क्रोध एक ऐसा आवेश है जो अगर उठकर शीघ्र चला भी जाय, तो अपने जाने के बाद परेशानियों का अम्बार लगा जाता है. तमाम बीमारियों को मेहमान बनाते हुए ये क्रोध आपके स्वभाव में घृणा भाव को स्थाई बना देता है. क्रोध कभी यूँ ही हमला नहीं बोलता और ये कभी अकेले कहीं भी निवास नहीं करता है इसका अपना पूरा खानदान है आइये आपको क्रोध के पूरे खानदान से मिलवाते हैं. ना इसकी दोस्ती भली और ना इसकी दुश्मनी तो इसलिए दोस्तों क्रोध के खानदान से हमेंशा दूर रहिये तो फायदे में रहेंगे.
क्रोध का बाप जिससे क्रोध डरता है – भय ! क्रोध की बहन है – जिद ! क्रोध की पत्नी – हिंसा ! क्रोध का बडा भाई – अहंकार ! क्रोध की बेटियाँ – निंदा और चुगली ! क्रोध का बेटा – वैर ! क्रोध के खानदान की नकचढी बहू – ईर्ष्या ! क्रोध की पोती – घृणा ! क्रोध की मां – उपेक्षा !
देखा जाये तो क्रोध अपना विस्तार किसी के द्वारा की गयी गलत कार्यवाहियोंके माध्यम से जल्दी ही क्रोधी पर वश कर लेता है. ये एक व्यापक रोग है. ये क्षणिक मात्र को हावी होकर क्रोधी के मन को वश में कर लेता है. क्रोध अपने उदय और निस्तारीकरण के बीच में पल भर को भी समय नहीं देता. जबकि यही वह पल होता है जब विवेक को त्वरित जगाए रखना बेहद आवश्यक होता है. ये सत्य है कि क्रोध केवल और केवल संताप ही पैदा करता है. क्रोध परस्पर सौहार्द को समाप्त कर प्रीत को नष्ट करते हुए द्वेष भाव को प्रबल बना देता है. व्यक्ति जब क्रोध का लगातार सेवन करता है तो उस व्यक्ति का स्वभाव ही असहिष्णु बन जाता है. क्रोधावेश में व्यक्ति बद से बदतर की स्थिती में आकर प्रतिपक्षी से कम नहीं रहना चाहता. क्योंकि क्रोध, विनम्रता की अर्थी को फांद कर आता है. क्रोध तो सदा घाटे का ही सौदा होता है. क्योंकिं क्रोध तो हमेशा मनुष्य को विवेकशून्य कर क्रोधी और क्रोध सहनेवाले को क्षति पहुंचाता है. इस प्रकार क्रोध, वैर की अविरत परम्परा का सर्जन करता है. जब किसी व्यक्ति पर क्रोध आये तो उसकी गलती को कल पर टालते हुए कुछ समय के लिए स्वयं को मामले में अनुपस्थित समझना चाहिए. उस स्थान से कुछ समय के लिए दूर चले जाएँ और उस विषय पर मौन धारण कर लें. फिर शांत मन से उस बात पर स्वयं से तर्क करते हुए क्रोध के परिणामों पर विचार करें तथा ये भी समझने की कोशिश करें कि क्रोध क्यों आ रहा है ? …………
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