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गौरतलब है कि विगत दिनों यह रहस्योद्घाटन हुआ था कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) अमेरिकी नागरिकों के साथ-साथ दुनिया के अनेक देशों की सरकार, दूतावास व नागरिकों के टेलीफोन, ई-मेल और सोशल मीडिया की गतिविधियों पर अपनी नजर रखती है. और इसमें भारत का भी नाम शामिल है. उसके बावजूद भी गूगल और इलेक्शन कमीशन ने एक एग्रीमेंट किया है, जिसके तहत 2014 के इलेक्शन से पहले गूगल ऑनलाइन वोटर रजिस्ट्रेशन और दूसरी संबंधित सेवाओं में इलेक्शन कमीशन की मदद करेगी. विशेष सूत्रों के मुताबिक गूगल इस काम के लिए इलेक्शन कमीशन से पैसे नहीं लेगी, जिसकी लागत करीब 50 हजार डॉलर ( 30 लाख रुपए से ज्यादा ) है. और इसे अपने CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी ) बजट से फंड करेगी. गूगल नए वोटर्स के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन मैनेज करेगी. जिससे नामांकित मतदाता अपनी जानकारी को वेरिफाइ करने के साथ साथ पोलिंग स्टेशन की जानकारी भी ले सकेंगे. देखा जाए तो इससे देश की सुरक्षा के साथ साथ लोकतंत्र के लिए भी खतरा पैदा हो गया है. इलेक्शन कमीशन के इस कदम से लंबे समय में इसका गलत नतीजा सामने आ सकता है.
ये सच है कि दुनिया भर में भारत सॉफ्टवेयर सुपरपावर के नाम से जाना जाता है और यहां इलेक्शन कमीशन द्वारा किसी भारतीय कंपनी की जगह गूगल जैसी विदेशी कंपनी को चुनना हैरान करने वाला है. आश्चर्यजनक तो ये है कि सब जानते हुए इतना बडा कदम उठाया गया जो कि देश की सुरक्षा को भेदता है. गूगल के पास रजिस्टर्ड भारतीय वोटर्स का पूरा डेटाबेस होगा, जबकि दुनिया भर के लोगों की जासूसी के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी NSA के साथ गूगल की सांठ गाँठ की बात सामने आ चुकी है. देखा जाए तो इससे भारत की सुरक्षा के लिए एक नया खतरा पैदा होगा, क्योंकि अमेरिका के जासूसी और दूसरे निगरानी कार्यक्रम के तहत गूगल और अमेरिकी एजेंसियां निश्चित तौर पर इसका गलत इस्तेमाल करेंगी. मेरे हिसाब से देश के संवेदनशील मुद्दों के लिए विदेशी लोगों पर निर्भरता ठीक नही. चुनाव आयोग को भारतीय कंपनियों से इसके लिए बात करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डाटा किसी भारतीय सर्वर में ही स्टोर हो सके । अभी भी देश का ढेर सारा डेटाबेस विदेशी सर्वर पर ही है सरकार को खुद अपनी हाई स्पीड सर्वर भारत में स्थापित करनी चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर भारतीय कंपनिया इसे इस्तेमाल कर सके.
मेरे इस कथन पर शायद ही किसी को ऐतराज हो कि अमेरिका भरोसे के लायक नहीं है. जब ये एक संवेदनशील जानकारी है तो विदेशियों को देने का क्या तुक था. दुसरे गूगल कोई भी कार्य मुफ्त में नहीं करता सूत्रों के मुताबिक गूगल इसे (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) नामक कार्यक्रम के तहत करेंगे तो ये एक छलावा ही है क्योंकि ये सारा खर्च इस पर विज्ञापन से निकाल लेंगे.
देखा जाए तो चुनाव आयोग से पैसा लिए बिना कोई भी भारतीय कम्पनी ऐसा कर सकती है. मेरे हिसाब से ये बहुत जरूरी है कि विशेषज्ञों की राय लेकर ही इसे सुधारा जाए.
स्नोडन के खुलासे से इस संवेदनशील मुद्दे पर रोक लगाने की आवश्यकता है कि गूगल के साथ अपने देश का डाटा शेयर करना खतरनाक है और हम भी तो गूगल की हजार तरह की सर्विस लेकर पहले ही अपना डाटा गूगल को दे ही चुके हैं चाहें फिर वो आंड्राय्ड मोबाइल या फिर कंप्यूटर पर जीमेल का इस्तेमाल ये सारे जरिये बने हैं हमारे डाटा शेयरिंग के.
गौरतलब हो कि अब चुनाव आयोग की पहल के बाद जो लोग इन सर्विसेज का स्तेमाल नहीं करते अब उनका डाटा भी गूगल तक या यूँ कहें कि अमरीकी सरकार तक पहुँच जाएगा. सत्य ये है कि गूगल ने भारत सहित पूरी दुनिया में अपनी टेक्नालाजी और बढिया सर्विसेज़ के दम पर पैठ बना ली है और अब इंटरनेट और टेक्नोलाजी की बात करते वक्त गूगल का नाम ना लेना ठीक वैसा है. जैसे दिल्ली पर सियासत का ख्वाब देखने वाला नेता—- केंद्र की कुर्सी को अनदेखा कर दे.
देखा जाए तो गूगल ने केदारनाथ विपदा के वक्त सामाजिक उपयोगिता को देकर ये साबित भी किया है कि गूगल एक प्रतिष्ठित कंपनी है.
इतना सब होने के बाबजूद भी अब सवाल ये उठता है कि गूगल अपनी सेवाओं को स्तेमाल करने वालों को निजी सुरक्षा देगा या अपनी सरकार की गलत नीतियों को महत्व ?
सुनीता दोहरे …..
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