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अवलोकन करने गये थे विदेश की मिट्टी की, याद नहीं हैं घर में पड़ी हुई चिट्ठी की ….

sach ka aaina
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अवलोकन करने गये थे विदेश की मिट्टी की, याद नहीं हैं घर में पड़ी हुई चिट्ठी की |

बहुत शोर सुनते थे सब जिस सपा के समाजवाद का…….
अंत आखिर देखा तो बस वो भी महज़ मज़लूमों और मुफ़लिसी से मज़ाक भर निकला …….

सैफई महोत्सव को लेकर उठ रहे सवालों पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सब्र का बांध  जब टूटा तो सफाई देते हुए बोले यह गरीबों का महोत्सव है, बताइए क्या कहीं और गरीबों के लिए इतना बड़ा महोत्सव होता है ?’
इस तरह से मीडिया पर उड़ेला गया दर्द तो शायद वास्तविक ही लग रहा था, बाकी अंदर की बातें तो अंदर वाले ही जानें…………. !
क्योंकि समाजवाद इनकी देहरी पर पानी भरता है……

इस सैफई उत्सव के लिये अखिलेश जी को उन गरीबों की तरफ से बहुत – बहुत धन्यवाद,
आखिरकार जो व्यक्ति जड़ों से जुड़ा हो वो ही इस भावना की कद्र कर सकता है ! मुलायम व अखिलेश भी ग्रामीण लोगों मे से ही एक है,अगर गांव मे कोई उत्सव आम जनता के लिये कर दिया गया तो कौन सा पहाड़ टूट गया ? महानगरों मे रोजाना एक शाम ना जाने कितने करोड़ो की ऐयाशी के लिये उड़ा दिये जाते है वो मीडिया वालो को नहीं दिखते शायद ? कभी कभी तो मुझे इन प्रेस वालो पर भी शक होने लगता है कि कुछ गड़बड़ तो है कहीं ना कहीं ?
एक युवा मुख्यमंत्री से जनता को यही उम्मीद है कि वह मौके की नजाकत को समझे. अपने कार्यों को जनहित में लगाएं सैफई महोत्सव से किसी को परेशानी नहीं है, हाँ अगर परेशानी है तो सिर्फ ये कि इतना खर्च होने के बावजूद भी उत्तर प्रदेश की गरीबी जस की तस है.
इतने दुखद माहौल में बेहतर यही होता कि सैफई महोत्सव न करके मुजफ्फर नगर त्रासदी पर आपने कुछ सोचा होता तो शायद आवाम इतनी नाराज नहीं होती. मुजफ्फरनगर के उन दंगो को हुए 6 महीने भी बीतने को हो जायेंगे. लेकिन राहत शिविर आज तक चलाये जा रहे है.  क्यों ये राहत शिविर पीड़ितों को जिन्दा रखने के लिए है या राजनीतिक मुद्दो को.. जो महीनों से इन राहत शिविरों में रह रहे है उनके जीवन का विकास किस तरह से होगा, सरकार इस पर क्या कर रही है ? इसका आवाम जवाब चाहती है. यह आवाम के लिए बहुत ही कष्टप्रद है कि सरकार इन सबको भूलकर अपने मनोरंजन के लिए महफ़िलें सजा रही है…….
वैसे कुल मिलाकर एक बात सीधी है कि करप्शन हमेशा उपर से नीचे की ओर चलता है हमारे शासनाध्यक्ष अपने जीवन मे ईमानदारी कायम करे फिर अन्य से ईमानदारी की उम्मीद करे……..
सुनीता दोहरे …….

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