Menu
blogid : 12009 postid : 178

नारी हो तो तुम जैसी हो, एक बोल्ड हस्ती……

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

481191_214268908716265_637074322_n

हैडिंग…..नारी हो तो तुम जैसी हो, एक बोल्ड हस्ती…...

बॉक्स ….. उनकी आंखों में एक अनोखी चमक के साथ-साथ उनकी बातों में एक दहक है.सत्यता से पूर्ण, अदम्य साहस और विशाल सादगी की सशक्त प्रतिमूर्ति है. जब वे जनता से मुखातिब होती है तो उनकी समझाने की अदा और बेबाक तरीके से ही जनता के दिलों में गहराई तक उतरती चली जाती हैं………
.

पहली महिला आईपीएस (१९७२)  आत्मविश्वास से भरपूर और अदम्य साहसी के रूप मे जानी जाने वाली किरण बेदी ने विभिन पदों पर रहते हुये समाज को नई दिशायें दी और समाज सुधार के सकारात्मक  कदम उठने मे सहयोग दिया. गलैत्री अवार्ड से लेकर मैगसे अवार्ड तक किरण की झोली में साम्मानित हुए हैं, किरण को पढ़ने और लिखने के शौक के अलावा अद्यात्मिक किताबो या फिर दर्शन लुभाता है.
किरण का जन्म अमृतसर, पंजाब में प्रकाश तथा प्रेम पेशावरिया के घर हुआ था, ये तीन बहनों में दूसरे स्थान पर हैं. बड़ी होने पर किरण नैशनल कैडेट कॉप्स का हिस्सा बनीं, उस वक्त वे सैक्रेड हार्ट कॉन्वेंट  में पढ़ाई कर  रही थीं. अंग्रेजी में स्नातक होने के बाद उन्होंने मास्टर डिग्री के लिए राजनैतिक विज्ञान का चयन किया और भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं में सफलता हासिल की. इसके बाद वे अंततः पुलिस विभाग में शामिल हो गईं.।
किरण बेदी जब छोटी थी तभी पिता प्रकाश लाल ने मन मे यह  बात अच्छे से बिठाई थी की खुद को कभी किसी से कम मत समझना. एक ही मंत्र था किरण ने सीखा था, पड़ो लिखो  और आगे बड़ो . यही कारण था की परिवार मे चाहे वह रही हो या उनकी बहने ,सबने आम लडकियों के मुकाबले अपने लिये अलग राह चुनी.  किरण के घर मे तीन-चार चीजो पर खास  ध्यान दिया जाता  था. पढाई, खेल अनुशासन और बेहतर खान-पान.  अनुशासन इस कदर हावी था की दोपहर मे किरण घर पर  नही टेनिस कोर्ट मे होती थीं. किरण के पिता जी कहते थे चुनोती से घबरओ नही मुकाबला करो. देखा जाये तो किरण की परवरिश ही किरण के पिता ने ऐसी की कि चाहे टेनिस हो या फिर चाहे पुलिस की नोकरी या पढाई की दुनिया, वह हर जगह टॉप रही. किरण ने बचपन से ही सोचा था की सिस्टम मे जाना है. इसलिये आईएएस की तैयारी मे लग गई और जब आईपीएस के लिये चुनी गई. क्या सच्चाई पुलिस व्यवस्था की, क्या जनता की परेशानियाँ, क्या देश की राजनीतिक व्यवस्था और क्या देश के घूसखोर नौकर शाह सारी कमियों और व्यवस्थाओं को वो इतनी खूबी से क्लैप बाय क्लैप आपके सामने पेश करतीं हैं कि परत-दर-परत ‘सच’ आंखों के सामने निर्वस्त्र हो जाता है. देश के क्या मौजूदा हालात हैं उनकी पैनी निगाहें सबका आंकलन करने में माहिर हैं. लोग जब उनको सुनते है तो हतप्रभ रह जाते हैं कि इतनी बिंदास और बेबाकी से देश का कड़वा यथार्थ समाज तक पहुंचाने का साहस अब तक किसी ने क्यों नहीं दिखाया ? और जवाब भी हमें खुद मिल जाता है कि इस सच को आत्मविश्वास से लबरेज किरण बेदी के माध्यम से ही हम तक आना था. नारी की अदम्य शक्ति की प्रतीक किरण बेदी ही यह काम कर सकती थीं. उनका समूचा व्यक्तित्व बोलता है कि वे सिर्फ और सिर्फ इसी सेवा के लिए जन्मीं हैं. वे बड़ी ही सहजता से किसी भी बात का हल निकाल लेतीं हैं. ‘क्योंकि यही वह सेवा है जो तुरंत न्याय देती है। यहां प्यार और पितृवत धमकी के साथ सुधार और सेवा की जाती है.  इसीलिए उन्होंने अपने इसी नजरिए से पुलिस सेवा को अपनाया था. किरण के विचार सबको एक आदर्श देते है. आप जैसा सोचेगे , वैसा ही करेगी नकरात्मक सोच का असर सीधे आपके काम पर पड़ता है इसलिये क्यों न हमेशा सकरात्मक और बेहतर सोचा जाये ” किरण अपना सारा समय  सुन्योजित तरीके से इस्तेमाल करती हैं. अधिकतर अपना समय पढने मै बिताती हैं. किरण का मानना है कि खूब पढो ताकि सोच की खिडकिया बंद न रहे यह सोच भी किरण के अभिभावकों की हे देन थी की वह हमेशा कहते थे बड़ा सोचो, बेहतर सोचो. किरण बेदी के पति ब्रज बेदी अमृतसर मै समाजसेवा के काम मै सक्रीय है और बेटी किरण के नवज्योति और कई प्रोग्रामो से जुडी हुई है लेकिन इस परिवार मै किसी को किसी से कोई शिकायत नही कोई अपेक्षा भी नही.  किरण बेदी आकर्षक व्यक्तित्व की मलिका है. उनकी आंखों में एक अनोखी चमक के साथ-साथ उनकी बातों में एक दहक है.सत्यता से पूर्ण, अदम्य साहस और विशाल सादगी की सशक्त प्रतिमूर्ति है किरण बेदी‍. वे जब पुलिस प्रशासन को आड़े हाथों लेती थीं तब उनकी गर्जना देखने योग्य होती थी और जब वे जनता से मुखातिब होती है तो उनकी समझाने की अदा और बेबाक तरीके ही जनता के दिलों में गहराई तक उतरती चली जाती हैं. उनके द्वारा बोला हुआ एक–एक शब्द मोती सा लगता है क्योंकि उन शब्दों में सच्चाई की आभा विराजमान होती है. वे जब बोलती है तो उनकी धाराप्रवाह शैली मंत्रमुग्ध सबको कर देती हैं. वे जवाब देने में कहीं अटकती नहीं हैं. किरण का मानना है कि पुलिस की छवि इसलिये ख़राब हो चली है क्योकि पुलिस वही पुराने तरीके से काम कर रही है. काम पर धयान  नही इसलिये पुलिस सिस्टम को दुरुस्त करने की जरूरत है. किरण कहती है की सबसे पहले हमे यह समझना होगा की पुलिस का मतलब क्या है यहाँ डंडे से नही गाँधी वादी तरीके से बेहतर काम हो सकता है आर्थिक तबके के कमजोर लोगो को मुख्यधारा मै जोडने जैसे एक नही कई अभियान है किरण के.
देखा जाए तो ये सोलह आने सत्य है कि अपने अन्दर की योगता को विकसितकर ले व्यक्ति तो आसमान खुद ब खुद नज़र आ जायेगा. देश में सिस्टम ऐसा होना चाहिए जिससे लडकियों को आगे बढ़ने के लिये बैसाखी नही बल चाहेये.  शारीरिक और मानसिक बल जिस दिन यह बल उनमे आ जायेगा वह  खुद को कमजोर महसूस नही करेगी. हर स्त्री के अन्दर एक चिंगारी होती है एक प्रतिभा होती  है पर उसे समझने वाला और उसे बहार लाने वाला और कोई नही बल्कि यही आत्मिक बल है. हम सब महिलायें आपसे एक ही गुजारिश करतीं है कि  किरण बेदी जी आप उन असहाय महिलाओं का सहारा बनिए जिनके पास सच्चे न्याय की आशा नही बची उनेह न्याय दिलवाइये. अभी इस समाज को आपकी बेहद जरूरत है.  क्योंकि  नारी युगों से छली जा रही है और यही हाल रहा तो हर युग में स्थिति और भी खराब होती जायेगी. जब भरी सभा में रजस्वला द्रौपदी को आंचल खींचकर द्रोपदी को निर्वस्त्र करने की चेष्टा की जा रही थी, तब सभा में बैठे सभी लोगों को दिखाई देना, सुनाई देना और न्याय के लिए अपनी आवाज उठाना, सब एकाएक बंद क्यों हो गया था. मगर फिर भी द्रौपदी को पूरा भरोसा था कि उसके कृष्णा उसकी लाज बचाने जरूर आएंगे. और आये भी पर आज के आधुनिक युग में आज की नारी की दयनीय स्थिति को देखने और सुधारने के लिए न तो कोई कृष्ण है और न ही कोई राम. इसलिए आप राम और कृष्ण दोनों का किरदार निभा सकतीं है हम नारियों को ऐसा विश्वास है. आज भी यदि भरी सड़क पर किसी नारी के साथ कुछ गलत हो रहा होता है तो लोग कुछ ऐसे ही मूक-बधिर हो जाते हैं. एक रोज नई महिला युगों-युगों से बेबस, असहाय पांचाली की तरह मजबूर कर दी जाती है और द्रोपदी जैसी अनेकों नारियां अपने दुखों को सहते हुए इस समाज से प्रश्न पूछती आईं हैं. क्या पांचाली के इन सवालों का कभी किसी को जवाब मिलेगा ? आज भी आप महाभारत के चरित्रों को यदि ढूंढ़ना चाहें, तो आपके आसपास ही मिल जाएंगे. कहीं ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. ये सच है कि महाभारत आज की सोसाइटी का आईना है.  कितना गिर गया है ये समाज और अब अभी कितना गिरेगा रसातल में भी जगह बचेगी या नहीं. जब एक महिला का वजूद आहात हो रहा होता है तब पुरुष के अपने आदर्श, संस्कार, मूल्य, नैतिकता, गरिमा और दृढ़ता किस जेब में रखे सड़ रहे होते हैं ? सारी की सारी मर्यादाएँ देश की ‘सीताओं’ के जिम्मे क्यों आती हैं जबकि ‘राम’ के नाम पर लड़ने वाले पुरुषों में मर्यादा पुरुषोत्तम की छबि क्यों नहीं दिखाई देती जाने कहाँ चले जाते हैं वे मंचासीन सफेदपोश जो ‘भूमि’ के फोटो को माला पहनाकर खुद माला पहन कार का शीशा चढ़ाकर धुआँ छोड़ते दिखाई देते थे. इन पापियों को अपनी जगह पहुचाने के लिए इस देश को और इस देश की स्त्रियों को आपकी जरूरत है………..

सुनीता दोहरे……

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply