उत्तर-प्रदेश में शाह की नियुक्ति राजनीतिक जुआ है…….. बॉ
sach ka aaina
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उत्तर-प्रदेश में शाह की नियुक्तिराजनीतिक जुआ है……..
बॉक्स….. उत्तर-प्रदेश में वर्तमान सरकार के खिलाफ असंतोष का माहौल है। सपा को पिछले विधानसभा चुनाव में पिछड़ी जाति के वोटों के अलावा अगड़ी जाति के वोट भी मिले थे. लेकिन वर्तमान सरकार के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी के कारण इस बार ये वोट भाजपा जैसी पार्टियों के पास जा सकते हैं………
भाजपा में चल रही ‘मोदी महाभारत’ भले ही अभी पूरी तरह खत्म न हुई हो लेकिन संघ परिवार के रणनीतिकारों ने मिशन मोदी और मिशन-2014 की तरफ एक कदम और आगे बढ़ा दिया है. मोदी को यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला हो गया है। सिर्फ इसकी घोषणा ही बाकी है. उनके लिए जिन स्थानों की चर्चा है उनमें लखनऊ पहले नंबर पर है. मैंने अपने पिछले ब्लॉग
मैं लिखा था कि नरेंद्र मोदी लखनऊ से चुनाव लड़ सकते है. और अब ये बात आपके सामने है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मिशन-2014 में निर्णायक भूमिका सुनिश्चित करने की महत्वाकांक्षा के साथ देश के सबसे ज्यादा सियासी महत्व वाले राज्य उत्तर-प्रदेश के प्रभारी बनाकर भेजे गए नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह ने बुधवार को अपना कामकाज संभाल लिया। नई जिम्मेदारी संभालने के साथ ही शाह ने कहा कि लोकसभा चुनाव तक वह महीने में 20 दिन यहीं रहेंगे. मोदी ने अपने करीबी अमित शाह के जरिए यूपी की राजनीति में प्रवेश कर लिया है। संघ परिवार के रणनीतिकारों ने गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को अब उत्तर-प्रदेश के जरिये केंद्रीय राजनीति में भेजने का फैसला किया है. यूपी में भाजपा की जमीन को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी लेकर लखनऊ आए मोदी के करीबी अमित शाह ने प्रदेश में मोदी के लिए भी मजबूत जमीन की तलाश शुरू कर दी है. उन्होंने प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत में इसका संकेत भी दिया. और साथ ही शाह ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा ”मैं पहली बार उत्तर प्रदेश आया हूं। मैं इतना कह सकता हूं कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनेगी जिसकी मजबूत नींव उत्तर-प्रदेश से रखी जाएगी।” मोदी के लिए लखनऊ के अलावा जिन सीटों पर संभावना तलाशी जा रही है, उनमें वाराणसी, इलाहाबाद के साथ-साथ भाजपा के एजेंडे का प्रमुख हिस्सा अयोध्या भी शामिल है.. रणनीतिकार मोदी को लखनऊ सीट से लड़ाकर एक तो अटल बिहारी वाजपेयी के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें स्थापित करना व चर्चा दिलाना चाहते हैं तो यह संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा वाजपेयी की विरासत को महत्वपूर्ण व पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल मानती है। शाह ने कहा कि प्रदेश के कुल 1.27 लाख बूथों में से यदि पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता एक-एक बूथ अंगीकार करके पार्टी को मजबूत करने में जुट जाएं तो लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करना मुश्किल नहीं है. पार्टी के केंद्रीय प्रभारी ने पांच-पांच बूथों को शक्ति केंद्र बनाकर पार्टी पदाधिकारियों एवं वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को व्यापक जनसंपर्क शुरू करने का सुझाव दिया है. संगठन की चूलें कसने की हसरत लिए राजधानी पहुंचे शाह ने प्रदेश के नेताओं से कहा कि वह स्वयं महीने में 20 दिन प्रदेश में बिताएंगे. भाजपा की भगवा राजनीति के लिए फैजाबाद का महत्व सभी को पता है। विशेष स्थिति में इलाहाबाद व वाराणसी का भी अध्ययन कराया जा रहा है. मोदी के मुद्दे पर लालकृष्ण आडवाणी को मनाने वाला संघ मोदी के नाम पर पीछे हटने को तैयार नहीं है. सूत्रों के अनुसार, संघ इन चुनावों को अभी नहीं तो कभी नहीं के रूप में ले रहा है। इसलिए उसकी तरकश में जो भी तीर हैं उनको उसने इस पर बार आजमा लेने का फैसला किया है। ये सभी जानते हैं कि एक समय था जब उत्तर-प्रदेश भाजपा का गढ़ रहा है, लेकिन अब हालत यह है कि उसे तीसरे स्थान के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है और यही कारण है कि संघ यूपी से किसी ऐसे चेहरे को उतारना चाहता है जिसमें अटल की तरह न सही तो भी अपने व्यक्तित्व से वोटों को आकर्षित करने की क्षमता है. संघ के रणनीतिकारों को पता है कि यूपी से सीटों की संख्या में इजाफा करके ही केंद्रीय सत्ता पर पार्टी को बैठाने का सपना देखा जा सकता है। इसके लिए उसके पास सबसे ज्यादा उपयुक्त हथियार हिंदुत्व का ही है। चूंकि भाजपा के भगवा एजेंडे के प्राणतत्व अयोध्या, मथुरा व काशी यहीं है। इसलिए वह यहां से ऐसे किसी व्यक्ति को चुनाव मैदान में उतारना चाहता है जो भगवा एजेंडे को धार दे सके. स्वाभाविक रूप से मोदी इस कसौटी पर फिट बैठते हैं. साथ ही विकास के मुद्दे पर भी उसकी विश्वसनीयता हो। इस कसौटी पर भी संघ के पास फिलहाल मोदी का ही चेहरा है। मोदी न सिर्फ भगवा व विकासवादी चेहरा माने जा रहे हैं बल्कि वह भाजपा के राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी नए चेहरे हैं. साथ ही यह तर्क भी दे सकते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने वाला पहले अटल के रूप में उत्तर-प्रदेश से होता था तो अब मोदी के रूप में होगा। भाजपा को चेहरा भले ही बदलना पड़ा हो लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में वह उत्तर-प्रदेश को महत्व दे रहा है. एक बात और विचारणीय है कि उत्तर-प्रदेश में वर्तमान सरकार के खिलाफ असंतोष का माहौल है। सपा को पिछले विधानसभा चुनाव में पिछड़ी जाति के वोटों के अलावा अगड़ी जाति के वोट भी मिले थे. लेकिन वर्तमान सरकार के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी के कारण इस बार ये वोट भाजपा जैसी पार्टियों के पास जा सकते हैं. बहरहाल जो भी हो चुनाव प्रबंधन के लिए मशहूर अमित शाह के लिए उत्तर-प्रदेश में चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. जैसे…..क्या ग्यारह साल से यूपी की सत्ता से बाहर चल रही भाजपा में अमित शाह जान फूंक पाएंगे ? अमित शाह क्या खेमों में बंटे उत्तर-प्रदेश के नेताओं को एक साथ ला पाएंगे ? उत्तर-प्रदेश में बीजेपी से मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्रा, विनय कटियार, लक्ष्मीकांत वाजपेयी, लालजी टंडन, वरुण गांधी जैसे कई कद्दावर नेता हैं. लेकिन सवाल उठता है कि क्या अमित शाह इन सबके साथ तालमेल बिठाकर सियासी कार्य कर पाएंगे. अमित शाह को इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि वे ऐसे नेताओं से न घिरने पाएं जिन्होंने अपने हितों के लालच में उमा भारती को किनारे कर दिया. अब मौजूदा हालत की बात करें, तो भाजपा बहुत चैन की सांस नहीं ले सकती. 2012 के पहले तक तो हाल ये था कि शहर की पांचों सीटों को भाजपा क्लीन कर देती थी. मगर पिछले चुनाव में यहां की सिर्फ एक ही सीट कमल के हिस्से आई. इस सीट पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र चुनाव लड़े थे. एक सीट पर पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी काबिज हैं. पूर्व आईआईएम प्रोफेसर और अब अखिलेश सरकार में मंत्री अभिषेक मिश्र भी यहीं से विधायक हैं. हालांकि पार्टी यह कहकर अपनी पीठ थपथपा सकती है कि स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी के दिनेश शर्मा ने बतौर मेयर राजधानी पर कब्जा बरकरार रखा है…….. सुनीता दोहरे …..
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