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“आप” का राजराग अनुराग कहीं “आप” को ना ले डूबे……

sach ka aaina
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“आप” का राजराग अनुराग कहीं “आप” को ना ले डूबे……

अब शायद सवाल जवाब खेलकर ही देश की आबरू बचाई जाएगी. क्योंकि भारतीय राजनीति में सवालों का दौर शुरु हो गया है….. क्या वोट देने के पहले दिल्लीवासी केजरीवाल के बयानों को भूल गए थे ? मिसाल के तौर पर कश्मीर पाकिस्तान को देने की बात, पाकिस्तान को क्लीन चिट, बटाला हाउस एनकाउंटर 9 इसी तरह के बयानों को लेकर दिग्विजय सिंह को लाइन में लिया गया था और इसके साथ ही तौकीर रज़ा से वोट अपील करना. ये सब क्या है.
पिछले 11 दिनों से चलता तमाशा क्या यह नहीं बताता कि हम स्वप्नजीवी हैं आज के युग में अगर कोई किसी को एक घरेलू नौकरी भी देता है तो पूरी तरह ठोंक बजा कर देता है पर आज की आवाम वोट का मूल्य समझे बिना ही वोट दे देती है वो ये नहीं समझती की आवाम से राजनीति है लेकिन राजनीति से आवाम नहीं….
अगर केजरीवाल ये समझ रहे है कि वो अब बने हैं कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए गले की हड्डी. जो “न निगलते बन रहे है न उगलते”… तो ये गलत समझ रहे हैं. लोगों का मानना है कि “आप” ने कांग्रेस और बीजेपी की करप्ट नीतियों को उखाड़ने के लिए चुनाव लड़ा और अब उसी के समर्थन से सरकार बनाने की सोच रहे हैं.
“आप” पार्टी ने मीठे सपनों से भरपूर जादूगरी से भरा घोषणा पत्र निकालने से पहले अच्छी तरह से होमवर्क तो किया ही होगा और उन्हें पूरा विश्वास तो होगा ही कि वो घोषणा पत्र मे किये गये वादों को पूरा भी कर लेंगे तो फिर “आप” पार्टी जनमत संग्रह क्यों करवा रही है ? उन्हें सरकार बना लेनी चाहिये क्योंकि कानूनन शुरु के छ्ह महीनों मे तो सरकार नहीं गिरने वाली है कम से कम इन छह महीनों में किये गये वादे तो पूरे होंगे. इन वादों को पूरा करने के लिए पैसा, पानी, बिजली, दिल्ली में गरीबों के लिए घर बनाने को खाली जमीन आदि शर्तों के मुताबिक़ भगवान छ्प्पर फाड़ कर देंगे. अब सबसे अहम् बात ये है कि केजरीवाल की वो 18 शर्तें या इन्हें मांगें कह लीजिये, जो मौजूदा सरकार से केजरीवाल ने कीं है देखा जाए तो इन मांगों ने केजरीवाल के चीफ मिनिस्टर बनने की अनुभवहीनता की पोल खोल कर रख दी है.
इनके समर्थन वाली आवाम और खुद केजरीवाल सहित “आप” पार्टी भले ही ये सोच कर खुश होती रहे कि “आप” ने कांग्रेस को बाहर कर दिया, बीजेपी को दरवाजे पर लाकर रोक दिया. लेकिन सच्चाई तो ये भी है कि खुद भी तो “आप” अपने ही जाल मे उलझ गई. “आप” ने जोश मे जो वादे किये थे उन्हे निभाने का जब वक़्त आया तो फिर ये आनाकानी क्यों ? ये सत्य है कि “आप” अगर इसी तरह करती रही तो जनता के दिलों से अपना बचा खुचा विश्वास भी खो देगी.
मेरे हिसाब से “आप” की पारदर्शिता और स्पष्ट नीति ज्यादा प्रभावकारी होती अगर पार्टी प्रमुख में राजराग का अनुराग आड़े न आ रहा होता. “आप” को संशय ने बाँध रखा है ये नवोदित राजनीतिबाज के लिए बेहतर नहीं है. इस बात को आवाम बखूबी समझ रही है कि “आप” उसी कांग्रेस से समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं जिसकी आलोचना ने ही आपको राजनीति में उतारा और अप्रत्याशित सफलता दिलाई.
मैं आज तक ये नहीं समझ पाई कि “आम आदमी पार्टी” का गठन किस बुनियाद पर हुआ. क्योंकि अरविन्द केजरीवाल खुद इंजीनियर रह चुके है इसके साथ वे सिविल सर्विसेज मेँ अधिकारी थे केजरीवाल के पिता भी एलेक्ट्रिकल इंजीनीयर है केजरीवाल की माँ भी प्राचार्य है केजरीवाल की पत्नी भी अधिकारी है फिर भी वो आम आदमी कैसे हैं. और अगर उन्हें उनके समर्थक आम आदमी का दर्जा देते हैं तो फिर केजरीवाल की शर्तें सरकार बनाने के बीच क्यों मुंह बाए खड़ीं हैं. और शर्तें भी ऐसी कि जैसे कोई बच्चा जिद कर रहा हो कि “मम्मी मुझे चाँद चाहिए”. या फिर मैं बैटिंग के लिए तैयार हूँ लेकिन मेरी कुछ शर्ते हैं………
कोई तेज गेंदबाजी नही करेगा, मेरा शॉट कोई नही रोकेगा, कोई कैच नही पकड़ेगा, कोई रन आउट नही करेगा, कोई आउट की अपील नही करेगा, अपने आउट होने ना होने का फैसला मैं खुद करूँगा, कहो तो बेटिंग करूँ फिर मत बोलना कि मुझे खेलना नही आता…. “आप” अब इन शर्तो के बाद भी जनता से पूछ रहे हैं कि हम मैच खेले या नही…

मुझे आश्चर्य होता है कि जो एक “आईआरएस” रैंक का अधिकारी रह चुका हो वो इतनी बचकानी हरकत कैसे कर सकता है. केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा को कव्वाली का मुकाबला करने का स्थान बना दिया है. जनता से सवाल जवाब करके..
मुझे तो लगता है कि केजरीवाल को ये समझ आ गया है. कि बाद में फजीहत न हो इसलिये अभी से जनता की राय के बहाने सारा दोष जनता पर मढ़ना चाहते है. केजरीवाल ये खुद नहीं तय कर पा रहे कि उन्हे क्या करना चाहिये. क्या सरकार बनाने के बाद वे हर फैसला इसी तरह जनता से पूंछ कर लेंगे.
रोजाना लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है क्योंकि सरकारी कामकाज ठप्प है. इसका सीधा मतलब निकलता है कि ये रुपये आप और हम जैसे इन्कमटेक्स देने वालों से और आम आवाम से वसूले जायेंगे. चाहें “कान इस तरफ से पकड़ लो चाहें उस तरफ से” पकड़ा तो कान ही जाएगा.
इस देश के खेवनहारों को ये बात अच्छी तरह से जान लेनी चाहिए कि “देश वादों से नही, काम से चलता है”
एक सलाह और “आप” पार्टी के लिए कि अगर “आप” सरकार बनायेंगे तो अगले वर्ष का वित्त बजट बनाने के साथ ही दिल्ली की जनता को एक आदर्श बजट दे पायेंगे. फिर सरकार बनाने में इतनी खुरपेंच क्यों ????
केजरीवाल जी आपको इस नन्हीं चीटी से सबक लेना चाहिए……….

जब दाना लेकर नन्ही चींटी चलती है !
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है !!

मन का विश्वास रंगों में साहस भरता है !
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना नहीं अखरता है !!

क्योंकि उसकी मेहनत बेकार नहीं होती !
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती !!

……सुनीता दोहरे …..

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