Menu
blogid : 12009 postid : 793746

प्रेम में अहंकार बचा रहे तो प्रेमी का हाथ नहीं ह्रदय छिल जाता है

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

577159_345087918936802_734842680_nnmhbh

प्रेम में अहंकार बचा रहे तो प्रेमी का हाथ नहीं, ह्रदय छिल जाता है

गोवा शहर का वो मशहूर पॉइंट जिसे लोग “लवर पॉइंट” कहते हैं इसी पॉइंट की सीढ़ियों के ऊपर घंटों बैठकर निहारना उसे कभी वो सुकून न दे पाया जिसकी उसे तलाश थी ! वो दूर दूर तक फैला हुआ सा समुन्दर का अथाह गहरा और रहस्मयी तिलिस्म जो हमेशा एक सूखा मैदान, निरा सुनसान सा लगता ! अपने मसीहा के पदचापों की आहट सुनने को बेचैन उसकी तरसती आँखें जिन्हें देखकर यूँ लगता था कि इन आँखों में कोई फ़रियाद नहीं, कोई शिकायत नहीं बस एक इन्तजार ही लिखा है !
उन मासूम आँखों में इंतज़ार के पल में घुल जाती हुई बेसब्री, आशंका और कुछ हद तक छुपा हुआ डर कभी दिख जाता और कभी वो आत्मविश्वास नजर आ जाता जो बरसों पहले मनु ने उसकी इन्ही आँखों में झांकते हुए अपनी आँखें सँवार कर जोर से कहा था…..
“सुनी” !
लव_ “प्रेम” और लवर _ “प्रेमी”…
“प्रेम” दर्द देता है और “प्रेमी” दर्द को दफ़न करता है, प्रेम रूह से इजाद होता है और रूह में समा जाता है वो यूँ कि….
“तमाम उम्र हम दर्द को दफना के जिए,
अब होश आया भी तो क्या करना !
एक मासूम गजल पाक हो भी गई,
तो मिलन इस जहाँ में हो या उस जहाँ में क्या करना !!
आते हैं लोग इन हवाओं को सजदा करने को,
अब दो रूहों का मिलन फिर से हो खुदा करना !!!!!!!!!!!
मनु के चुप होते ही उसने मनु की आँखों में ढेरों सवाल देख लिए थे आंसुओं से डबडबाती आँखों में एक अजीब सी तड़फ थी ! आनायास ही वो बोल पड़ी थी मनु तुम ही टूट जाओगे तो …..नहीं, नहीं निराशा सब कुछ ख़तम कर देती है! मनु बोला मैं तुम्हे यकीन दिलाता हूँ “सुनी” जिस दिन मेरा और तुम्हारा विश्वास डगमगाएगा उस दिन हम दोनों भी गोवा की वीरान वादियों को अपना लेंगे रूह का रूह से मिलन होगा एक नए विश्वास के साथ, ऊपर जाकर ईश्वर से इक दूजे का साथ मांगेंगे फिर दूसरा जनम और फिर मिलन !!!! बड़ी ही मासूमियत से मनु ने अपने दिल के पागलपन की बात कह दी फिर हाँथ हिलाता हुआ न जाने कहाँ विलीन हो गया मनु ! सुनी का दिल हर उस छण को जीना चाहता था जिस जिस पल में मनु की याद बसी थी……
“मेरे आँचल से लिपटी है आज तलक खुश्बू तेरी
जैसे मुरझाये फूल में बसी हो एक गुलाब की महकन”
बोझिल सी, थकी सी अनचाहें पलों का बोझ बनकर दबे पाँव सरकती हुई ये सुलगती शाम एक तपती दुपहरी की जलन का एहसास कराती रहती ! उसका बार-बार यही सोचना और वही सोचना जो कभी पूरा न हुआ या यूँ कह लूँ कि वही पुरानी सोच कि….. भरोसा है तुम पर कि हाँ तुम जरुर आओगे, वो कहती मनु !…ऊपर आसमान गवाह बनेगा, नीचे ये विशाल समुन्दर जिसका ह्रदय हमेशा चीत्कार करता रहता है और गवाह होंगी लवर पॉइंट मंदिर की पवित्र सीढियां तुम्हे दिखाएंगी कि कैसे हर दिन मेरे अस्तित्व का एक एक पुर्जा टूटने लगा है और मैं झुकने लगी हूँ जैसे बेबस बुढ़ापे का बोज उठाकर चलती हुई एक वृद्ध आत्मा ! जिसे इन्तजार होता है उस परम मिलन का, जब परमात्मा में आत्मा विलीन होती है ! मेरा प्रेम भी परमात्मा में विलीन हो चुका है, मुझे भी इन्तजार है उस दिन का जब इस जख्म में हुए दर्द को तुम देख सको, मनु मैं इन्तजार करुँगी तुम्हारा ! ताउम्र इंतजार करुँगी तुम्हारा !!!!! और इसी कशमकश में रोज सुबह से शाम सुनी उगते सूरज से डूबते सूरज को पिघलते हुए देखती रहती !
प्रेम की कोई हद नहीं होती ये तो सभी जानते है अब ऐसे में वो चाहें कितना भी टूट जाये लेकिन अंदर से हर दिन उसकी रूह कभी उसे बिखरने नहीं देती है अब इसे उसका विश्वास कह लो या उसकी जिद, हर रोज की तरह वो बिखरने से पहले एक बार फिर से खड़ी हो जाती है आने वाले कल के इंतज़ार में कि शायद उसके प्रेमी तक वो आवाज पहुँच जाए जिसे उसने संजोकर रखा हुआ आज भी… इन्तजार, इंतजार !
और फिर अचानक एक दिन “मनु” ठीक पन्द्रह साल, सात महीने, नौ दिन और चार घंटे बत्तीस मिनट बाद इसी लवर पॉइंट की सीढ़ियों पर एक सुन्दर सी महिला के साथ दिखाई देता है सुनी की आँखों के आगे अँधेरा छा जाता है कुछ बोलना चाह कर भी आवाज दम घोंट रही है उसे एक आवाज सुनाई देती है मम्मी देखो तो कोई गिर गया है वो महिला सुनी को उठाने की कोशिश करती है !
मनु पानी की बोतल खरीदते हुए दुकानदार से पूछता है कौन गिर गया भाई…. दुकानदार कहता है भैया पिछले कई सालों से इन्हें यहाँ देखा जाता रहा है घंटों समुन्दर को निहारने के बाद शाम होते ही चलीं जाती थी आज गिर गयी…. मनु की आवाज दूर से सुनाई दी…ओह ! न जाने कैसे कैसे लोग हैं बिना पति के घूमने चले आते हैं शर्म भी नही आती इन्हें … चलो मधु, बेबी को बुलाओ हम तुम्हे वो जगह दिखाते हैं जहाँ हम कभी अपने दोस्तों के साथ घूमने आते थे और घंटों बैठकर बातें करते थे ! मनु के मुंह से ओह शब्द के साथ पूरे वाक्य को “सुनी” सुन न पाई उसे यूँ लगा कि कान के परदे फट जायेंगे….. मनु अपनी बात कहते कहते “सुनी” के ठीक सामने खड़ा था मानो काटो तो खून नहीं एकदम अवाक ! मनु कातर निगाहों से कभी मधु को देखता कभी बेबी को और कभी सुनी को, उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे !
सुनी की आँखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली ! जिन्दगी के चालीस बसंत देखने के बाद “मनु” सामने आया भी तो इस रूप में ….”सुनी” उसे प्रेम ही नहीं उसकी पूजा करती थी उसकी एक एक आह से वाकिफ थी वो समझ गई थी कि इस समय उसे क्या करना है वो नही चाहती थी कि उसके प्यार को कभी अपनी पत्नी के सामने नजरें झुकानी पड़े, जिसे इबादत कहते हैं उसी इबादत में बदल चुका था उसका दीवानापन … अचानक “सुनी” बोली….
मांफ करना, खामखाँ आपको तकलीफ दी, मांफी चाहती हूँ ! इतना कहकर “सुनी” धीरे-धीरे उसी जगह पहुंची जहाँ मनु और उसने प्यार की कसमें खाई थी मनु उसे देखे जा रहा था और सुनी सोच रही थी कि आज इसी जगह मैं भी अपनी जिन्दगी समाप्त कर लूँ लेकिन उसके दिल ने कहा… नहीं, सुनी ये वो पवित्र जगह है जहाँ दो प्रेमी मिल नहीं पाए इसलिए दोनों ने कूद कर जान दे दी मैं ऐसी पवित्र जगह को अपवित्र नहीं कर सकती क्योंकि मैंने ऐसे फरेबी से प्रेम किया जिसने प्रेम की परिभाषा को नही समझा प्रेम तो भगवान की देन है और इसी प्रेम का मनु ने मजाक उड़ाया मैं कदापि ऐसा नहीं करुँगी, जियूंगी इसी धरती पर और क्यों न जिन्दा रहूँ …. मैंने कोई पाप नहीं किया….सब कुछ आईने की तरह साफ़ हो चुका था !
मनु नज़रें चुराता हुआ सुनी के सामने एक अपराधी की तरह खड़ा था सिर्फ एक ही लाइन दोहरा रहा था मैं तुमसे मिलने आया था ये कहने कि पिता जी ने मेरी शादी तय कर दी है तुम उस दिन नहीं आई इसलिए मैंने शादी कर ली और दिल्ली चला गया ! “सुनी” मुझे मांफ कर दो… मुझे मांफ कर दो…. कुछ तो बोलो प्लीज़ कुछ तो बोलो !!!!
“सुनी” का दिल चीत्कार कर रहा था वो भी बहुत कुछ कहना चाह रहा था !  “सुनी”मन ही मन सोच रही थी कि मनु तुमने शादी कर ली और उस शादी का क्या हुआ जो मंदिर में बजरंग बली के चरणों का टीका लेकर मेरी मांग में भरते हुए कहा था सारी जिन्दगी साथ निभाऊंगा, मैं तो भगवान के चरणों का प्रसाद पाकर धन्य हो गई थी उसी दिन से मैंने तुम्हे अपना सब कुछ मान लिया था किस मुंह से तुम अभी ये कह रहे थे कि (((( “ओह ! न जाने कैसे कैसे लोग हैं बिना पति के घूमने चले आते हैं शर्म भी नही आती इन्हें” )))))…….. मुझे पत्नी तो मनु तुमने ही बनाया था ….लेकिन “सुनी” कुछ भी न कह सकी ! “सुनी” वहां से भी और “मनु” की जिन्दगी से दूर चली आई सदा के लिए…..    कुछ भी तो नही कह पाई वो बस इन चन्द लाइनों के सिवा जो वहां से आने के बाद एक कागज़ पर उतर गयी…
कुछ चंद अल्फाजों में ही सही, जज्बातों को फ़ना कर लूंगी
जरा रुक तो सही, फिर कभी ये हकीकत मैं बयाँ कर दूंगी
इश्क के दावे किये तूने, वफा की तमाम उम्र बेहिसाब छीनी
फ़क्त मैं तेरी गुफ्तगुं, तेरे किरदार को, जमीं ओ आसमां दूंगी
समुन्दर पे चलने का शौक होगा जिन्हें, तो उन्हें हुआ करे
उगते सूरज की लालिमा लेकर, अपने जीवन को उजालों से भर लूंगी
माना कि ख्वाहिशों की उम्र न थी मेरे लिए, सुन मेरे हमदम
लेकिन मैं इस जिन्दगी में ही, तेरे सिन्दूर की कीमत अदा कर दूंगी……
सुनीता दोहरे ……

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply