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ये बुजुर्ग हैं इन्हें छोड़ देते हैं…….

sach ka aaina
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ये बुजुर्ग हैं इन्हें छोड़ देते हैं…….

बॉक्स….. इनका दुस्साहस इसलिए बढ़ रहा है, क्योंकि शासन-सत्ता-राज्य उनके समक्ष समर्पण की मुद्रा में है और कुछ पथभ्रष्ट बुद्धिजीवी और मानवाधिकारवादी उनका समर्थन कर रहे हैं……….

रोहड़ा की गाड़ी काफिले में सबसे पीछे थी. सामने की गाड़ियों पर फायरिंग हुई तो रोहड़ा की गाड़ी के ड्राइवर ने यू-टर्न लिया, लेकिन पीछे से भी फायरिंग होने लगी. नक्सली 50-60 फीट की दूरी से फायरिंग करते हुए आगे बढ़ते आ रहे थे. शुक्ल को बचाने के लिए ड्राइवर ने सीट को पीछे की तरफ झुका दिया, लेकिन पहली गोली ड्राइवर को छूती हुई उन्हें ही जा लगी. नक्सली गाड़ी के पास आ गए. उन्होंने शुक्ल को लहूलुहान देखा और कहा ये बुजुर्ग हैं इन्हें छोड़ देते हैं. उन्होंने उन्हें गाड़ी से नीचे उतारकर वहीं छोड़ दिया और बाकी लोगों को अपने साथ जंगल ले गए. जब पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल की गाड़ी पर फायरिंग हुई तो उनका पीएसओ प्रफुल्ल शुक्ला बाहर निकल आया था. जवाबी फायरिंग करने के लिए वह गाड़ी के नीचे घुस गया, लेकिन नक्सलियों ने गाड़ी के पहियों में गोली मार दी. इससे गाड़ी नीचे बैठ गई. पीएसओ को फायरिंग करने में मुश्किल पेश आने लगी. बाद में उसने शुक्ल से माफी मांगते हुए खुद को गोली मार ली. कितना दर्दनाक हादसा है सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में कांग्रेस के काफिले पर हुए बर्बर हमले के तीन दिन बाद नक्सलियों ने इसकी जिम्मेदारी ली है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमिटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी की ओर से मीडिया को जारी बयान में कहा गया है कि ‘दमन की नीतियों’ को लागू करने के लिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को निशाने पर लिया है. इसके साथ ही हमले में कांग्रेस के छोटे कार्यकर्ताओं और गाड़ियों के ड्राइवरों व खलासियों के मारे जाने पर खेद भी जताया गया है. माओवादी संगठन की ओर से जारी चार पेज के प्रेस नोट में कहा गया है, ‘दमन की नीतियों को लागू करने में कांग्रेस और बीजेपी समान रूप से जिम्मेदार रही हैं और इसलिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं पर हमला किया.
कांग्रेस के बड़े नेताओं को मारे जाने को सही ठहराते हुए गुड्सा उसेंडी ने कहा, ‘राज्य के गृहमंत्री रह चुके छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जनता पर दमनचक्र चलाने में आगे रहे थे. उन्हीं के समय में ही बस्तर इलाके में पहली बार अर्द्ध-सैनिक बलों की तैनाती की गई थी. यह भी किसी से छिपी हुई बात नहीं कि लंबे समय तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहकर गृह विभाग समेत अनेक अहम मंत्रालयों को संभालने वाले विद्याचरण शुक्ल भी जनता के दुश्मन हैं, जिन्होंने साम्राज्यवादियों, दलाल पूंजीपति और जमींदारों के वफादार प्रतिनिधि के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने और लागू करने में सक्रिय भागीदारी की. उसेंडी ने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह और महेंद्र कर्मा के बीच तालमेल का उदाहरण सिर्फ इस बात से ही समझा जा सकता है कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रिमंडल का 16वां मंत्री कहा जाने लगा था. सलवा जुडूम की चर्चा करते हुए उसने कहा, ‘बस्तर में जो तबाही मची, क्रूरता बरती गई, इतिहास में ऐसे उदाहरण कम ही मिलेंगे.’ उसका आरोप है कि कर्मा का परिवार भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का अमानवीय शोषक और उत्पीड़क रहा है. बयान में आरोप लगाया गया है कि सलवा जुडूम के दौरान सैकड़ों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. उसेंडी का कहना है कि इस कार्रवाई के जरिए एक हजार से ज्यादा आदिवासियों की ओर से बदला लिया गया है, जिनकी सलवा जुडूम के गुंडों और सरकारी सशस्त्र बलों के हाथों हत्या हुई थी. हमले में कई गरीब और निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की भी मौत हुई है.
देखा जाये तो नक्सली, खनन माफिया, राज नेताओं के इस त्रिकोण ने सारे देश को परेशान कर रखा है. सिर्फ नेताओं पर नक्सली हमला कहना और ये कहना कि नक्सली नेताओं के दुश्मन हैं एक दिखावा है असल में जिन क्षेत्रों में खनन माफिया हैं उन्ही जगहों पर नक्सली अधिक सक्रिय हैं और ये नक्सली कुछ ले-दे लेकर उनको पूर्ण सुरक्षा देते हैं. जहाँ तक मुझे याद है की झारखंड को बिहार और ओरिसा के हिस्से से कांग्रेस ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिये प्रदेश बनाया जहां पर सीबू शोरेन – अजित जोगी आदि भी मुख्यमंत्री रहे यानी कांग्रेस का राज रहा. माओवादियों को कम्यूनिस्ट के साथ जोड़ा यानी उन्होने इनको बनाया और पूरी तरह से इनको मदद दी. कभी वो मदद इन्होने चीन से लेकर् उनको दी. ठीक इसी तरह पाकिस्तान की मदद भारत के आतंकवादी संगठन है उनको कर रहे है. जिसकी देखरेख वहां का आईएसआई करता है यानी देश को तबाह करने एक लिये चीन और पाकिस्तान की मदद की जा रही है सीढ़ी सी समझने की बात है कि क्योंकि जब मुस्लिम हादसा करता है तब कांग्रेस की बोलती बंद हो जाती है. जब चीन देश पर कब्जा करने के लिये 5 किलो मीटर सदक़ा बनकेर और 19 किलो मीटर सेना सहित घुसपैठ करता है तब भी कॉंग्रेस शांत रही है कांग्रेस ने कभी अपने देश के प्रति भक्ति नही दिखाई.
ये सच है कि माओवादियों ने जो किया वह क्रूरता है लेकिन आदिवासी बेगुनाहों को मारना भी तो सरकारी क्रुरता ही थी. नेताओं को सबक लेना चाहिए कि ये वो लोग हैं जो कल तक खाने के लिए तरस रहे थे लेकिन आज इन लोगों ने अपना डर छोड़कर हथियार उठा लिया है. हथियार भी कैसा. एके 47, आई ई डी, आर डी एक्स और क्या-क्या मुझे तो नाम भी नहीं पता. सरकारें बुरी तरह से नाकाम साबित हो रही है क्यों ? इतना क्रूर इंसान तभी बनाता है जब जुल्म की इंतहा हो जाती है. आजादी के बाद से अभी तक जनता नेताओं व उच्च अधिकारियों के जुल्म सहती आ रही है. यह आक्रोश है आवाम की पीड़ा का. यह आक्रोश है उन लोगों का जिनकी बहिन बेटियों से जबरन बलात्कार किये गये हैं. यह आक्रोश है उस जुल्म का जो वहां के आदिवासियों ने नेताओं से सहे हैं. यह रूप है उन राक्षशी प्रवर्तियों के खिलाफ जिसे जनता बेबस लाचार हो सहती आ रही है. यह उस सिस्टम के खिलाफ आम जनता का आक्रोश है जो उन्हें तिल-तिल कर मार रहे है. यह क्रोध है सरकार की उस हठधर्मिता के खिलाफ जो आवाम की तकदीर निचोड़ नेताओं व उच्च अधिकारियों की तिजोरियाँ भरती हैं. इतना बड़ा आक्रोश केवल छत्तीसगढ़ में ही रहेगा यह सोचना भी शायद हमारी भूल हो. क्योंकि देश की 122 करोड़ आबादी इन जुलमियों के जुल्म से त्रस्त हो चुकी है कब हवा चले ओर कब आग लग जाय पता नहीं है. जनता भरी बैठी है इन नेताओं की बेशर्मी से. जनता की सह्‌न शक्ति जबाब देने लगी है. दशकों की इस निष्कि्त्रयता और लोगों की उपेक्षा ने वह सिस्टम ही नहीं पनपने दिया जो लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए तत्पर-प्रतिबद्ध होता. क्या वजह है कि देश के अनेक क्षेत्रों में आज भी भोजन, पानी, स्वास्थ्य सुविधाओं की समस्याएं हैं ? सरकार के पास अशांति से घिरे इन इलाकों को लेकर विशेषज्ञों की दर्जनों रपट पड़ी हुई हैं और वे सभी नौकरशाही की शिथिलता की कहानी कहती हैं. यह एक स्थापित तथ्य है कि विद्रोह से निपटने का सबसे प्रभावशाली तरीका असंतोष से ग्रस्त लोगों को अपने पाले में लाना है, लेकिन जो कुछ छत्ताीसगढ़ में हो रहा था उसे सही तरीका नहीं कहा जा सकता. यह महज एक दुष्प्रचार है कि नक्सली आदिवासी हितों के लिए लड़ रहे हैं. सच्चाई यह है कि वे माफिया हैं और उनका एक मात्र उद्देश्य अपने को किसी भी तरह मजबूत करना और भारतीय शासन को निष्क्रिय करना है. उनका दुस्साहस इसलिए बढ़ रहा है, क्योंकि शासन-सत्ता-राज्य उनके समक्ष समर्पण की मुद्रा में है और कुछ पथभ्रष्ट बुद्धिजीवी और मानवाधिकारवादी उनका समर्थन कर रहे हैं. किसी को इस पर हैरत नहीं होनी चाहिए कि अरुंधती राय और उनके जैसे लोग इन दिनों मौन क्यों हैं ? ये इसलिए मौन हैं, क्योंकि भारतीय शासन को निष्क्रिय होते देखने में उन्हें आनंद महसूस होता है. भारत सरकार नक्सलियों से जिस तरह निपट रही है उससे दुनिया भर में उसकी भद पिट रही है. वर्तमान नक्सलवादी कामचोर, कानून से भागे हुए लोगों का संगठित गिरोह है। ये ऐसे क्षेत्रों में सक्रिय होते हैं जहां सरकारी तंत्र एवं सुविधाओं के पहुंच नहीं होती, वे वहां अपना तंत्र चलाते हैं.जहां पर ये सक्रिय हैं, वसूली की रकम या लूट की रकम से क्या गरीबों के जीवन स्तर उठाने के लिए कोई कार्य करते हैं ? नहीं रकम आपस में बांटकर अपने बच्चों को शहर के कानवेंट में पढाते हैं ऊंची शिक्षा दिलाते हैं अपना जीवन स्तर उठाते हैं और उस क्षेत्र के गरीबों को बंदूक की नोक पर अपने दल में शामिल करतें है और हिंसात्मक कार्यों में ढाल एवं लेबर के रूप में स्तेमाल करते हैं. राजनैतिक अवसरवादी भी नxवा. को पैसा देकर इच्छित काम करा सकते हैं, किसी भीतरघाती की उच्चाकांक्षा में कोई रूकावट है तो वह इनका स्तेमाल अपने प्रतिद्वन्दियों को सफाया में भी कर सकता है. गरीबी विश्व में कहां नहीं है. क्या शहर में पालीथीन और टीन के छप्पर में रहने वाले लोग गरीब नहीं है. गरीबी और जातिविशेष को ढाल बनाने वाले नक्सल समर्थक गददार कलमकार भी बहुत हैं. नक्सलवाद आज अपने मार्ग से भटककर नीरीह लोगों का दुश्मन बन चुका जो गलत है ,,, मूव्मेंट जो आदिवासिओं के अधिकार की लड़ाई थी, अब वो कही लगता है की अपने रास्ते से भटक कर किसी और रास्ते पर चलने लगी है…..एह सच है की आज तक आदिवासिओं ने बहुत साहा है, मगर बेकसूर लोगो की हत्या करके ये लोग कभी भी अपनी मंज़िल नही पा सकते है..
यह स्वाभाविक है कि छत्तीसगढ़ की घटना के बाद सभी सुरक्षा में चूक का सवाल उठा रहे हैं. यह एक जायज सवाल है, लेकिन किसी को यह भी पूछना चाहिए कि अगर सुरक्षा में कहीं कोई कमी रह जाएगी तो क्या नक्सली सड़कों से गुजर रहे नेताओं-कार्यकर्ताओं को भूनकर रख देंगे ? छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दो बड़े नेताओं समेत कई अन्य लोगों की हत्या के बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान कर दी गई, लेकिन इस सवाल का जवाब शायद ही सामने आए कि नेताओं की सुरक्षा में लगे पुलिस के जवानों के पास आधुनिक हथियार और पर्याप्त गोलियां क्यों नहीं थीं ? इस सवाल पर छाए मौन के बारे में भी सोचें कि आखिर नक्सलियों को एक से बढ़कर एक आधुनिक और घातक हथियार कहां से मिल रहे हैं. वे कहीं अधिक घातक क्षमता वाले विस्फोटक हासिल करने में भी समर्थ हैं, लेकिन कोई यह बताने वाला नहीं कि नक्सली यह सब इतनी आसानी से कैसे जुटा ले रहे हैं ? कांग्रेसी नेताओं की सुरक्षा में लगे कुछ जवान अंतिम सांस तक लड़े. आज तक के सबसे बड़े नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ ने दिग्गज कॉंग्रेसियों सहित 29 लोगों की मौत ने जहां पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है, वहीं क्या यह हैरत की बात नहीं है कि राज्य के गृह मंत्री ने अभी तक कुछ भी नही कहा है.
और ये बात भी सवालिया निशान लगाती है कि कॉंग्रेस खुद अपने नेताओ के मारे जाने पर इस कदर चुप क्यो बैठी है यह बात पच नही रही है एनआइए की टीम भेज दी गयी और अब सब चुप है. नेता तो 2-5 ही मारे 19-20 परिवारो का सहारा उजड गया जिसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. हर खतरनाक खेल के पीछे एक छुपा दुष्ट दिमाग रहता है जो छिपा ही रहता है कभी जनता के सामने नही आता. सुगबुगाहट ये भी है कि नक्सलियों के उपर हुए ज़ुल्मों का यह जवाब है जो नक्सलियो द्वारा नेताओं को दिया गया है जैसे नेताओं ने नक्सलियों को दिया था… पर दुखद यह है की आर पार की इस लड़ाई मे जिनका कोई दोष नही था वो भी इस की चपेट मे आ गये………

सुनीता दोहरे ……

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