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इस जैसी न जाने कितनी हैं राजनीति की अवैध संताने …

sach ka aaina
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sunita 1

इस जैसी न जाने कितनी हैं राजनीति की अवैध संताने …….

बॉक्स …. खोज़ी पत्रकारिता के नाम पर राजनीति की अवैध संतानों के द्वारा पहले आई तहलका की सनसनी ने अब खुद ही यौन उत्पीड़न का जुर्म करके तहलका मचा दिया है.

अपने लेखों और खोजी पत्रकारिता के दम पर तहलका मचाने वाले पत्रकार तरूण तेजपाल ”प्रधान सम्पादक-तहलका”  जब खुद तहलका मचाने वाली खबर के घेरे में आये है तबसे मीडिया और राजनीति के खिलाडियों की पौ बारह हो गई है.
देखा जाए तो यौन उत्पीड़न की यह घटना गोवा में तहलका के थिंक फेस्ट के दौरान लगातार दो दिन तक हुई थी. जिसके तहत पीड़ित महिला ने ईमेल में कहा, ‘7 नवंबर को होटेल की लिफ्ट में तेजपाल ने मुझे अपनी ओर खींच लिया और किस करने लगे.  मैंने उन्हें मेरे पिता का दोस्त होने और पारिवारिक रिश्तों का हवाला देकर रोकने की कोशिश की, लेकिन मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी बहरे आदमी के सामने गिड़गिड़ा रही हूं.  इसके बाद तेजपाल ने नीचे बैठकर मेरा अंतर्वस्त्र नीचे खींच दिया और ओरल सेक्स करने की कोशिश करने लगे. मैं बेहद डर गई थी, तेजपाल को जोर से धक्का देकर लिफ्ट रोकने की कोशिश की. लिफ्ट रुकने के बाद मैं वहां से भागी. वह इसके बाद भी तेज कदमों से मेरे पीछे आते रहे। अगले दिन रात करीब पौने नौ बजे होटेल की लिफ्ट में उन्होंने फिर मुझसे जबर्दस्ती करने की कोशिश की. मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी बेटी की बेस्ट फ्रेंड हूं. ऐसा मत कीजिए. मैंने दोनों रातों की घटनाओं के बारे में सहकर्मियों को भी बताया था।’
ऊपर  पीड़िता द्वारा ईमेल में  भेजे गये आरोप कितने सही हैं और कितने गलत हैं. स्थिति साफ़ तो तभी हो पायेगी जब तरुण तेजपाल से पुलिस पूछताछ करे लेकिन पुलिस ये करेगी नही क्योंकि जब दाना भी अपना हो, दाने को खिलाने वाला भी अपना हो और खाने वाला भी अपना हो.
महिला पत्रकार के उत्पीड़न में तेजपाल ने खुद ही कुबूल किया कि वो दोषी है फिर भी उसकी बेतुकी बात तो देखिये वो खुद को सुप्रीम कोर्ट समझ कर खुद को ही सजा दे रहा है और सजा भी कितनी मजेदार कि वो छः महीने के लिए सम्पादन नहीं करेगा. ये सब सुनकर तो मुझे ऐसा लगता है कि उसे इस देश की लचर कानून व्यावस्था पर पूरा भरोसा है.
लेकिन क्या इस देश के कानून को दरकिनार कर जुर्म करने वाला खुद के लिए जुर्म की सजा तय कर खुलेआम फिर एक नए अपराध को जन्म देगा और न्याय व्यवस्था आखों पर पट्टी बांधकर यूँ ही हंसती रहेगी.

सुना है कांग्रेस पार्टी के एक सीनियर मंत्री उसे संरक्षण दे रहे है. अब तक लगभग 10 पत्रकारों ने तहलका से त्यागपत्र दे दिया है क्यों ? सोचने की बात ये भी है कि क्या उन पर गलत आचरण न करने के दवाब में इस्तीफ़ा लिया गया या उनके साथ भी कुछ गलत आचरण हुआ है तेजपाल या तेजपाल के उस हितैषी कांग्रेस के मंत्री द्वारा ?
एक हल्की सी आहट भी आ रही है कि एक कॉंग्रेसी मंत्री को भी इस केस का गवाह बनाया जा सकता है इसलिए इसे दबाया जा रहा है.  देश की मजबूरी ये है कि मिली भगत के साथ काम हो रहा है अन्दर ही अन्दर राजनीतिक दल तेजपाल प्रकरण पर पूरा साथ दे रहे हैं. गौरतलब है कि यूपीए की 10 साल की घोटाला ग्रस्त सरकार में तहलका को एक भी घोटाला नहीं मिला क्यों ?
दूसरे का कच्चा चिट्ठा खोलने वाले इस पत्रकार की कारस्तानी के सामने आने के बाद महिला पत्रकार के यौन दुव्यर्वहार पर सरकार को चाहिए कि इस मसले पर कड़ा रुख अपनाते हुए इसके खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्यवाही करे.
कहते हैं सफलता का ग्राफ़ यदि धीरे धीरे चढ़े तो दूरगामी होता है और ग्राफ के गिरने पर भी अधिक नुक्सान नहीं होता यदि ग्राफ राकेट की भांति चढ़े तो उसे फिर गिरना ही है और गिरने के साथ साथ भारी क्षति होना तय है. जिस तरह ताश के पत्तों का महल एक ठोकर लगने से भरभरा कर गिर पड़ता है. ठीक उसी तरह तरुण तेज़पाल ने पत्रिकारिता में जितने तेज़ी से धूमकेतु की तरह चमक के साथ अपनी छाप छोड़ी थी उतनी ही तेज़ी से बदनुमा दाग की तरह वह अब परिदृश्य से गायब हो रहा है.
धार्मिक गुरु, प्रशासनिक अधिकारी, सत्ताधिकारी और मीडिया के खिलाड़ी इससे कोई भी अछूता नहीं है. बलात्कार और शारीरिक शोषण तो अब रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा बन गया है सियासी खेल के चलते पूरे समाज और देश में वासना की भूख को बढ़ावा देकर  ये दरिंदे यही साबित करना चाहते हैं. कि देश में कानून व्यवस्था न के बराबर है.
ये सब देखते हुए समाज और स्कूलों को फिर से केन्द्रित होना पड़ेगा अन्यथा हमारे सामने खड़े तेजपाल जैसे कई अपराधी अपने चारों तरफ नजर आयेंगे.
क्लोसिंग – लगता है हमारे देश की जनता ऐसे कुकृत्य को देखने के लिये अभिशप्त है , एक के बाद एक महानुभाव ऐसे दुष्कृत्य करते हुए पकड़े जा रहे हैं , जैसे कि ये वर्ग अपने आपको कानून से ऊपर मान बैठा है ,सेक्स के प्रति ऐसी कुंठा ऐसा पतन शायद सामाजिक बन्धन नाम की कोई चीज नहीं रह गई  है. बड़े शर्म की बात है कि प्रजातन्त्र का चौथा स्तंभ ही डांवाडोल हो चुका है अपनी घिनौनी हरकतों से तेजपाल जैसे तमाम मीडिया कर्मी अपने उन साथियों की भी परवाह नहीं करते हैं जिनकी ईमानदारी की मिसालें दी जाती हैं. देश शर्मिन्दा है तेजपाल जैसे घिनौने अपराधियों की करतूतों को देखकर.
अभी तक जज, अधिकारी, पुलिस अफीसर, नेतागण और असामाजिक तत्व ही जिम्मेदार थे इन मुद्दों पर लेकिन अब प्रेस के इन दरिंदों की हरकतों को देखकर आम जनता क्या इन पर विश्वाश कर पायेगी……
सुनीता दोहरे ……

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