बॉक्स…..अगर नरेंद्र मोदी उग्र हिन्दूवादी विचारधारा के लोगों की प्रथम पसंद हैं तो राहुल गांधी भी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा में विश्वास रखने वालों की एकमात्र पसंद हैं……..
जितना बड़ा सच ये है कि 2014 के आम लोकसभा-चुनाव में नरेंद्र मोदी को कोई अगर टक्कर दे सकता है तो वो है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी. तो उतना ही बड़ा सच ये भी है कि युवराज राहुल गांधी को अगर कोई टक्कर दे सकता है तो वो हैं नरेंद्र मोदी. नरेंद्र मोदी फगुवा विचारधारा के लोगों व उग्र हिन्दू विचारवान युवाओं की पहली और एक मात्र पसंद बन गये हैं. भले ही देश गुजरात के जातीय दंगों पर शर्मिन्दा हो लेकिन एक अलग तरह की सोच रखने वाला मतदाता इस शर्मनाक घटना के बाद से मोदी को नायक की भूमिका में देखने लगा है. अगर भाजपा ने विवादित ढाँचे के विध्वंस पर देश से मांफी नही मांगी है तो मोदी ने भी गुजरात दंगों के लिए कभी अफ़सोस नहीं जाहिर किया है. मोदी जानते हैं कि वे राज्य से केन्द्रीय राजनीति में उभर कर आये हैं तो इसमें गुजरात दंगों की बहुत बड़ी भूमिका है. जिसने रातों रात मोदी को खलनायक कम नायक अधिक बना दिया है. जहाँ तक बात गुजरात राज्य के विकास की है तो भाजपा के ही एक साथी नितीश कुमार के नेत्रत्व में बिहार ने भी विकास के अनेक नए आयाम स्थापित किये हैं और भाजपा शासित राज्य मध्य-प्रदेश भी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व मे विकास के मार्ग पर निरंतर अग्रसर है. लेकिन विकास के नाम पर केवल मोदी का ही गुणगान करना भाजपा का कोरा ढकोसला है. भाजपा ने हमेशा नफरत की फसल उगाई है, अधर्म की राजनीति की है और साम्प्रदायिकता फैलाकर वोट हासिल किये हैं. ऐसे आरोपों से भाजपा को समय दर समय दो चार होना पड़ा है. भाजपा जितना भी अल्पसंख्यक हितैषी होने का स्वांग रच ले लेकिन वो हमेशा ही उग्रवादी हिन्दू विचारधारा को जीवित रखना चाहती है. भाजपा के पास न तो कोई नेता रहा है और न ही कोई नीति, भाजपा ने सदैव ही देश को धर्म के नाम पर गुमराह करके सत्ता को हासिल करने का प्रयास किया है और नरेंद्र मोदी भाजपा की नीति के माहिर खिलाड़ी हैं लेकिन ऐसा भी नही है भाजपा ने सत्ता में रहकर कोई भी जनकल्याणकारी काम नही किया परन्तु भाजपाइयों पर हमेशा ही समाज में नफ़रत फैलाने के आरोपों के चलते देश को धर्मनिरपेक्ष की द्रष्टि से देखने वाले जागरूक मतदाताओं का रुख मतदान के समय भाजपा के प्रति तल्ख़ रहता है. आज भाजपा की सूरते हाल पर नजर डाली जाए तो वही प्रधानमंत्री पद को लेकर खींचतान, आपसी कलह, साथी दलों के साथ ताल;मेल का अभाव तथा धर्म के नाम पर देश को गुमराह कर वोट बटोरने की राजनीति. भाजपा में मोदी प्रधानमंत्री पद के एकमात्र ऐसे उम्मीदवार हैं जो उग्र हिन्दू विचारधारा के लोगों के सामने गुजरात दंगों की सफलता का परचम लहराकर अपनी सफलता का उदाहरण पेश कर चुके हैं. मोदी भली-भाँति जानते हैं कि भाजपा की मज़बूरी है कि वो सत्ता प्राप्ति के लिए मोदी को ही प्रत्यासी बनाएगी क्योंकि मतदाताओं का एकला वर्ग विकास की अपेक्षा हिन्दुत्व को ज्यादा महत्व देता है. यही कारण है कि केवल नरेंद्र मोदी ही कांग्रस के युवराज को टक्कर देने की स्थिती में नजर आ रहे हैं. यदि बात कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी की की जाए तो राहुल के नाम के पीछे लगा गाँधी शब्द आज भी इमानदारी, देश भक्ति और स्थाई सरकार की गारंटी के रूप में देखा जाता है. जहाँ ऐसे बुजुर्गों की भी भारी संख्या है जो केवल हाँथ के पंजे को ही पहचानते हैं और स्वर्गीय इंदिरा गांधी के चमत्कारिक व्यक्तित्व के प्रभाव में जीते हैं, वहीँ दूसरी तरफ देश को विकास के मार्ग पर ले जाने की जद्दोंजहद में अपने प्राणों की कुर्बानी देने वाले देश के प्रथम युवा प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की शहादत को आज भी देश सलाम करता है. गांधी परिवार का कुर्बानी भरा इतिहास आम मतदाता के दिलोदिमाग में पूरी तरह से कायम है. राहुल गाँधी के शरीर में बहने वाला गाँधी परिवार का लहू युवराज को हमेशा ही भीड़ में अलग दिखाने का काम करता है. देश का युवा राहुल गाँधी को हीरो के रूप में देखता है और युवा शक्ति का मत है कि यकीनन राहुल गांधी देश को एक नई दिशा देने की कुब्बत और सोच के साथ-साथ इच्छा शक्ती भी रखते हैं. भले ही विरोधी सोनिया गाँधी को विदेशी होने का आरोप लगायें लेकिन वह भी सोनिया गांधी के फैसले लेने की क़ाबलियत के कायल हैं. कांग्रेस पार्टी का एक मत से राहुल गाँधी का समर्थन विरोधियों में दहशत फैलाने का काम करता है. कांग्रेस की एकता देश के मतदाताओं में एक स्थाई सरकार देने का विश्वास पैदा कराती है. भले ही मोदी उम्र और राजनैतिक अनुभव में युवराज से आगे हों लेकिन एक बात मोदी को साफ़ तौर से समझ लेनी चाहिए कि उनकी टक्कर युवराज से है. मोदी को अपनी उम्मीदवारी के लिए जहां एक तरफ अपनी पार्टी में आग का दरिया पार करना है वही दूसरी तरफ नितीश कुमार जैसे साथियों की भी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है लेकिन युवराज का अपनी पार्टी में न तो कोई विरोधी है और न ही कोई प्रतिद्द्वन्द्दी. युवराज को अपनी उम्मेदवारी के लिए न तो किसी की परिक्रमा करनी है और न ही आवेदन. सच कहा जाए तो युवराज आज भी उस स्थिती में हैं कि अगर चाहें तो अभी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएँ. लेकिन मोदी के लिए ये सपने में भी संभव नहीं है. मोदी को स्वयं की उम्मीदवारी की चुनौती से निपटने के साथ-साथ अपने विश्वसनीय साथियों को लोकसभा टिकट दिलाने के लिए हर कदम पर संघर्ष और अपमान से दो चार होना पड़ेगा, तो युवराज का मोदी से यहाँ कोई मुकाबला नहीं है. युवराज की पसंद, युवराज के उम्मीदवार और युवराज का ही फैसला न किसी से कोई फ़रियाद न किसी से कोई मिन्नत. अगर मान लिया जाये कि मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी केबिनेट में अपने बफदारों को समायोजित करना और पूर्णकाल तक प्रधानमंत्री जैसे जोखिम भरे पद पर कार्यकाल पूरा करना. यहाँ भी स्थिती युवराज के पक्ष में नजर आती है. युवराज केबिनेट निर्माण में राय तो लेंगे मगर अंतिम फैसला युवराज का ही होगा ये सारा देश जानता है और विरोधी भी जानते हैं कि अगर राहुल गाँधी प्रधानमन्त्री बनते हैं तो कांग्रेस संगठन किसी भी परिस्थिती में अपने युवराज के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलेगा. तब फिर प्रधानमंत्री बदलने की बात तो बेमानी होगी. २०१४ के आम लोकसभा चुनाव में, चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा ये समय के गर्भ में छुपा है लेकिन एक बात तय है कि मुख्य मुकाबला मोदी और युवराज के बीच ही होता नजर आ रहा है……. सुनीता दोहरे ……
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