Menu
blogid : 12009 postid : 636031

आम आदमी को प्याज देवता के दर्शन आखिर हों तो कैसे हों ?

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

577159_345087918936802_734842680_n

आम आदमी को प्याज देवता के दर्शन आखिर हों तो

कैसे हों ?

आम आदमी को प्याज देवता के दर्शन आखिर हों तो कैसे हों ? क्योंकि देश में आज प्याज की बढ़ती कीमतों से राजनैतिक गलियारों में हंगामा बरपा हुआ है. देखा जाये तो प्याज के दामों में पांच दस रुपये की बढ़ोत्तरी कोई नई बात नहीं है लेकिन अचानक ही कीमतें तिगुने दामों से भी ज्यादा हों जाएँ तो ये बात समझ से बाहर की बात हैं. प्याज विक्रेताओं ने आशंका जताई है. कि मौजूदा हालातों जैसे अगर आगे भी हालात रहे तो कीमतें सौ रुपये किलो से ऊपर उड़ान भर सकतीं हैं.
प्याज के दामों ने तेजी से उड़ान भरी है जिसकी बजह से स्थानीय मीडिया में इसकी आवक दिनों-दिन घट रही है और कीमत बढ़ रही है.
शीला दीक्षित ने शनिवार को अपने सरकारी निवास पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सब्जी की कीमतों में भारी बढ़ोतरी का उनकी रसोई पर भी असर पड़ा है. उन्होंने कहा, ‘हफ्तों बाद मैंने आज भिंडी के साथ प्याज खाया है.
अब ये तो बड़ी हैरानी की बात है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी प्याज की आसमान छूती कीमतों से ‘परेशान’ होकर उल्ट सीधे बयान दे रहीं हैं
अगर मुख्यमंत्री की आय भी एक सब्जी खरीदने के लिये काफी नही तो उनके शासन और उनकी सरकार के लिये ये शरम की बात है. उनके कहने के अनुसार वह हफ्तों तक प्याज चख तक नहीं पाई है आप इस बात पर यकीन करें या न करें. लेकिन शीला दीक्षित का ये दावा सरासर बकवास है.
शीला दीक्षित ये नहीं जानती हैं कि प्याज की कीमतों को लेकर दिल्ली की जनता उनसे कितनी खफा है. जिसका असर कांग्रेस पार्टी पर 2014 के लोकसभा चुनाव में पड़ेगा. एक सच ये भी है कि कांग्रेस की सरकार में मंहगाई आम जनता को तो हमेशा से मजबूर करती आ रही है. इसलिए प्याज की बढ़ती हुई कीमतों पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है.
मुझे तो लगता है कि अगर प्याज की कीमत 20 रुपये प्रति किलो से ज्यादा है तो ये जमाखोरी की निशानी है और कुछ नहीं. ये सब सरकार का रचा रचाया खेल हैं जब सरकार से प्याज बिचौलियों और प्याज माफियाओं को हरी झंडी मिलेगी तो फिर गोदामों में भरा प्याज बाहर आकर दर्शन देगा. वो कहते हैं कि आम आदमी को प्याज देवता के दर्शन आखिर हों तो कैसे हों ?
प्याज के दीदार हों तो कैसे हों ?
कुछ तो मौसम की मार ने मारा
कुछ बिचौलियों की करामात ने मारा
प्याज के दीदार हों तो कैसे हों  ?
कुछ गोदामों की भरमार ने मारा
बचा खुचा सरकार ने मारा
प्याज के दीदार हों तो कैसे हों ?
विगत दिनों कोई 24-10-2013 की तारीख रही होगी. मैं “आजतक” न्यूज़ चैनल पर आने वाला “हल्ला बोल” प्रोग्राम देख रही थी उसमें न्यूज़ एंकर ने कहा कि “दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आसमान छूती प्याज की कीमतों को लेकर चिंतित दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित प्याज माफियायों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की बजाय उनसे प्रार्थना कर रही हैं.”
एकबारगी तो मुझे झटका सा लगा ये सुनकर कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित प्याज माफियाओं के आगे प्रार्थना कर रही हैं. क्यों ? लेकिन फिर जल्द ही ये सारा माजरा समझ में आ गया.
आखिर क्यों ? नतमस्तक हैं एक प्रदेश की मुख्यमंत्री माफियाओं के आगे…
एक मुख्यमंत्री की पावर को तो आप समझते ही होंगें और वो मुख्यमंत्री जिसकी पार्टी की केंद्र सरकार हो. अगर मुख्यमंत्री चाह ले तो क्या नहीं कर सकता.
ये विचारणीय है कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित प्याज माफियायों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की बजाय उनसे प्रार्थना क्यों कर रही हैं ?
पहली बजह ये कि प्याज के बढ़ते हुए दाम शीला दीक्षित को उन्नीस सौ अठानवे का वो दौर याद दिला रहे हैं जब शीला दीक्षित ने अपने ही घर में मात खाई थी.
दूसरी बजह ये कि पहले नल खोल दिया ड्रम भरने के लिए लेकिन जब पानी सर से ऊपर हो गया तो सोचा कि आवाम की हमदर्दी के साथ-साथ वोट बैंक भी बना लिया जाए क्योंकि प्याज के दाम जितने ऊपर उठेंगे शीला को अपनी कुर्सी जाने का खौफ उतना ही बढ़ता जाएगा. शीला ये सोचकर भी डर रहीं हैं कि 1980 की चरण सिंह की सरकार प्याज के आसमान छूते दामों की ही बजह से गई थी. लेकिन इस बार शीला की सरकार की चूलें जरुर हिलने वालीं हैं. देखा जाये तो चुनावी मौसम के आते ही एक बार फिर से प्याज देवता अपना अहम् रोल दिखाते हुए कभी सरकार की गोद में कभी बिचौलियों की गोद में और कभी माफियाओं की गोद में छुपकर अपने दर्शनों की कीमत वसूल कर रहे हैं. सिर्फ दिखावे के लिए ये बिचौलियों और माफियाओं को कोसते हैं जबकि माफियाओं की और मुनाफाखोरों की मदद करने वाले भी ये नेता ही हैं. अब जनता भी ये समझ चुकी है और ये सब देखते हुए जनता अब परिवर्तन चाहती है ……….
देखा जाए तो हर राजनीतिक दल के भृष्ट नेताओ का पैसा औद्योगिक घरानो में और जमीनो में लगा है. ये सत्य है कि स्विस में जितना काला धन नहीं उससे कई गुना ज्यादा भारत में इन भृष्ट नेताओ के पास हैं. फिर भी ये भ्रष्ट नेता चुनाव के पहले ऐसा खेल खेलते हैं जिससे आवाम की झूठी हमदर्दी वोट के रूप में इन नेताओं को मिल सके.
इन भ्रष्ट नेताओं का एक ही नारा है , इनका एक ही मकसद है और इनका एक ही जुनून होता है कि “मुझे भी लूटने दो, अब मेरी बारी है”
सुनीता दोहरे …………

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply