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केजरीवाल जी आपकी ये सादगी सरकार को काफी महंगी पड़ रही है….

sach ka aaina
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केजरीवाल जी आपकी ये सादगी सरकार को काफी महंगी पड़ रही है….

ये है सुरक्षा एक “आम आदमी से बने ख़ास आदमी” की… जिसने सियासत संभालते ही मुख्यमंत्री पद की सुरक्षा के लिए आठ से दस पुलिस कर्मियों की सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया …..और अब 100 से ज्यादा पुलिस कर्मियों की हिफाजत में कभी मेट्रो कभी कार से रामलीला मैदान तक का सफ़र किया जा रहा है. केजरीवाल ने विगत दिनों दिल्ली की आवाम को उन परेशानियों से निजात दिलाने का दावा करके कुछ यूँ अंदाज में उनके दिलों में अपने लिए जगह बनाई तो दिल्ली की आवाम को यूँ लगा कि हमारे तारणहार सिर्फ केजरीवाल ही हैं. केजरीवाल सबकी निगाहों में चढ़ तो गये लेकिन उनके रोज के नए नए ड्रामों से ऐसा लगता है कि अब केजरीवाल ने उतनी ही जल्दी उतरने का प्लान भी तैयार कर लिया है. लेकिन अब देखने वाली बात ये है कि “आम आदमी से बने इस ख़ास आदमी” यानि कि भारत के दिल दिल्ली में विराजमान इस नए मुख्‍यमंत्री के द्वारा नियमित प्रोटोकॉल का पालन न करने से उनकी सुरक्षा में 100 से ज्‍यादा पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ रहा है.
ज्यादा पुरानी बात नहीं है शपथग्रहण कार्यक्रम को ही ले लीजिये…….. इस समारोह में शपथग्रहण करने के लिए मेट्रो से यात्रा को लेकर केजरीवाल की सुरक्षा में उस दिन रामलीला मैदान तक 100 पुलिसकर्मी तैनात करने पड़े थे. देखा जाये तो अगर उस दिन केजरीवाल मुख्यमंत्री सुरक्षा कवर ले लेते तो उनकी सुरक्षा के लिए आठ से बारह पुलिसकर्मी ही बहुत होते.
रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण को लेकर तीन दिन के लिए अलगअलग थानों से  1700 पुलिसवालों को वहां डायवर्ट किया गया था जबकि उपराज्यपाल भवन में शपथ लेने पर 100 पुलिसकर्मी ही काफी होते हैं. केजरीवाल जी आपकी  यह सादगी सरकार को काफी महंगी पड रही है.
अब पहला ही उदाहरण ले लीजिये शपथग्रहण के प्रोग्राम में हज़ारों में होने वाले कार्यक्रम में सरकार के करोड़ों रूपये फुकवा दिये और साथ ही साथ पूरी दुनिया में इसका ढिंढोरा भी पीट दिया कि शपथग्रहण समारोह तक हम मेट्रो से जायेंगे. ये सब दुनिया को बताये बिना भी जाया जा सकता था क्योंकि ढिंढोरा पीटने का असर ये हुआ कि आम आदमी को परेशानियां उठानी पड़ीं. भीड़ की वजह से बहुत से लोग मेट्रो में चढ़ ही नहीं सके क्योंकि  केजरीवाल के स्वागत में या उनकी एक झलक को पाने के लिए आई भीड़ इतनी ज्यादा थी कि आम आदमी व्यथित हो गया. वैसे अब आवाम को परेशान होने की जरुरत नहीं है क्योंकि मेट्रो से केजरीवाल अब नहीं चलेंगे…….
लेकिन ये सब देखते हुए तो यही कहावत सिद्द हो गयी कि……..
“दूल्हा रोज घोड़ी नहीं चढ़ता और बराती रोज साथ नहीं होते”

एक सच ये भी है कि राजनीति मे आते ही दुश्मन अपने आप पैदा हो जाते है. क्योंकि सत्ता की लोलुपतावश एक से बढ़कर एक सियासी चालों के तहत किसी की जान लेना इन लोगों को मामूली लगता है. इसके अलावा देश विरोधी ताकते भी नुकसान पहुँचाने की फिराक में रहतीं हैं. केजरीवाल को सुरक्षा लेनी चाहिए. वो इसलिए कि अभी तक हमारी कानून व्यवस्था अमेरिका जैसी नही कि कोई भी आराम से बिना खतरे के यहाँ वहां जा सके. अगर केजरीवाल व्यक्तिगत सुरक्षा कवर लेते तो ज्यादा ठीक रहता क्योंकि व्यक्तिगत सुरक्षा कवर एक सीमित दायरे में होता है जबकि बिना कवर की सुरक्षा सभी संभावित रास्तों पर करनी पड़ती है और कई गुना ज्यादा सुरक्षाकर्मी लगाने पड़ते है. इस सबको देखते हुए पुलिस प्रशासन की नाक में दम हो गया है……….
पुलिस प्रशासन की मजबूरी ये है कि केजरीवाल के सुरक्षा न लेने से अगर कोई हादसा होता है तो इसकी जिम्मेदार पुलिस ही ठहराई जायेगी इसलिए सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए आखिरकार केजरीवाल को 7 लेयर  सेक्यूरिटी मे कवर किया जा रहा है. ये 7 लेयर  सेक्यूरिटी दिल्ली में क्या क्या गुल खिलाएगी इसका उफान जनता के दिलों में आना अभी बाकी है.
जनता तो अब मुंह खोलकर बोलने लगी है कि केजरीवाल का सुरक्षा न लेने का फंडा उनकी सेहत के लिए फायदेमंद है और फायदेमंद इसलिए कि अब केजरीवाल को 10 की जगह 100 पुलिसकर्मी सुरक्षा के लिए मिल रहे हैं……..
आइये चलते -चलते “आम आदमी पार्टी” की  वो  ख़ास शख्शियत जो  जनता के बीच पिछले कुछ समय  से ख़ास पैतरों  को अपनाकर ख़ास बनी हुई हैं उनकी आवाज में हम भी कुछ सुर मिलाते हुए कुछ कहने की कोशिश करते हैं कि …….

खुद “ख़ास” बनके हमें “आम” बनाने का हुनर खूब सही
सिर्फ मीटर वालों को मिले पानी, ये अदा भी तेरी खूब कही

“बिजली का बिल सब्सिडी के सहारे किया आधा
येबोझ भी जनता के कंधों पे आया खूब सही”

“आम” का बीज बो के, वो चल दिए दूर होके
उनके हिस्से में तो सिर्फ रोना आया ये खूब रही…

सुनीता दोहरे

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