निगाहें आज भी उस शख्स को शिद्दत से तलाशतीं है जिसने कहा था तू दिल में है कहीं और नहीं …….
1-बारिश की बूँदें :-
ताजमहल सी जन्नत तुझमें है नूरे जिगर मेरी साँसों में भरी बदरिया जल की गगरी छलक के छलकी , ऐसे बोली मन की ऑंखें , खिल गई साँसे है आफताब तुम्हारे हाँथों में…….
भरी उमस में पिघल के बरसी भूरे बादल की वो टुकड़ी तन मन मदमस्त हुआ बूँद पिघल के छू के कह गई है सारी जागीर तुम्हारे हाँथों में……..
हरा भरा ये सावन झूमा मोरों के कलरव से गूंजा देह सुगंध भीनी लागी ख़्वाबों की ताबीर सिमट के एक नया अक्स है उभरा लो हो गई “शानू” की तकदीर तुम्हारे हांथों में……………….
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2-उलझन रिश्ते की :-
समझौते स्वीकार हैं मुझको एक दफ़ा फ़रियाद तो कर खुद से खुद में जलता है तू निगाहें करम दो चार तो कर मैं तो सब कुछ सह लूंगी तू मुझ बिन जीने की बात तो कर…….
एक बार बतला दे मुझको मुझको कितना रोना होगा ऐसा कर तू सोच समझ ले मुझको कब कब हंसना होगा लेकिन पगले कभी कभी तू अपना भी मूल्यांकन कर……..
बहुत हो चुके शिकवे गिले बहुत हो चुकी शर्त इश्क में मिली बहुत ही पीड़ा मुझको अब तो कोई संशोधन कर छुप छुप कर हम भी रोते हैं अब एक नया अहसान तो कर ……
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3-अपनी ख़ुशी :-
एक झूठी मुस्कराहट को, मानकर अपनी ख़ुशी सिर्फ जीने भर को हम, क्यों जिन्दगी कहते रहे हर राह पे खोजा किये हम भी अपने आपको लोग नासमझी में इसको आवारगी कहते रहे……
हम दिल के जज्बात, यूँ हाँथ लिए फिरते रहे दर खुला था सामने, पर दर बदर फिरते रहे मंजिले हैं सामने, हैं खड़े खुद को तन्हा लिए इस तरह बेघर किया, जिसे हम घर समझते रहे……
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4-ये खुदा काश तू भी …
जो तुझे लालसा ना होती तो क्या तू मुझे अपना कहता नहीं ना ? तू कदापि ऐसा ना करता क्योंकि प्रश्न तेरी इच्छाओं का था प्रश्न तेरी उन लालसाओं का था जिन्हें तू पाना चाहता था ……….
प्रश्न मेरे बजूद और मेरी अहमियत का नहीं था…..
प्रश्न मेरी लाचारी, मेरी मोहब्बत का था दर्द मेरी इबादत , मेरी बफादारी का था फिर भी जिन्दा हूँ मैं,ना जाने कितने सवालों में उलझी हुई ना जाने कितने प्रश्नों का हल ढूढती हुई……
प्रश्न तेरे ईमान और तेरी की बफादारी का नहीं था …………
प्रश्न तो तेरे उस खुदा की सच्चाई का था तेरे उस खुदा से मेरी लड़ाई का था जिसपे तुझे अनंत और अटूट विश्वास है जो तुझे मुझसे छीनकर,मेरी साँसे लेना चाहता है
प्रश्न तेरे खुदा का इम्तहान लेने का नहीं है…………..
अब प्रश्न मेरी सहनशीलता का है उस खुदा से तेरी साँसे मांगने का है पल-पल तुझे मरते नहीं देख सकती क्योंकि अब प्रश्न मेरी जिन्दगी का है ………
5-क्या थे हम और क्या तूने बना दिया :-
क्या थे हम और क्या तूने बना दिया नाम चाहत रखके, मेरी चाह को भुला दिया कभी हीर कभी राँझा कभी इश्क नाम रख दिया…. घडी भर को जो पहलू में तेरे थम गये बुझ गई शाम-ए-वफा की रौशनी देके नसीहतें इश्क की, मुझे खाक में मिला दिया……
सवालात जिन्दगी के रूबरू जब हो गये रोज तेरे नाम के रोजे पढ़े, कलमें पढ़े इबादतें गुलफाम हुई, तुझे फलक पे बिठा दिया……
जिन्दगी चलती रही, बस तेरे ही नाम पर सौ दुआएं रोज दीं, हाथों को उठा आसमान पर मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारे हर द्वारे शीश झुका दिया………
मिसाल बनके रह गई, जिन्दगी की जिल्लतें देख ले, इस प्रेम की रस्साकसी में हम क्या थे और क्या तूने बना दिया………..
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6-स्वप्नीली भोर :—
नित नए सपने संजोती हैं ये आँखें मेरी भोर होते ही तरसतीं हैं ये आँखे मेरी मेरे मौन अनुभव लजाते हैं दिन रैन प्रेम के अनगिनत रंग दिखाती हैं आँखें मेरी ………
हर भोर की पहली किरण सहेजे हैं आखें मेरी तू हँसता है तो खंभों पे चमक उठती हैं शामें मेरी हर रोज “रेत के घरोंदों” पे गुजरती है रातें मेरी क्यों रंजो गम के प्यालों में लचकती हैं शामें तेरी ……..
है भला शोर की नगरी में छुपी चाहत मेरी प्रेम के कई सवालों में उलझी है चाहत मेरी ना जाने कैसे प्रेम की गरिमा बचाती है चाहत मेरी प्रेम के नित नए रंग दिखाती है चाहत मेरी …………. ————————————
7-कातिल दिल्ली…
हुए हैं हादसे हरदम, निरीह मासूम कलियों पर जग जाती है हैवानियत, सो–जब दिल्ली जाती है…
बड़ा गहरा समुन्दर है, हाकिमों की सियासत का किसी की इज्जत लुटती है तो दिल्ली गुनगुनाती है…
टूट माँ-बाप जाते हैं , छली जब बेटी जाती है अनमोल इज्जत बेटियों की, चैक से तौली जाती है ….
ना हो दुनियां में किसी के साथ भी ऐसा कत्ल करते हैं जब जालिम, नजर न चीखें आतीं हैं ……..
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