sach ka aaina
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मुद्दतें हो गई उन्हें खुद को मेरी आँखों में सँवारे हुए !
लगता है बाद मुद्दत के दागों को उसने धोया होगा !!
एक अजब सनसनाहट है इन बहकती हुई सी हवाओं में !
लगता है तड़फ के दुआओं में उसने मुझको माँगा होगा !!
हुई आँख नम कि आसुओं के गम, दम तोड़ चुके !
कि आज खुद के साए से लिपट के कोई रोया होगा !!
मेरे इश्क का चैन लूटके बेरंग शमां सिहर गया !
कि आज शाम उल्फत के बसेरे में कोई तरसा होगा !!
याद आते-जाते भी अब आने का नाम न लेती !
कि आज उसकी हिचकियों ने भी दम तोड़ा होगा !!
ये दीवानगी है मेरी, ये ख्वाब है मेरा या हकीकत है कोई !
कि आज मेरी धड़कन से अलग जाके वो फिर तनहा होगा !!
मैं घड़ी भर के लिए, ये मान भी लूँ कि तू अब भी मेरा है !
पर यकीं कैसे करूँ, कि तूने गैर के लिए दामन बिछाया न होगा !!….
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