मोदी की 11 अगस्त को हैदाराबाद में होने वाली रैली के लिए बीजेपी ने लाल बहादुर स्टेडियम बुक कराया है. स्टेडियम की गैलरी में 25 हजार लोगो के बैठने की क्षमता है और 15 हजार लोग मैदान पर बैठ सकते हैं. अगर लोगों को खड़ा रहने की इजाजत दी गई तो यह संख्या दोगुनी हो सकती है. पार्टी को उम्मीद है कि एक लाख से ज्यादा लोग जुटेंगे. आंध्र प्रदेश की बीजेपी इकाई रजिस्ट्रेशन फीस के रूप में पांच रुपये ले रही है. पार्टी यह राशि उत्तराखंड पीड़ितों की मदद के लिए देगी. मोदी की ‘सोशल’ लोकप्रियता को देखते हुए इस रैली के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा भी दी गई है. सोमवार को मोदी का भाषण सुनने के लिए करीब 8 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया. लोगों में जबर्दस्त उत्साह है. पहले ही दिन 8 हजार लोगों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाया. रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया 10 अगस्त तक चलेगी. आइये अब देखते है भाजपा की इस रैली पर ५ रुपये के टिकिट के लिए कांग्रेस की क्या प्रतिक्रिया रही……. मोदी की अगले महीने हैदराबाद में होने वाली रैली में बीजेपी की ओर से 5 रुपये का टिकट लगाए जाने पर इसी बात को मद्देनजर रखते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने व्यंग्यात्मक लहजा अपनाते हुए कहा कि बाबाओं के प्रवचन सुनने के लिए 100 से 1 लाख रुपये तक के टिकट खरीदने होते हैं. बॉक्स ऑफिस पर सिनेमा का टिकट 200 से 500 रुपये में मिलती है, लेकिन मुख्यमंत्री को सुनने के लिए पांच रुपये का फ्लॉप टिकट रखा गया है. मनीष तिवारी ने कहा कि इससे मोदी की मार्केट वैल्यू पता चलती है. तिवारी ने इस फैसले को फासीवादी करार देते हुए कहा कि बीजेपी अब लोकतंत्र को ‘मॉनेटाइज’ कर रही है। तिवारी ने सवाल किया कि बीजेपी ने जनता पर सुनने का टैक्स तो लगा दिया है, अब बोलने पर भी टैक्स कब लगा रही है….. और वहीँ कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने आज इसे मार्केटिंग कौशल करार दिया. सिंह ने ट्विटर पर लिखा, भाजपा और आरएसएस मार्केटिंग में दक्ष हैं. वह मोदी को उत्पाद के रूप में बेच रहे हैं ? पांच रूपये प्रति व्यक्ति की दर पर. अश्चर्यजनक, उनके मार्केटिंक कौशल की दाद देनी चाहिए. कांग्रेस के एक अन्य नेता शकील अहमद ने ट्विट किया कि मोदी पुणे कालेज के छात्रों एवं युवाओं को यह बता कर मूर्ख बनाने का प्रयास कर रहे थे कि चीन शिक्षा पर जीडीपी का 20 प्रतिशत खर्च करता है? सही आंकड़ा 4 प्रतिशत है. देखा जाये तो दूसरी पार्टियां अपनी रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए पैसा देती है, लेकिन मोदी अकेले ऐसे नेता हैं जो फीस के बावजूद अपनी रैली में भारी संख्या में लोगों को जुटाने का दम रखते हैं. अन्य पार्टियाँ अपनी रैलियों के लिए लोगों को पकड़ कर लाती है लेकिन मोदी कि रैली में लोग पैसे देकर आने को तैयार है. मोदी की रैली से जुटाए गए धन को उत्तराखंड राहत में दान किया जाएगा. और वैसे भी मोदी जी के भाषण के लिये कोई टिकेट नही है यह उत्तराखंड बाढ पीड़ितों के लिये मदद की गुहार है. मैं मनीष तिवारी से कहना चाहूंगी कि मनीष तिवारी आप क्या इस देश के वासी या उतराखंड से नहीं है ? कुछ कहने से पहले थोड़ा तो सोच लिया होता आपके इस ब्यान को देखते हुए तो कॉंग्रेसी दिमाग का दिवालियापन ही कहा जायेगा. वो कहते है न कि बुझने से पहले दीपक की ज्योति फडफडाती जरुर है. सुना था 2013 मे प्रलय आएगी लेकिन अब यकीन हो गया की 2013 के बाद सत्ता परिवर्तन की प्रलय ज़रूर आएगी.. अब तक लगभग साठ हजार से ऊपर टिकट बिक चुके हैं. इस समाचार को तमाम लोग तमाम नजरिये से देखंगे कुछ लोग मोदी जी की लोकप्रियता में कसीदे पढ़ेंगे कुछ लोग उन्हें बुरा कहेंगे. पर मेरे लिए इस खबर का सीधा और सच्चा एक और पहलू है वो ये कि टिकट के माध्यम से मोदी जी और उनके रणनीतिकारों ने हजारों ऐसे लोगों को, जिनका उत्तराखंड के आपदा पीड़ितों के लिए अब तक किया गया सहयोग शून्य था, सहयोग का भाग बनाकर उन्हें भी पीड़ितों की सेवा के यज्ञ में से जुड़ने का अवसर प्रदान किया. मोदी की अद्भुत सोच और अत्यंत प्रशंसनीय कार्य की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. आज के माहौल को देखते हुए लगता है कि मौजूदा सरकार देश की अनदेखी कर रही है अगर निष्पक्ष होकर विचार करें तो भारत की दुर्दशा केवल दो ही कारणों से है – अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और नेताओं का स्वार्थ जिस में सब कुछ समा रहा है. अंधेरी गुफा में एक किरण आज के युवा अंग्रेजी माध्यम से फैलाई गयी इकतरफा धर्म निर्पेक्षता के भ्रमजाल से छुटकारा पाना चाहते हैं. वह अपनी पहचान को ढूंडना चाहते हैं लेकिन उन्हें मार्ग नहीं मिल रहा क्योंकि हमारे अधिकांश राजनेता और बुद्धिजीवी नागरिकों को 85 करोङ भूखे फुटपाथी भारतीय मंजूर है. डिग्री किये हुए दर-दर भटकते बेरोजगार मंजूर है. हर साल लाखो किसानो की आत्महत्या मंजूर है. भूख से तड़फकर मरता आम आदमी मंजूर है. मनरेगा जैसी घूसखोरी भरी योजना मंजूर है लेकिन देश की प्रगति मंजूर नहीं. देखते-देखते मात्र 72 घंटे में ही कांग्रेस की रणनीति बदल जाती है कांग्रेस पार्टी के हमले के केंद्र में अब भाजपा नहीं, बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. मोदी को कांग्रेस लगातार एक सूबे का मुख्यमंत्री और नेता बता कर ज्यादा अहमियत देने से इंकार करती रही थी. अब उसी मोदी के एक-एक ब्यान की एक-एक पंक्ति पर कांग्रेस के आला नेताओं की एक-एक शब्द पर कांग्रेस की पूरी फ़ौज पूरी तैयारी के साथ ताबड़तोड़ जवाबी हमले कर रही है. संकेत साफ़ है बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस ये मान चुकी है उसके लिए मोदी अचानक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभर चुके हैं. यही एकमात्र कारण है कि कांग्रेस अब 2014 की लड़ाई को पूरी तरह से धर्मनिरपेक्षता बनाम साम्प्रदायिकता बना देने की रणनीति पर काम कर रही है. सिर्फ मुस्लिम धर्मान्धता को संतुष्ट करने के लिए आज फिर से हिंदी के बदले उर्दू भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जा रहा है. सरकारी खर्च पर इस्लामी तालीम देने के लिए मदरसों का जाल और शैरियत कानून, इस्लामी अदालतें, इस्लामी बैंक और मुस्लिम आरक्षण के जरिये समानान्तर इस्लामी शासन तन्त्र स्थापित किया जा रहा है. क्या धर्म निर्पेक्षता के नाम पर यह सब कुछ राष्ट्रीय एकता को बढावा देगा या फिर से विभाजन के बीज बोयेगा ? मुझे लगता है कि देश विभाजन की पुनः तैयारियां होने लगीं हैं. सोशल साइटों पर कुछ लोग लिखते हैं कि अब वक़्त आ गया है कि हिन्दुओं को भी क्रूर होना पड़ेगा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हथियार उठाने पड़ेंगे तो उन लोगों को मैं ये बताना चाहूंगी कि ये संभव नहीं है और ये हमारी सभ्यता में नहीं है. जिस धर्म के बच्चो के हाँथ बायोलौजी की लेब में एक मरे हुए मेढक को चीरने में कांपते हों वो हिंसक कैसे हो सकता है भला ? सभी धर्म अपने धर्म के प्रति प्रेम एवं वफादारी रखे आपस में एकता रखें, !सेक्युलरों के बहकावे ना आये, उतना की काफी है इस देश की भलाई के लिए ….. सुनीता दोहरे…..
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