रौंदते हुए इन सियासत खोरों की आत्मा कभी भी द्रवित नहीं होती है। हर कोई मेरा इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ भारत की सत्ता पाने के लिए करता है, मुझे जीतकर दिल्ली के तख्तोताज पे बैठने के लिए बेताब रहता है, में निरा अकेला यहाँ कुचला और मसला जाता हूँ l दिन प्रतिदिन मेरा दोहन हो रहा है, मेरे शरीर पर कई गड्डे हो गये हैं जिन्हें भरने की कोई सुनवाई नहीं है, मेरे घर में ही आपस में मेरे परिवार में नहीं बनती, एक ही मुद्दा उठाकर लड़ते है तू हिन्दू है, तू मुसलमान है। जरा-जरा सी बात पर मेरे घर में आगजनी, लूट, हत्याएं लोग कर देते हैं, सरकारी काम हो या गैर सरकारी बिना रुपयों के लेन-देन के नहीं करते हैं, अपनी ही माँ बहिनों की इज्जत नहीं करते हैं l अब तो हालत इतने बिगड़ गए हैं कि ये एक घिनौने पृवत्ति के तहत बलात्कार करके अपनी मानसिक विक्षिप्तता को दर्शा रहे हैं। इन पर मेरा कोई वश नहीं रहा है। बाहर के लोग अब बड़ी ही बुरी नजर से तहकीकात करने लगे हैं l जब भी मेरा कोई बच्चा बाहर जाता है, तो लोग कहते हैं कहाँ से हो भईया? जवाब में ये सुनकर कि उत्तर-प्रदेश से आया हूँ सामने वाला ऐसे बिदकता है जैसे कोई बम फट गया हो….. क्या उत्तर प्रदेश से आये हो ? सुना है बलात्कार, चोरी-डकैती, लूट खसोट, राजनीतिक हमले करके आपस में ही निपटा लेते हो, अब यहाँ आय्रे हो तो क्या सोच के आये हो। भैया उत्तर प्रदेश की औलाद हो थोडा संभल के राहियो, तुम्हारे बाप का नाम सही पड़ा है उत्तर-प्रदेश ! सुना है तुम्हारे बाप ने क्राइम के मामले में बड़ी ही धूम मचा रखी है। क्यों रे बबुआ, तेरे बाप ने ऐसे-ऐसे आका अपने सर पे बैठा रखे हैं जिनके चरित्र तो दागी हैं ही, सब बेईमान होने के साथ-साथ अपराधी किस्म के हैं, क्यों रे तू यहाँ कैसे चलेगा, यहाँ रहके भी दादागीरी करेगा ? क्या बे, चुपचाप अपना कल का टिकट कटा ले बच्चा, निकल ले यहाँ से,  नहीं इतना मारूंगा तेरे बाप का नाम उत्तर-प्रदेश की जगह उत्तम-प्रदेश बन जाएगा।

किसी ने ठीक ही कहा है कि…..

मैं उत्तर प्रदेश हूँ, हाँ मैं उत्तर प्रदेश हूँ

आधा मुलायम और आधा अखिलेश हूँ
इतना कायर हूँ कि उत्तर प्रदेश हूँ

दरिंदो से जितनी बची, उतनी ही शेष हूँ
मैं बलात्कार पीडिता, आपके पांव में पेश हूँ
हाँ मैं उत्तर प्रदेश हूँ, हाँ मैं उत्तर प्रदेश हूँ  !!!!!!!!!!!!

एक हमें बनाके “आम” और “आप” बन गये “खास” !!!!!

इसी उठापटक में दिल्ली अकेली रह गई। ये सब देख सुनकर तो अब, मैं भी यही सोचता हूँ कि मेरा भी ना कोई हो देखने और सुनने वाला, कम से कम मैं अपने बच्चों को सियासी चालों से तो बचा सकूँ …..

ना जाने कहाँ खो गया है मेरा अस्तित्व, मेरे बच्चों का भविष्य और मेरी बेटियों का आँगन ! मुझ पर शासन के नाम की बेड़ियाँ कसीं है और कुशासन नाम का हंटर जो लगातार मेरी चौड़ी छाती को घायल करता रहता है l…….

सुनीता दोहरे

प्रबंध सम्पादक

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