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2014 में होने वाली संभावित हार की खीज….

sach ka aaina
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2014 में होने वाली संभावित हार की खीज….

लोकसभा में अलग तेलंगाना मसले पर हंगामे के चलते सदन से निलंबित सांसदों और कांग्रेस के दो सांसदों के बीच तीखा विवाद हुआ. सुना क्या ये तो जग जाहिर है कि संसद में सांसदों की भड़ास तब ही निकलती है जब वो एकदूसरे को जमकर कोस लेते हैं और मीडिया की पौ बारह हो जाती है.
गौरतलब हो कि इस कहासुनी में कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित और मधु याश्की गौड़ ने उन सांसदों को भद्दी-भद्दी गालियां दीं जिसके तहत संसद का माहौल काफी गरमा गया.
ये हैं हमारे देश के नेता, हमारे देश के भविष्य के संरक्षक जिन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके इस कारनामे को सारा विश्व देख-सुन रहा है. उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि क्या असर पड़ेगा हमारे देश की गरिमा पर.
अगर गौर से पूरे मसले पर नजर डाली जाये तो पूरा माजरा आपको समझ में आ जायेगा.
प्रधानमंत्री जी आपकी चुप्पी में कितने राज छुपे हैं. संसद हमारे देश का मंदिर है जिस मंदिर में भारत माता निवास करतीं हैं उस मंदिर का आप प्रतिनिधित्व करते हैं और आपकी चुप्पी की गहराई को भांप कर ये चंद सांसद इस मंदिर को अपमानित कर रहे हैं क्या यही आपकी अपने देश के प्रति समर्पण की भावना है सत्ता के नशे में चूर होकर आपके मंत्री खुलेआम धमकी देना गाली-गलौज करना अपनी शान समझते हैं.
इन हालातों को देखकर कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि 2014 में होने वाली संभावित हार की खीज पक्ष-विपक्ष को गाली देकर मिटाई जा रही है. क्योंकि कॉंग्रेस को अब सॉफ दिखाई दे रहा है कि उसका 2014 के चुनाव में क्या हश्र होने वाला है. कांग्रेसी नेताओं के साथ-साथ सभी पार्टियों की 2014 की कुर्सी को लेकर अपनी बौखलाहट से यही उजागर कर रहे है कि न तो उन्हें देश की इज्जत का ख्याल है न ही संसद की गरिमा का. अब ऐसे में इन सांसदो से क्या उम्मीद की जा सकती है.
इनको शर्म नहीं आती अपने गंदे चरित्र और आचरण के कारण यह अपने पूरे कार्यकाल में केवल सत्तासुख भोगने और अपना स्वार्थ सिध्द करने के अलावा कुछ सोचते ही नहीं हैं. इनसे क्या उम्मीद की जा सकती है. आवाम इन्हें अपना प्रतिनिधि चुन कर अपनी समस्याओ का समाधान करने की उम्मीद से संसद में भेजती है लेकिन आवाम ये नहीं जानती कि भारतीय संसद करोड़पतियों का समूह मात्र रह गया है क्योंकि संसद में बैठकर ज्यादातर सांसद भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों के समर्थक बन चुके है. जब सियासत की ललक में चकाचौंध घसियारे, अनपढ़, गंवार जब भी अपना मुंह खोलते हैं तो विपक्षी पार्टियों पर भद्दे कमेंट करके वो अपने आपको शहंशाह समझते है वो ये नहीं जानते कि उनकी ये हरकत उन्हें अवाम की निगाहों में गिरा रही है उनके वजूद के साथ-साथ उनकी छवि को समाप्त कर रही है.
कहते हैं कि मूर्ख को आइना दिखाओगे तो पूछेगा ये कौन है ? ठीक इसी तरह ये भ्रष्ट नेता भी अपना चेहरा और अपनी करतूतों को आईने में देखकर आँखें बंद कर लेते हैं. गलत नीतियों और कुकर्मो को सुधारने के बजाय इन बिगडैल सांसदों के कुकर्मों को उचित ठहराकर उन्हें सही बतलाने की नाकाम कोशिशें करते हैं. देखा जाए तो इनकी देश विरोधी, मंहगाई, भ्रष्टाचार को बढाने वाले और देश को बेचने वाली जो छवि जनता के मन मे बन गयी है उसके कारणो को दूर करने के बजाय ये अपने झूठे प्रचार तंत्र को और मजबूत करने की बात सोचते रहते हैं अपने में सुधार करने की कोशिश के बजाय अपनी कमियों को छुपाकर आक्रामक प्रचार पर विश्वाश करते हैं.
देखा जाए तो अब आवाम इनके कुकर्मो को भूलने के बजाय इनके झूठे प्रचार के कारण और भी आक्रोश मे है या यूँ कहा जाए कि जनता की घृणा इन सबके लिये और भी बढ़ती जा रही है. राजनैतिक पार्टियों की हालत उस मूर्ख जैसी है जिसका चेहरा कीचड़ से सना हुआ है लेकिन वो अपना चेहरा स्वक्च्छ करने के बजाय शीशे को साफ़ कर रहा है.
संसद के अन्दर रोज-रोज पैदा हुए इन हालातों को देखते हुए एक ही बात कही जा सकती है कि अगर सोनिया के कांग्रेस अध्यक्ष और राहुल के उपाध्यक्ष होते हुए भी कुछ नहीं हो सकता तो फिर मनमोहन जी तो चुपाध्यक्ष हैं तो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है. दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस जो स्वयं ही देश के लिए चिंता का विषय है उसके चिंतन करने से देश की जनता और अधिक चिंतित हो जाएगी कि ना जाने अब कौन सा नया घोटाला होने वाला है……..
सुनीता दोहरे ……..

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