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सुना है कांग्रेस पार्टी के एक सीनियर मंत्री उसे संरक्षण दे रहे है. अब तक लगभग 10 पत्रकारों ने तहलका से त्यागपत्र दे दिया है क्यों ? सोचने की बात ये भी है कि क्या उन पर गलत आचरण न करने के दवाब में इस्तीफ़ा लिया गया या उनके साथ भी कुछ गलत आचरण हुआ है तेजपाल या तेजपाल के उस हितैषी कांग्रेस के मंत्री द्वारा ?
एक हल्की सी आहट भी आ रही है कि एक कॉंग्रेसी मंत्री को भी इस केस का गवाह बनाया जा सकता है इसलिए इसे दबाया जा रहा है. देश की मजबूरी ये है कि मिली भगत के साथ काम हो रहा है अन्दर ही अन्दर राजनीतिक दल तेजपाल प्रकरण पर पूरा साथ दे रहे हैं. गौरतलब है कि यूपीए की 10 साल की घोटाला ग्रस्त सरकार में तहलका को एक भी घोटाला नहीं मिला क्यों ?
दूसरे का कच्चा चिट्ठा खोलने वाले इस पत्रकार की कारस्तानी के सामने आने के बाद महिला पत्रकार के यौन दुव्यर्वहार पर सरकार को चाहिए कि इस मसले पर कड़ा रुख अपनाते हुए इसके खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्यवाही करे.
कहते हैं सफलता का ग्राफ़ यदि धीरे धीरे चढ़े तो दूरगामी होता है और ग्राफ के गिरने पर भी अधिक नुक्सान नहीं होता यदि ग्राफ राकेट की भांति चढ़े तो उसे फिर गिरना ही है और गिरने के साथ साथ भारी क्षति होना तय है. जिस तरह ताश के पत्तों का महल एक ठोकर लगने से भरभरा कर गिर पड़ता है. ठीक उसी तरह तरुण तेज़पाल ने पत्रिकारिता में जितने तेज़ी से धूमकेतु की तरह चमक के साथ अपनी छाप छोड़ी थी उतनी ही तेज़ी से बदनुमा दाग की तरह वह अब परिदृश्य से गायब हो रहा है.
धार्मिक गुरु, प्रशासनिक अधिकारी, सत्ताधिकारी और मीडिया के खिलाड़ी इससे कोई भी अछूता नहीं है. बलात्कार और शारीरिक शोषण तो अब रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा बन गया है सियासी खेल के चलते पूरे समाज और देश में वासना की भूख को बढ़ावा देकर ये दरिंदे यही साबित करना चाहते हैं. कि देश में कानून व्यवस्था न के बराबर है.
ये सब देखते हुए समाज और स्कूलों को फिर से केन्द्रित होना पड़ेगा अन्यथा हमारे सामने खड़े तेजपाल जैसे कई अपराधी अपने चारों तरफ नजर आयेंगे.
क्लोसिंग – लगता है हमारे देश की जनता ऐसे कुकृत्य को देखने के लिये अभिशप्त है , एक के बाद एक महानुभाव ऐसे दुष्कृत्य करते हुए पकड़े जा रहे हैं , जैसे कि ये वर्ग अपने आपको कानून से ऊपर मान बैठा है ,सेक्स के प्रति ऐसी कुंठा ऐसा पतन शायद सामाजिक बन्धन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बड़े शर्म की बात है कि प्रजातन्त्र का चौथा स्तंभ ही डांवाडोल हो चुका है अपनी घिनौनी हरकतों से तेजपाल जैसे तमाम मीडिया कर्मी अपने उन साथियों की भी परवाह नहीं करते हैं जिनकी ईमानदारी की मिसालें दी जाती हैं. देश शर्मिन्दा है तेजपाल जैसे घिनौने अपराधियों की करतूतों को देखकर.
अभी तक जज, अधिकारी, पुलिस अफीसर, नेतागण और असामाजिक तत्व ही जिम्मेदार थे इन मुद्दों पर लेकिन अब प्रेस के इन दरिंदों की हरकतों को देखकर आम जनता क्या इन पर विश्वाश कर पायेगी……
सुनीता दोहरे ……
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