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दबकर रह गया उत्तराखंड तबाही का सच…..

sach ka aaina
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दबकर रह गया उत्तराखंड तबाही का सच…..

बॉक्स…… हम सब जानते हैं कि वो “शिव” ही सर्वशक्तिमान, परम बलवान, परम बुद्दिमान व सभी गुणों मे सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन फिर भी भगवान अपने भक्तों के साथ ऐसी क्रूरता क्यों करता है ?

उत्तराखंड में कुदरत के कहर ने कई परिवारों को ऐसा जख्म दिया है, जो शायद ही ताउम्र भरे. लोग अपने परिवार के साथ चार धाम की यात्रा पर गए थे, लेकिन ऐसे खुशकिस्मत लोग कम ही हैं जो सपरिवार वहां से सकुशल लौट पाए हैं। कई परिवारों ने अपने अजीजों को खोया है। इस भीषण तबाही से जो लोग भी बच गए हैं वे खुद को भाग्यशाली मान रहे हैं, लेकिन अपनी आंखों के सामने अपनों को खोने वालों की पीड़ा ऐसी है कि सुनने पर किसी का भी कलेजा मुंह को आ जाए. किसी ने पति के शव के साथ अकेले दो दिन गुजारे, किसी कि पत्नी का हाँथ छूटा तो देखते-देखते पत्नी पानी के रेले में बह गयी. उत्तराखंड में बारिश और बाढ़ से हुई तबाही की तस्वीरें बेहद खौफनाक थी. कि नजर पड़ते ही रोंगटे खड़े हो जाए.
ये सच है कि अब एक और नई तबाही सामने नजर आ रही है क्योंकि तबाही के बाद पहाड़ों पर अब महामारी का खतरा बढ़ गया है. शवों के सड़ने से महामारी से आशंकित स्वास्थ्य विभाग ने बीमारियों से निपटने की कवायद तेज कर दी है। रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और हरिद्वार में इंटिग्रेटेड डिजीज सर्विलान्स प्रोग्राम शुरू किया है। आपदाग्रस्त जिलों में अलर्ट जारी किया गया है। पहाड़ पर आई आपदा में इनसानों के साथ बड़ी संख्या में जीव-जंतु भी मरे हैं। इनमें रोडेंट्स (चूहे और गिलहरी) की संख्या अधिक है। इससे डायरिया, वायरल फीवर, निमोनिया, फेफड़ों के संक्रमण के साथ प्लेग के फैलने का खतरा भी है। डॉक्टरों का कहना है कि अक्सर भूकंप, बाढ़, भूस्खलन सरीखी आपदा आने के बाद प्लेग का खतरा बढ़ता है.
देखा जाये तो सरकार ने इस प्राक्रतिक आपदा को किसी युद्ध की तरह नही लिया ओर इसे हल्के मे लिया जिससे बहुत से जानें भूखे-प्यासे है आज तक, बहुत लोग बीमार हैं और अथाह संख्या में लोगों की जाने चली गई, इस तबाही में मरे हुए लोगो की आत्मा तडफ रही है लगता यही है अगर जल्दी ही कुछ नही किया गया तो यह महामारी अब दिल्ली तक नदियो के सात बहती हुई आएगी जो कि दिल्ली वासियों के लिए ही क्या जो-जो नदियाँ इससे जुडी हैं उनके आस-पास के रहने वाले लोगों के लिए खतरे की बात होगी. इस समय महामारी से लड़ना ही बहुत बड़ी चुनौती होगी.
अब हम सबके लिए सबसे ताज्जुब की बात तो ये है कि जब कांग्रेस की तरफ से जब उत्तराखंड के लिए राहत सामग्री से भरे ट्रकों का काफिला भेजा गया था तो ये ट्रक कई दिनों तक बीच रास्ते में अटके रहे लेकिन केंद्र सरकार को इस बारे में कोई खबर नहीं थी जब इतनी बड़ी विपदा पड़ी थी उत्तराखण्ड पर तब इस तरह के हालत हैं तो महामारी फैलने के समय ये कांग्रेस क्या करेगी. शायद सोनिया गाँधी अपने युवराज के साथ तब तक के लिए विदेश चली जाएँ जब तक महामारी का प्रकोप ख़तम न हो जाए. सच कहूँ तो मैंने जब से देखा है तो यही पाया है कि कांग्रेस हमेशा लाशो पर ही राजनीति करती रही है उसे भारत की आम-जनता के जज्बातों से कोई मतलब नही है उसे तो सिर्फ और सिर्फ गाँधी परिवार की बंधुआ मजदूर जैसी जनता चाहिए है. कांग्रेस के पास इसका कोई विकल्प नही है. और कांग्रेस ही क्यों आज के हालातों को देखते हुए लगता है कि सभी पार्टियाँ अपनी तिजोरी भरने में लगीं हैं.
अब सवाल उठता है कि सरकार क्या सो रही थी ? क्या सरकार को इनकी चीखें सुनाई नहीं दी ? इस आपदा से निपटने के लिए कोई आपदा प्रबंधन योजना क्यों नहीं थी ? सहजी मायने में तो कुदरत के कहर से भारी तबाही का सामना कर रहे उत्तराखंड के पास इस आपदा से निपटने के लिए कोई आपदा प्रबंधन योजना ही नहीं थी। अपनी सरंचना के कारण हमेशा ही प्राकृतिक आपदाओं के खतरे से घिरे रहने वाले इस राज्य की ओर से इन आपदाओं से निपटने के लिए कोई पुख्ता तैयारी नहीं की गई थी.  कैग द्वारा हाल ही में 23 अप्रैल को जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि अक्टूबर 2007 में गठित स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की आज तक कोई बैठक तक नहीं हुई है और न ही इस अथॉरिटी ने अब तक आपदा से निपटने के लिए कोई नियम-कानून या दिशानिर्देश ही बनाए हैं।
राज्य की आपदा प्रबंधन तंत्र की तरफ इशारा करते हुए कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमों के अनुसार आपदा के समय उससे निपटने की तैयारी की जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन तंत्र की होती है। लेकिन इस मामले में ‘राज्य की अथॉरिटीज पूरी तरह से निष्क्रय थीं।’ राज्य आपदा प्रबंधन प्लान निर्माणाधीन था और कई आपदाओं के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई गई।
क्या आपदा पूर्व चेतावनियों पर अमल करके उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों को तबाही से बचाया जा सकता था। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले से जारी चेतावनियों पर अमल करने के बारे में कोई योजना नहीं बनाई गई थी। ‘संचार व्यवस्था अपर्याप्त थी।’
यह लपरवाही तब और भी चौंकाने वाली बन जाती है जबकि वर्ष 2007-8 और 2011-12 के बीच राज्य में 653 लोगों ने प्राकृतिक आपदाओं में अपनी जानें गंवाईं। इनमें से 55 प्रतिशत लोगों की मौत भूस्खलन और तेज बारिश की वजह से हुई। इस अवधि के दौरान राज्य में 27 बड़े भूस्खलन की घटनाएं हुईं। अकेले वर्ष 2012 में 176 लोगों की मौत प्राकृतिक आपदा के कारण हुई।
साथ ही कैग की रिपोर्ट में राज्य आपदा राहत कोष के धन के इस्तेमाल में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों की तरफ इशारा किया गया है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार ने प्राकृतिक आपदा की सलाना रिपोर्ट तक तैयार नहीं की और नहीं उसने इस बात जानकारी दी की राहत कोष के फंड का इस्तेमाल कैसे किया गया। नतीजा वर्ष 2007-11 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा फंड जारी करने में 80 दिन से लेकर 184 दिनों की देरी हुई।
उत्तराखंड सरकार के कुप्रंबधन का उदाहरण देते हुए कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने जून 2008 में राज्य के 101 गांवों को असुरक्षित करार दिया था लेकिन आज तक राज्य सरकार ने उस गांव के लोगों के लिए पुर्नवास की योजना नहीं बनाई.
ये सत्य है कि प्राक्रतिक आपदा से बचा तो नही जा सकता परंतु बचाव के उपाय तो किये ही जा सकते थे वर्षा के मौसम में सरकार को अपनी तैयारी पूरी तरह रखनी चाहिए थी. क्योंकि ये तो सरकार को पता ही है कि वर्षा मे भूसलखन उत्तराखंड की एक आम समस्या है और कुदरत के आगे किसी की नही चलती.
देखा जाए तो आपदा प्रबंधन के नाम पर पूरा विभाग सिर्फ भ्रष्ट कमाई करने में लगा है. नकारे, गैरजिम्मेदार अफसर और कर्मचारियों को कुछ नही पता की ऐसी आपदा से कैसे निपटें. इनके आफीसों में फोन करो तो बहाने बनाते है. जब इनको मौसम विभाग ने पहले ही चेता दिया था तो जान माल की इतनी हानि क्यों होती है हर साल.
उतराखंड मे टूरिज्‍म के द्वारा इतनी कमाई होती है तो वहाँ विकास पर रुपये क्यू खर्च नही करती वहां की सरकार. उत्तराखण्ड में भी तो कांग्रेस की सरकार है. क्योंकि उत्तराखंड मे कॉंग्रेस सरकार अपने झगड़ों मे उलझी हुई है, कॉंग्रेस गुटों मे बटी हुई है मुख्यमंत्री बहुगुणा का ध्यान उत्तराखंड मे नही बल्कि दिल्ली मे रहता है ऐसे मे उत्तराखंड मे ना तो राहत कार्य हो रहे है और ना ही कोई व्यवस्था काम कर रही है सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है.
सच तो ये है कि प्रकृति के खिलाफ इंसान की फितरत पर ही यह प्रकृति का प्रकोप है एक कारण ये भी है कि जब से टिहरी बाँध बना है प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है अभी तो न जाने और कितने बाँध बनाने की सरकारी योजना है. आज से बीस साल पहले लोग 2-4 किमी पैदल चल लिया करते थे लेकिन अब हर गाव में सड़क पहुचने की योजनाओं ने भी जनता को प्रकृति के कोपभाजन का शिकार बनाया हैं. पहाड़ो में एक किमी सड़क बनाने में हजारो पेड़ों की बलि दी जाती है. कमाई के लिये पहाड़ों को काट-काटकर जो होटेल, रिज़ॉर्ट और सडकें बनाई जा रही हैं उससे पहाड़ कमजोर पड रहे है .पेड़ों की कटाई से मिट्टी भी ढीली हो गयी है तो बाढ़ भूस्खलन और तबाही का आलम नही होगा तो और क्या होगा. ठीक इसी तरह दिल्ली भी बारिश के लिये अभी तैयार नही है, ना नालों की सफाई का काम पूरा हुआ है ना ही सड़कों को ठीक किया गया है, अभी तक एमसीडी सड़कों पर तोड फोड़ करने में लगी है जब की बारिश के बारे में पहले से बताया जा रहा है. दिल्ली में भी कभी भी बाढ़ का बड़ा खतरा आ सकता है. हजारों के घर, हजारों जिंदगियां दांव पर लगीं हैं. और सरकार सो रही है ……..

उत्तराखंड प्रलय में जान गंवा बैठे उन हजारों लोगों को विनम्र श्रद्धांजली –
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हे देव
रचा तूने ये संसार हे देव फिर सृष्टि से ये की कैसी साज़िश
किया मानव का ऐसा दमन हवन हो गए तेरे दर पर जनम
हाँ मैं जानती हूँ कि तू सदियों से सिसक-सिसक के घुट रहा था
देखते-देखते तेरे आसुओं के सैलाब में ये उत्तराखंड बिखर रहा था…….
हे देव
तेरे अश्कों की सुनामी न जाने कितनी देहों को लील गयी
देख हे देव तेरे घर में ही असंख्य ह्रदयों को क्यों छील गयी
हे देव, हाँ मैं मानती हूँ कि क़यामत की कोई जात नहीं होती
पर सुन ले हे देव तेरे आगोश में ऐसे तो रात नहीं होती है ……..
हे देव
हे देव फिर क्यों करूँ दिन रात तेरी पूजा और कलमें पढूं
क्यों जाएँ संसार के सब प्राणी तेरे दर पे और सजदा करें
हे देव मैं मानती हूँ कि तेरे दर पे देर है सबेर है अंधेर नहीं
पर सुन ले हे देव खुद के भक्तों को मारना कोई बात नहीं होती …..
सुनीता दोहरे ………….

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