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एक बार फिर वो लापता हो गये और सब तलाशते रहे ……….

sach ka aaina
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suni
एक बार फिर वो लापता हो गये और सब तलाशते रहे………

बॉक्स…. सरकार क्या सो रही थी ? क्या सरकार को इनकी चीखें सुनाई नहीं दी ? इस आपदा से निपटने के लिए कोई आपदा प्रबंधन योजना क्यों नहीं थी ?…..

गौरतलब हो कि रविवार रात बहुत बारिश के बाद सोमवार सुबह से ही बाढ़ का खतरा मंडरा रहा था। 8 बजे के करीब वह मंदिर के अहाते में साफ़-सफाई करवा रहे थे तभी करीब तीन किलोमीटर ऊपर स्थित गांधी सरोवर फट गया और मलबा केदारनाथ की तरफ आने लगा। सवा आठ बजे मलबे और पानी का प्रवाह  इतना तेज हो
गया कि 8.30 बजे तक पूरा केदारनाथ तबाह हो गया। दो घंटे बाद तबाही का मंजर नजर आने लगा था। ये है हकीकत जिसे ना तो मीडिया दिखा रहा है और ना ही कोई नेता बता रहा है लानत है इस देश की सरकार पर.
शर्म की बात है कि उत्तराखंड में जो तबाही आई उस पर नेता अपनी सियासत चमकाने में जुटे है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड राज्य के बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई दौरा करने शुक्रवार शाम देहरादून पहुंचे. लेकिन इस पर पहले ब्रेक लगाया बारिश ने फिर गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने. दरअसल मोदी शनिवार सुबह 7.30 बजे उत्तराखंड का हवाई दौरा करने वाले थे पर बारिश ने उनकी इस मंशा पर पानी फेर दिया अब सवाल ये उठता है कि बीते शुक्रवार मोदी त्बाहो का जायजा लिए बगैर हरिद्वार क्यों लौटे थे ?
गौरतलब है कि इससे पहले जब शनिवार सुबह शिंदे मीडिया से रूबरू हुए तो उन्होंने कहा कि वीआईपी लोगों के आने से राहत में काम बाधा आती है. उनका इशारा साफ था. क्योंकि निशाने पर थे मोदी.
हजारो हिन्दू तीर्थ यात्री उत्तराखंड की तबाही में समां गये. इन के मृत शरीर को चील कौव्वे और जंगली जानवर नोच-नोच कर खा रहे हैं. जो बचे हैं वह भूख प्यास से तड़फ रहे हैं. 19 तारीख को मुख्यमंत्री जी दिल्ली में राहुल गाँधी का बर्थडे मनाने और केक खाने गए हुए थे. 20 तारीख को सोनिया गाँधी जयपुर में चुनावी सभा में खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर
भाजपा को खरी-खोटी सुना रही थीं, सुना है कि कांग्रेस के होनहार पीएम उम्मीदवार उर्फ “पप्पू” अमेरिका में डेटिंग पर हैं. शिन्दे साहब हमेशा की तरह खुद ही स्पष्ट नहीं हैं कि क्या कह रहे हैं और क्या करना चाहते हैं बस टाइम पास कर रहे हैं और यह वही सोनिया जी हैं जो बाटला हॉउस में मारे गए आतंकियों पर आंसू बहा रही थी. लेकिन अब जब हजारों हिन्दू मरे हैं तो सोनिया के आंसू सूख गए हैं. इस त्रासदी पर किसी भी तथाकथित सेक्युलर (चाहे कांग्रेस का हो या अन्य पार्टी का) नेता का संवेदना संदेश नहीं आया. क्योंकि यह मरने वाले हिन्दू हैं. धिक्कार है ऐसी सरकार की मानसिकता पर जो इंसान को इंसान नही समझती.
राहुल गाँधी कैसे भारत की जनता से अपनी हमदर्दी दिल से दिखा सकते है जो भाषण में हमदर्दी दिखाते है अगर अभी जल्दी चुनाव होते जगह उत्तराखंड होती और सवाल कांग्रेस का होता तो राहुल नंगे पैर फ़िल्मी हमदर्दी दिखाते हुए जनता के सामने झुक-झुक जाते. लेकिन आम-जन मुसीबत पड़ी है तो विदेश में बैठकर चैन-ओ-सुकून की सांस ले रहे हैं.
.लाशों वा मौत से जूझ रहे लोगों के ऊपर चाहें चील, कौए या गिद्ध उड़ रहे हों या फिर ‘नेताओं के हेलीकॉप्टर’ नीचे से सब उनको एक जैसे ही लगते हैं.. पर जो नेता नीचे उतर कर उनका हाथ थाम लेता है या उनको सात्वना देता है कि सब ठीक हो जाएगा हम प्रयास कर रहे हैं.. तो उनके दिलों में ज्यादा नहीं तो कम से कम थोडा तो चैन पड़ ही जाता है.
सोनिया और मनमोहन सिंह का हिंदू सिखों की लाशों वा मौत से जूझ रहे लोगों के ऊपर से उड़ कर वापस आ जाना क्या इनकी संवेदनहीनता को प्रकट नहीं करता ? आम-जनता का इनके प्रति विश्वास क्या अब भी यूँ ही बना रहेगा ?
सोनिया और मनमोहन सिंह के इस तरह के दौरे ने पीड़ितों को कितना चैन व सात्वना दी होगी.
मैं सोच कर ही परेशान हूँ, उन लोगों को तो शायद ये भी पता नहीं लगा होगा कि हमारे ऊपर से देश का प्रधानमंत्री उड़ कर वापस चला गया. कहने को तो सोनिया गांधी ने अपने पार्टी के सभी सांसदों और विधायकों से कहा कि वह बाढ़ से बुरी तरह तहस-नहस हुए उत्तराखंड में राहत कार्यों के लिए अपने एक महीने का वेतन राहत कोषो में दान करें.
पर क्या आपको पता है कि मामला ठंडा होते ही ये धन सभी विधायको को वापस लोटा दिया जाएगा.
सोनिया जी आपने ये क्यों नही कहा कि उस एक महीने के दौरान कमाया हुआ काला धन उत्तराखण्ड की विपत्ति पर दान करें क्योंकि काला धन अरबों की संख्या में होगा जो कि उत्तराखण्ड की माली हालत को सुधारने के लिए काफी होगा.
सोनिया जी आपकी सरकार ये क्यों नहीं सोचती कि उत्तराखंड में हुई तबाही किसी एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश की तबाही है.
अब सवाल उठता है कि सरकार क्या सो रही थी ? क्या सरकार को इनकी चीखें सुनाई नहीं दी ? इस आपदा से निपटने के लिए कोई आपदा प्रबंधन योजना क्यों नहीं थी ? सही मायने में तो कुदरत के कहर से भारी तबाही का सामना कर रहे उत्तराखंड के पास इस आपदा से निपटने के लिए कोई आपदा प्रबंधन योजना ही
नहीं थी। अपनी सरंचना के कारण हमेशा ही प्राकृतिक आपदाओं के खतरे से घिरे रहने वाले इस राज्य की ओर से इन आपदाओं से निपटने के लिए कोई पुख्तान तैयारी नहीं की गई थी. कैग द्वारा हाल ही में 23 अप्रैल को जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि अक्टूबर 2007 में गठित स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की आज तक कोई बैठक तक नहीं हुई है और न ही इस अथॉरिटी ने अब तक आपदा से निपटने के लिए कोई नियम-कानून या दिशानिर्देश ही बनाएन हैं। राज्य की आपदा प्रबंधन तंत्र की तरफ इशारा करते हुए कैग की रिपोर्ट में
कहा गया है कि नियमों के अनुसार आपदा के समय उससे निपटने की तैयारी कीन जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन तंत्र की होती है। लेकिन इस मामले में ‘राज्य की अथॉरिटीज पूरी तरह से निष्क्रय थीं।’ राज्य आपदा प्रबंधन प्लान निर्माणाधीन था और कई आपदाओं के लिए कोई योजना ही नहीं बनाई गई। क्या आपदा पूर्व चेतावनियों पर अमल करके उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों को तबाही से बचाया जा सकता था। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले से जारी चेतावनियों पर अमल करने के बारे में कोई योजना नहीं बनाई गई थी।
‘संचार व्यवस्था अपर्याप्त थी।’ यह लपरवाही तब और भी चौंकाने वाली बन जाती है जबकि वर्ष 2007-8 और 2011-12 के बीच राज्य में 653 लोगों ने प्राकृतिक आपदाओं में अपनी जानें गंवाईं। इनमें से 55 प्रतिशत लोगों की मौत भूस्खलन और तेज बारिश की वजह से हुई। इस अवधि के दौरान राज्य में 27 बड़े भूस्खलन की घटनाएं हुईं। अकेले वर्ष 2012 में 176 लोगों की मौत प्राकृतिक आपदा के कारण हुई। साथ ही कैग की रिपोर्ट में राज्य आपदा राहत कोष के धन के इस्तेमाल में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों की तरफ इशारा किया गया है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार ने प्राकृतिक आपदा की सलाना रिपोर्ट तक तैयार नहीं की और
नहीं उसने इस बात जानकारी दी की राहत कोष के फंड का इस्तेमाल कैसे किया गया। नतीजा वर्ष 2007-11 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा फंड जारी करने में 80 दिन से लेकर 184 दिनों की देरी हुई। उत्तराखंड सरकार के कुप्रंबधन का उदाहरण देते हुए कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने जून 2008 में राज्य के 101 गांवों को असुरक्षित करार दिया था लेकिन आज तक राज्य सरकार ने उस गांव के
लोगों के लिए पुर्नवास की योजना नहीं बनाई.
जहाँ तक मुझे लगता है कि कांग्रेस घबरा रही है की कहीं उत्तराखंड में फंसे 70000 लोग मोदी {भाजपा} के दीवाने बनकर उसे वोट ना दे दें. अब देखा जाए तो कांग्रेसी या नीतीश जाना चाहें तो रेड कारपेट तो पक्का है कि सरकार बिछा देगी
और इसीलिए मोदी जको उत्तराखंड के दौरे पर जानो को मनाही हुई थी.
कहने को तो बहुत कुछ है उत्तराखंड की आपदा में मीडिया का रोल बेहद भेदभावपूर्ण रहा और इस आपदा में ही क्यों हर मुद्दे पर जो आम –जन से जुड़े होते हैं उनको भी मीडिया यूँ ही अनदेखी करता रहा है. एसक लगता है जैसे स्थानीय निवासियों कि किसी को चिंता ही नह्जी है और अगर है तो केवल बाहरी पर्यटकों की. क्योंकि ये गरीब लोग उनके चैनलों की टीआरपी नहीं बड़ा सकते हैं.
अब यूँ ही देख लीजिये पिछले साल रुद्रप्रयाग के एक गांव में बादल फटा था पूरा गांव नक्शे से साफ हो गया, वे स्थानीय लोग थे, 2010 में लोग 15 दिन तक करीब 15 दिन तक राजमार्ग बंद रहा, पहाड़ के लोकल रूट तो महीने बाद खुले, सरकार ने कोई सुध नही ली, उतरकाशी में अस्सी गंगा मे बाढ़ आई पूरा शहर तहस नहस हो गया था बीजेपी की सरकार थी, अब कांग्रेश को चूना तो वही हाल, जो केन्द्र में एसी रूम में तय होगा वही करेगे, प्रक्रति को ज़ख्म कोई और देता झेलते स्थानीय लोग, इस बार पहली बारिश में ही ताण्डव मच गया, स्थानीय पहाड़ के लोगो के लिये नई बात नही हैं पर यात्रियो के लिये जरूर एक सबक हैं ताकि आगे मौसम का मिजाज देख कर आये.
सुनीता दोहरे ..

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