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उत्तर-प्रदेश “पांचाली” आज भी जीवित है…..

sach ka aaina
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उत्तर-प्रदेश “पांचाली” आज भी जीवित है…..

बॉक्स …. देखा जाए तो सपा सरकार पांच मुख्यमंत्रियों ( मुलायम सिंह, राम गोपाल यादव, शिवपाल सिंह, आजम खान, अखिलेश सिंह ) के नेत्र्तव में काम कर रही है. और यही कारण है कि सत्ता की लगाम पांच जगह बंटने के कारण प्रशासन लापरवाह और अपराधी निर्भीक हो चुके हैं…………

एक साल के सपा के शासन काल में अपराध की जो बरसात हुई उसकी मिसाल कहीं और ढूंढे ही न मिलेगी. इसके साथ सबसे बड़ी चाटुकारिता ये कि अपराधियों को मलाईदार कुर्सियों पर बिरादरीवाद और परिवारवाद की प्रथा से नवाजा जाने से भी सपा की उत्तर-प्रदेश में पकड़ दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है. इस बिरादरीवाद और परिवारवाद के नतीजे पुलिसिया बलात्कार, अवैध रूप से जिसको चाहे हिरासत में लिये जाने, हिरासत में ही कत्ल कर दिये जाने, भुक्तभोगियों को ही पीटे जाने व हवालातों में डाले जाने, पुलिस अफसरों से सिपाही तक सभी स्तरों पर उत्तर-प्रदेश की आवाम को ये आभास हो चुका है कि सपा के रहते आम जनता कभी भी बिना अपराध सहे अमन चैन से नही रह सकती. उत्तर-प्रदेश का बाजार गर्म होने के रूप में देखा जा सकता है कि सपा का जोड़-तोड़ अबकी फिट नही बैठने वाला. कुल मिलाकर आज यह दावा शायद गलत नहीं होगा कि आगामी चुनावों में सपा का हाल उत्तर-प्रदेश में कांग्रेस से कहीं ज्यादा बदतर होना लगभग तय ही है. अखिलेस सरकार ने विधानसभा चुनावों में जहां अप्रत्याशित सीटें हासिल करके सबको चौका दिया था तो २०१४ के चुनावों में समाजवादी पार्टी का सफाया भी एक नया इतिहास रचने वाला ही होगा इसमें कोई दोराय नहीं.
देखा जाये तो उत्तर-प्रदेश के युवराज हर कानून-व्यवस्था की कसौटी पर पूरी तरह फेल हो चुके है. पिछली सरकार के दौर में आम-जनता की शिकायतों को अनसुनी करने का चलन था, लेकिन अखिलेश यादव की सरकार में शिकायतों को फाड़कर फेंक देने की व्यवस्था ने एकाएक नया जन्म ले लिया. सर्वे करने पर आपको कई मिसालें मिल जाएँगी. पुलिस विवेचना के नाम पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाती. ऐसा नहीं है कि ये अपराध अखिलेश की जानकारी में नहीं हैं. जो भी अपराध होते है उनकी सूचना कई बार अखिलेश यादव तक जाती है लेकिन नतीजा शून्य होता ही.  बीते एक वर्ष के कार्यकाल के बाद यह तस्वीर सामने आई है कि प्रदेश में जनता की बजाय सपा के गुंडे और माफिया ज्यादा सुरक्षित हैं. सपा सरकार बीते 15 मार्च को अपने एक वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुकी है. फिर भी सूबे में चारों तरफ माफिया और गुंडों का राज है, आम जनता भयभीत है. कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार पूरी तरह से विफल साबित हुई है. मेरा कहना है कि अखिलेश यादव जी सिर्फ लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ता बांटने भर से सरकार नहीं चलती है. आपकी अपनी सरकार ने अपने कार्यकर्ताओं को ही खोज-खोज कर इन योजनाओं का लाभ दिलवाया है. सपा सरकार ने चुनाव के दौरान जनता से जो वादे किए थे, वे हवा-हवाई ही साबित हुए हैं.  सूबे की स्थिति यह है कि चारों तरफ अराजकता का माहौल है. जिस सरकार का मंत्री ही अधिकारियों से यह कहता हो कि थोड़ा तुम भी खाओ लेकिन थोड़ा हमारे लिए भी बचाकर रखो, उस सरकार से किस तरह की अपेक्षा की जा सकती है.
कहने की बात नही है, एक तरफ उत्तर-प्रदेश की सपा सरकार कभी घोषणा कर देती है कि उसने आतंकवाद के नाम पर कैद 400 बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को रिहा कर दिया है तो मुलायम सिंह यादव घोषणा कर देते हैं कि आडवाणी जी झूठ नहीं बोलते लेकिन कोसी कलां के साम्प्रदायिक दंगे में हिंसा के शिकार मुस्लिम चीख -चीखकर इंसाफ माँग रहे हैं और अनेक राजनीतिक दल आरोप लगा रहे हैं कि सपा सरकार जानबूझकर साम्प्रदायिक दंगे करा रही है. सच तो ये है कि कोसी कलां, मथुरा के लगभग पचास पीड़ित परिवारों के लोग राजधानी में अपना दर्द बयाँ करने के लिये आते हैं और अपने उत्पीड़न की दास्तां सुनाते हुए कहते हैं कि नौ महीने बीत जाने के बाद भी हमें न्याय नहीं मिला है. तो इन हालातों में आम आदमी कैसे बेख़ौफ़ रह सकता है. राज्य में अपराधी बेखौफ घूम रहे है. दिन प्रतिदिन बढ़ते अपराध के ग्राफ से मासूम जनता खौफ में जी रही है.  प्रदेश में रोजगार, बिजली , स्वास्थ्य सुविधाएं और कानून व्यवस्था सहित सभी विकास कार्य शून्य है. प्रदेश में जब पुलिस ही सुरक्षित नहीं है तो आम जनता का हाल क्या होगा , अंदाजा लगाया जा सकता है. एक बात और सर उठा रही है कि ‘यदि आप राज्य के किसी भी जिले में जाएं और आम लोगों से पूछें, तो वे कहेंगे कि हमने बड़ी गलती की है. हम गलत पार्टी को सत्ता में ले आए. बसपा सरकार कहीं अच्छी थी. अखिलेश शासन में उम्मीद से अधिक साम्प्रदायिक दंगे हो चुके हैं और राज्य तथा देश में अन्य जगह ‘नया अल्पसंख्यक उग्रवाद’ सिर उठा रहा है. बेगुनाह केन्द्र और उत्तर-प्रदेश सरकार ऐसा जानबूझकर होने दे रही है. राज्य और देश में इस तरह की घटनाओं के लिए उत्तर-प्रदेश की सपा सरकार के साथ केंद्र की संप्रग सरकार बराबर की जिम्मेदार है. क्योंकि केन्द्र अभी तक यह पता नहीं लगा पाया है कि इस तरह के अपराधों के लिए कौन जिम्मेदार है. पिछली बार विधान सभा चुनावों में उत्‍तर प्रदेश के मुस्लिम वोट के साथ ही दूसरे अमन पसन्द, सेक्‍युलर वोट भी समाजवादी पार्टी को मिले थे  समाजवादी पार्टी को उम्मीद से कहीं ज्यादा सीटें मिलने की एक खास वजह थी अखिलेश यादव का चेहरा और उनका पढ़ा-लिखा होना. मतदाताओं में अखिलेश यादव से कुछ उम्मीदें जागीं थी, लोगों का मानना था कि जब पढ़ा लिखा मुख्यमंत्री होगा तो कुछ न कुछ तो सूबे का पहिया रफ्तार पकड़ेगा ही, लेकिन दिल के अरमां भत्तों में दबकर कुचल गये. अखिलेश यादव की सरकार भी सपा के पुराने ढर्रे पर ही चल रही है सूबे की भलाई के लिए तो कुछ हुआ नहीं उल्टे एक साल में 27 साम्प्रदायिक दंगों को नया रिकार्ड जरूर बन गया. अखिलेश सरकार के आने के चंद महीनों बाद ही लोगों को लगने लगा था कि अखिलेश की सरकार प्रदेश को नहीं चला पा रही है.
देखा जाये तो सपा सरकार मुसलमानों को दंगे की आग में झोंककर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराना चाहती है. जबकि सपा मुसलमानों के समर्थन से ही सत्ता तक पहुँची है. जिस तरह से कोसी कलां के दंगा पीड़ितों ने अपनी आप बीती सुनायी और बताया कि जाँच कर रही पुलिस किस तरह साम्प्रदायिक राजनेताओं को संरक्षण दे रही है उससे लगता है कि कोसी कलां उत्तर-प्रदेश में नहीं बल्कि मोदी के गुजरात में है.
देखने से तो ऐसा लगता है कि
सपा सरकार को राजनीतिक बदले की भावना से काम करने की आदत ही राजनीति के खेल में अब्बल दर्जे की जीत दिलाती है. अगर राजनीति में ऐसी गलत परम्परा की शरुआत हो गयी तो उसके परिणाम जनतंत्र के लिए ‘भयंकर’ और ‘खतरनाक’ हो सकते है. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह को मुसलमानों का मसीहा कहा जाता है. और देखा जाए तो मुसलमान भी समाजवादी पार्टी को अपना बड़ा ही खैरख्वाह समझते हैं, लेकिन अगर सही मायने में देखा जाए तो ऐसी एक भी वजह नजर नही आती जिससे बलबूते यह माना जाये कि समाजवादी पार्टी पूरी तरह से सेक्‍युलर है या मुसलमानों की सच्ची हम दर्द है. सपा सुप्रीमों के रहते हुए और अखिलेश यादव की सरकार के एक साल में 27 दंगे, गुजरे साल सावन माह में बरेली जिले में कांवरियों द्वारा शुरू किये गये उन्माद के बाद महीना भर तक कर्फ्यू रहा. सपा को मुस्लिम हिमायती के नाम से मशहूर करके ज्यादा तर मुस्लिम वोट पर पकड़ बनाने वाले सपा मुखिया ने पहले कल्याण से याराना किया आम मुसलमान तो बेशक मुलायम सिंह की चाल को नहीं समझ पा रहा और जो थोड़ा बहुत समझने की कोशिश करता है तो उन्हें बिकाऊ और चालाक  मुस्लिम नेता  समझने नहीं देते. लेकिन काफी हद तक बुद्धिजीवी मुस्लिम समाज मुलायम सिंह और सपा के खेल को समझ चुका है.
सपा सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है. सत्ता के लोग खुलेआम धन वसूली में लगे हैं. चारों ओर अराजकता का माहौल है. किसानों को बिजली नहीं मिल रही है.  उद्योगपतियों के हाथों की कठपुतली बनी सपा सरकार गरीबों के हकों पर डाका डाल रही है. उत्तर-प्रदेश में कानून नाम की कोई चीज नहीं है. थानों में अपराध पंजीकृत नहीं किये जा रहे हैं. महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं. त्रस्त हो चुकी प्रदेश की जनता आशा भरी निगाह से राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की ओर निहार रही है. कोई कहता है कि सपा शासन में सबसे ज्यादा अत्याचार मछुआ समुदाय पर हो रहे हैं. मत्स्य पालन के इनके मालिकाना हक पर कुठाराघात किया जा रहा है. मछली पालन का पट्टा मछुआ समाज के लोगों को देने के बजाय सपा नेताओं के चहेतों को दिया जा रहा है. सपा सरकार दोनों हांथों से जनता को भ्रमित कर रही है. अगर जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई की बर्बादी की बात की जाये तो सपा सरकार मायावती सरकार से चार कदम आगे दिखाई पड़ रही है. अब देखिये मायावती ने जनता के सपनों को और मेहनत की कमाई को मूर्तियों पर लुटाया तो अखिलेश यादव लैपटाप और बेरोजगारी भत्ते, कन्या विद्याधन की आड़ में नेताओ और अधिकारियों की जेबें गरम करने में मस्त हैं. यही नहीं माया के राज में तो सिर्फ मायावती के दौरे के दौरान ही अघोषित कर्फ्यू लगवा कर माया मेमसाहिब आती थीं, और ठीक इसी तरह उसी परिपाटी का अनुसरण करते हुए अखिलेश सरकार के छुटभैये मंत्री और परिषदों के अध्यक्षों के दौरों के लिए भी क्षे़त्र में कर्फ्यू लगवाया जा रहा है. इनके बारे में जितना भी लिखा जाये कम है क्योंकि सपा, बसपा और अन्य विपक्षी पार्टियाँ सभी कि सरकार होने पर अपराधों का ग्राफ कम न होकर बढ़ा ही जा रहा है. आम जनता का मत है
अगर मैं उत्तर-प्रदेश के इन हालातों को देखते हुए दो शब्दों में बयाँ करना चाहूँ तो मेरा सपष्ट कहना है कि सिर्फ झंडा बदला है बाकी हालात जस के तस हैं. सपा सरकार पांच मुख्यमंत्रियों (मुलायम सिंह, राम गोपाल यादव, शिवपाल सिंह, आजम खान, अखिलेश सिंह) के नेत्र्तव में काम कर रही है और यही कारण है कि सत्ता की लगाम पांच जगह बंटने के कारण प्रशासन लापरवाह और अपराधी निर्भीक हो चुके हैं. अगर समय रहते राजनीति अखाड़े के पहलवान सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अपने युवराज के मंत्रियों की खिंचाई करनी की अपेक्षा इन चारो मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ स्वयं अपनी भी लगाम नहीं कसें. तो २०१४ के होने वाले आम लोकसभा चुनाव में अपने ही अखाड़े में पटखनी खा जायेंगे……………

सुनीता दोहरे ……

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