बॉक्स……. सबसे अहम् बात जो आप लोगों के ज्ञान में आनी चाहिए कि गुजरात मे पुलिस के उपर कोई पॉलिटिकल प्रेशर नही है इसलिये कोई गुंडागर्दी करके वोट नही मांग सकता. जबकि उत्तर-प्रदेश मे तो गुंडों को मंत्री बनाया जाता है तो आम लोग गुंडो के डर से उन्ही को वोट देते हैं………..
{बेंगलुरु में गुरुवार को उत्तर-प्रदेश के सीएम अखिलेश सिंह यादव ने गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि मोदी को बीजेपी के चुनाव समिति का चेयरमैन बनाए जाने से उत्तर-प्रदेश में कोई जादू नहीं होने वाला. मोदी उत्तर-प्रदेश की राजनीति से अच्छी तरह से वाकिफ हैं. मोदी की पदोन्नति और उनका जादू उत्तर-प्रदेश में कुछ नहीं कर पाएगा। उनका जादू बस टेलिविजन और गुजरात में चलता है. उत्तर-प्रदेश ने हमेशा से समाज और देश को बांटने की कोशिश करने वालों को रोका है. यूपी में सांप्रदायिक ताकतों का जादू नहीं चलता } अखिलेश के इस बचकाने ब्यान ने मुझे ये सब लिखने पर मजबूर किया. मैं नहीं चाहती थी कि इस विषय पर कुछ ऐसा लिखूं जिससे मुझे फिर से दबाव झेलना पड़े. लेकिन एक कलमकार की कलम सत्य ब्यान करने को हमेशा मचलती रहती है. मैं मोदी की समर्थक नहीं हूँ और ना ही मैं किसी और पार्टी का समर्थन करती हूँ क्योंकि राजनीति के इन चाटूकारों से मुझे नफरत है बेइंतहा नफरत, क्योंकि ये सिर्फ रुपयों की भाषा समझते हैं इंसानियत इनके आस-पास भी नहीं फटकती. आम-आदमी का वोट लेने के लिए न जाने कितने झूठे वादे करते हैं और सरकार बनने पर जनता की गाढ़ी कमाई से ऐश करते हैं. आइये अब आते है मुख्य मुद्दे पर……. अखिलेश जी आपसे मेरा सिर्फ एक सवाल है कि जब नरेन्द्र मोदी का जादू न्ही चल रहा है तो आपके उत्तर-प्रदेश के लोग रोजी रोटी के लिये गुजरात और दूसरे राज्यों मे क्यों जाते है ? अखिलेश जी जितनी आपकी उम्र है उतने साल तो गुजरात्त के शेर ने राजनीति पर बादशाहत करने में निकाल दिये है. अखिलेश आप उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं आपने अभी एक साल ही पूर्ण किया है और वहीँ नरेंद्र मोदी ने गुजरात में तीन बार हैट्रिक मारी है. सर्वे किया जाये तो दोनों मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने राज्यों के कार्यकाल में कौन सा जादू चलाया है. गुजरात के बारे में तो सभी को पता है और रही उत्तर-प्रदेश की बात तो उत्तर-प्रदेश के कानून-व्यवस्था पर अखिलेश सरकार की पकड़ दिनों-दिन कमजोर होती जा रही है. अपराधियों के हौसले इसलिए बुलंद हैं क्योंकि उनके कई ‘सीनियर नेता मंत्रिमंडल में शामिल हैं. सांप्रदायिक हिंसा भी इस एक साल के दौरान राज्य में फिर से चरम पर है. अखिलेश जी आपके उत्तर-प्रदेश में युवकों को रोजगार चाहिये वो तो मिलेगा नही क्योंकि रोजगार सिर्फ यादवो तक ही सीमित है. जनता को पुलिस प्रशासन से न्याय चाहिए वो तो मिलेगा नहीं क्योंकि शहर के हर पुलिस थाने में एक-एक दरोगा यादव बैठा है जो राज्य सरकार की उँगलियों पर नाचता है. जनता ने आप को सीट दी और आपके राज में ये कैसी लूट खसोट गुंडा गर्दी जनता झेल रही है. वैसे भी अब जनता कभी सपा—-कभी बसपा के खेल में फंसकर थक चुकी है. यहाँ पर एक बात और विचारणीय है कि गुजराती लोग पैसे वाले है इसलिये वो पैसे लेकर वोट नही देते. उत्तर-प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में जहा लोगों के खाने के लिये मुश्किल है उनको पैसों के अलावा कुछ नही चाहिये और ६५ सालो से भ्रष्टाचार से युक्त कॉंग्रेस और बसपा और सपा के पास इतना पैसा है की वो पूरे देश के गरीबो के वोट खरीद सकते है. गुजराती लोग बिजनेस मे ज्यादा दिलचस्पी रखते है, जबकि उत्तर-प्रदेश मे सरकारी नोकरी के अलावा लोगो के पास दूसरा स्रोत नही है इसलिये आरक्षण के नाम पे सपा, कॉंग्रेस और बसपा को वोट मिलते है. सबसे अहम् बात जो आप लोगों के ज्ञान में आनी चाहिए कि गुजरात मे पुलिस के उपर कोई पॉलिटिकल प्रेशर नही है इसलिये कोई गुंडागर्दी करके वोट नही मांग सकता. जबकि उत्तर-प्रदेश मे तो गुंडों को मंत्री बनाया जाता है तो आम लोग गुंडो के डर से उन्ही को वोट देते हैं. और जहा तक आपने अखिलेश जी साम्प्रदायिकता की बात की है तो प्रश्न उठता है कि इसमे सच्चाई कम और हौआ ज्यादा बनाया जा रहा है. देखा जाए तो वर्तमान माहौल में मुसलमानों का एक बड़ा तबका विकास का पक्षधर होने के चलते मोदी के साथ खड़ा है और ये बात भी सत्य है कि मोदी के नेतृव में भाजपा ने सतत तीन विधान सभा चुनाव जीते, पर मोदी ने दुसरे नेताओं की तरह टी.वी या लैपटाप देने के लुभावाने वायदे नहीं किये उन्होंने अपने कृतित्व एवं स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्पराओ के आधार पर चुनाव लड़े और जीते. इसी का परिणाम है की आज वह अविश्वास से भरे एवं दूषित राजनीतिक माहौल में आस्था और विश्वास के पर्याय बनकर उभरे है. इसके चलते इस बात की पर्याप्त संभावना है की मोदी की अगुवाई में भाजपा एक ऐसी आर–पार की लड़ाई लड़ सके, जिसके चलते वह देश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन सके. और जनाकांक्षाओ को पूरा करने के साथ अपने मूलभूत मुद्दों को भी मूर्त रूप दे सके…………….. सुनीता दोहरे …..
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