ब्लॉग शिरोमणि प्रतियोगिता contest १-देश की बर्बादी का आगाज़ तब होता है जब कोई देश अपनी जुबां छोड़ता है… –
sach ka aaina
221 Posts
935 Comments
ब्लॉग शिरोमणि प्रतियोगिता contest 1- देश की बर्बादी का आगाज़ तब होता है जब कोई देश अपनी जुबां छोड़ता है…
मेरी पूरी पढ़ाई हिन्दी माध्यम से हुई. समाचार दैनिक पत्रों और शब्दकोष के सहारे मैंने अंग्रेजी सीखी. मगर अब समय बदल गया है. एकदम शुरू से ही अंग्रेजी पर खास ध्यान देना पड़ता है. पहले अंग्रेजी केवल एक विषय थी. फिर अन्य विषयों की पढ़ाई का माध्यम बनी. अब तो संवाद-संचार की भाषा बन गयी है और इसी क्रम में भारतीय भाषाओं के ऊपर महारानी बन बैठी है. मेरी समझ से दुनिया में उन्हीं समुदायों और देशों ने ज्यादा तरक्की की, जिन्होंने आधुनिक ज्ञान-विज्ञान पहले हासिल किया लेकिन अपनी भाषायी संस्कृति को नहीं त्यागा बल्कि उसका दामन पकड़े रहे. हमारे भारत में कितने लोग कम पढ़े-लिखे हैं. वे अगर अग्रेज़ी नहीं बोल पाते तो अंग्रेजी बोलने वाले उनको हीन भावना से देखते हैं. ये सोलह आने सत्य है कि यही वो लोग हैं जिनके कारण हमारी “मातृभाषा” हिंदी और हमारी क्षेत्रीय भाषाएँ अभी तक बची हुई हैं वरना इस देश के चन्द पढ़े-लिखे व्यक्ति तो हिंदी में बात करना भी अपनी तौहीन समझते हैं. देखा जाए तो आजकल हर युवक-युवती अंग्रेजी बोलने, अंग्रेजी पढ़ने की और सामने वाले व्यक्ति पर अंग्रेजी बोलकर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करते हैं और वे जितनी अंग्रेजी बोल सकते है उन्हें उतना ही बुद्धिमान समझा जाता है. क्यों हम अपने ही देश में अपनी ही “मातृभाषा” हिंदी को महत्व न देकर अंग्रेजी के गुलाम हो रहे है ? क्या हम एकजुट होकर अपने राजनेताओं पर दबाव नहीं डाल सकते की हम हिंदी बोलेंगे, हिंदी सीखेंगे और भारत में सब काम हिंदी में ही होने चाहियें. वो कहते नहीं है कि……“कोई पत्ता हिले जो अगर हवा चले” अंग्रेजी में पारंगत होने की दौड़ में हम अपनी “मातृभाषा” को पीछे छोड़ते जा रहे हैं क्योंकि अंग्रेजी का अतिक्रमण होने से हमारी “मातृभाषा” के लिए ही नहीं बल्कि हमारी क्षेत्रिय भाषाओं, हमारी अस्मिता के लिए भी ये चलन बहुत ही खतरनाक है. अंग्रेजी आज के दौर में हिंदी को तो छोड़िये हमारी क्षेत्रिय भाषाओं तक को निगल रही है और तो और कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपना प्रभाव जमाने के लिए सामने वाले व्यक्ति पर इंग्लिश के छुट-पुट शब्दों की छौंक लगाकर प्रफुल्लित होता है. अपनी “मातृभाषा” के लिए प्यार और सम्मान हर भारतीय के दिल में विराजमान होता है लेकिन आधुनिकता की दौड़ अंग्रेजी बोलने के लिए व्यक्ति को बरबस अपनी ओर खींचती है. मैं जानती हूँ अपनी “मातृभाषा” से बिछड़ने का अफसोस कैसा होता है, जहां भी मैं जाती हूँ मेरा मन अनजाने ही अपनी “मातृभाषा” को खोजने लगता है. ये सत्य है कि अगर हिंदी में कुछ लिखा है और हिंदी कोई बोल रहा है तो ये आवाजें फौरन मुझे अपनी तरफ खींचती हैं. साथ ही साथ अपनों के आसपास होने का एहसास करातीं हैं. अगर कोई विदेशी हिंदी बोलता मिल जाता है तो दिल बाग़-बाग़ हो उठता है. मेरा मानना है कि जन्म या संस्कार से किसी एक भाषा का नागरिक हो जाना महज एक संयोग होता है क्योंकि हिंदी हमारे लिए हवा-पानी की तरह एक आवश्यकता है हमारी “मातृभाषा” से हमारा लगाव जिंदगी भर रहेगा. जब तक संविधान अंग्रेज़ी में लिखा हुआ चलेगा तब तक किसी भी भारतीय भाषा को या हमारी “मातृभाषा” को अधिक महत्व नहीं मिल सकता. क्या जब संविधान लिखा गया था तब अंग्रेजी जनता की जुबान पर थी ? क्यों फिर संविधान अंग्रेजी में लिखकर न्याय व्यवस्था व प्रशासन में अंग्रेजी का बोलबाला करके जनता को अंग्रेजी सीखने पर मजबूर किया गया ? इस नियम को बदलने का हक हम सबके पास है. भारत की नागरिक होने के नाते मैं चाहूंगी कि हिंदी आगे रहे, क्योंकि इसी में मेरे देश का हित है. मुझे गर्व है की में एक हिन्दुस्तानी हूँ और अपनी “मातृभाषा” में बात करती हूँ जो कि मेरी पहचान है……….. जो अपनी “मातृभाषा” के प्रति वफादार नहीं ! वो देश में रहने, हिंदी बोलने का हकदार नहीं !! सिर्फ एक बार बजा दो बिगुल अपने हक़ के लिए ! जीत की दुआ हो कुबूल हम खुदा पे छोड़ देंगे !! सुनीता दोहरे …..
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments