आप-आप बस आप ही “आप” (ख़ास-आदमी) Jagran Junction Forum…
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आप-आप बस आप ही “आप” (ख़ास-आदमी) Jagran Junction Forum…
बॉक्स……वैसे एक बात तो माननी पड़ेगी कि अरविन्द केजरीवाल जैसा आम अदमी “आप -आप” करके सरेआम शीला और सोनिया के क्षेत्र में कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए बिजली के खंभे पर चढ़ जाता है और जबरन बिजली विभाग द्वारा किसी की काटी गई बिजली जोड़ने के बाद वहाँ खड़े होकर मुस्कुराते हुए फ़ोटो खिंचवाना फिर पत्रकारों को इंटरव्यू देकर बड़े ही इत्मीनान से निकल जाए…क्या किसी ने ऐसा कारनामा देखा है ? और तो और इतना सब होने पर भी उस व्यक्ति के खिलाफ़ एक भी ऍफ़आईआर तक दर्ज ना हुई क्यों ? क्योंकि आम परिस्थितियों में कोई भी आम आदमी ऐसा नहीं नही सकता, लेकिन यदि उस आम आदमी को ख़ास आदमी बनाकर परदे के पीछे से कांग्रेस का पूरा समर्थन हासिल हो तब तो अवश्य हो सकता है………
विगत दिनों गाँधीजी और शास्त्रीजी के चित्रों से सजी पृष्ठभूमि वाले हैरतंअगेज मंच से इस ख़ास आदमी ने अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत की थी. केजरीवाल ने बाकायदा गाँधी टोपी, जो अब ‘अण्णा टोपी’ भी कहलाने लगी है, पहनी थी. वो शायद वही नारा लिखना पसंद करते जो पूरे ‘अन्ना आंदोलन’ के दौरान टोपियों पर दिखाई देता रहा , मैं अन्ना हजारे हूँ… लेकिन अब उन्हें अन्ना के नाम और तस्वीर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं है, इसलिए उन्होंने लिखवाया , मैं आम आदमी हूँ…….देखा जाये तो इसमें कोई शक भी नहीं कि अरविन्द केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए ‘अन्ना आंदोलन’ में बहुत अहम भूमिका निभाई थी. जहाँ अन्ना हजारे इस पूरे आंदोलन का चेहरा थे, वहीं उसकी आवाज और उसकी ऊर्जा के रूप में अरविन्द की पहचान हुई थी वो इस आंदोलन के ऐसे प्रवक्ता बने थे जो पढ़े-लिखे होने के साथ-साथ एक आईआरएस अधिकारी रहे हैं और उनके पास अपनी बात रखने के लिए मजबूत तर्क और बुनियादी समझ भी मौजूद थी. लेकिन अब इसके ठीक उलट हो गया. आइये अब अरविन्द केजरीवाल के सफ़र की कुछ झलकियाँ दिखाती हूँ आपको. अन्ना हजारे से अलग होने के बाद अब इन दिनों आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सुंदरनगरी इलाके में शहीदे आजम भगत सिंह के शहादत दिवस यानी 23 मार्च से बिजली और पानी के बढ़े बिलों को लेकर अनिश्चितकालीन अनशन पर डटे हुए हैं. उन्होंने बिजली और पानी के बढ़े बिल का भुगतान न करने की अपील की है और लोगों का आह्वान किया है कि वे बढ़े हुए बिलों की खिलाफत करें. अनशन के पहले दिन लोगों ने दिलचस्पी दिखाई. लेकिन अनशन के आगे बढ़ते हुए भी लोगों की अपेक्षित भीड़ नहीं जुट पाई. इन हालातों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अब केजरीवाल से भी लोगों की उम्मीदें खत्म हो रही हैं. अब सवाल यह उठता है कि दो साल पहले जिस केजरीवाल ने जनलोकपाल के मुद्दे पर केंद्र सरकार को हिला दिया था. उनके एक आह्वान पर जंतर-मंतर हो या रामलीला मैदान लाखों की संख्या में छात्र नौजवान, बच्चे, बूढ़े सभी जुट जाते थे. वही केजरीवाल जनता की मूलभूत मांग को लेकर सप्ताह भर से अनशन पर बैठे हैं तो जनता इतना निष्ठुर कैसे हो गई ? बिजली-पानी के बढ़ती दरों का असर तो सभी लोगों पर पड़ रहा है, तो इस भ्रष्टाचार पर जनता आंखें मूंद कर क्यों बैठी है ? क्या अपने उस प्रिय नेता पर से विश्वास उठ गया है ? या लोगों ने यह समझ लिया कि ये भी पार्टी बनाकर उन्हीं की बिरादरी में शामिल हो गए हैं जो दूसरे पार्टी वाले नेता सत्ता पाने के लिए करते हैं. इन सबको देखते हुए अरविन्द केजरीवाल की लोकप्रियता पर एक प्रश्न चिन्ह लग गया है. अरविन्द केजरीवाल और अन्ना हजारे के विलगाव के चलते जनता का आंदोलन पर से मोहभंग होता दिख रहा है. इसका मिसाल सुंदर नगरी में केजरीवाल के अनशन में लोगों की उपस्थिती से पता चलता है. वैसे एक ठोस उदाहरण देती हूँ आपको ……जब किसी नामीगिरामी कम्पनी के सारे उत्पाद एक-एक करके मार्केट में अपनी शाख खोने लगते हैं तब उस नामीगिरामी कम्पनी का मार्केट शेयर भी नीचे गिरने लगता है, जिसके तहत कम्पनी की शाख खराब होने लगती है, और अगर ऐसे में उसकी प्रतिद्वंद्वी कम्पनी के मार्केट में छा जाने की संभावनाएं मजबूत होने लगें तब ऐसी स्थिति में नामीगिरामी कम्पनी दो-तरफ़ा “मार्केटिंग और मैनेजमेण्ट की रणनीति” के तहत –पहला कि किसी तीसरी कम्पनी को अधिग्रहीत कर लिया जाता है, और नए नामों से प्रोडक्ट बाज़ार में उतार दिए जाते हैं और दुसरे इस नई कम्पनी के ज़रिए, यह बताने की कोशिश की जाती है कि, प्रतिद्वंद्वी कम्पनी के उत्पाद भी बेकार हैं. ठीक इसी तरह की भूमिका कांग्रेस ने भी बखूबी निभाई है. कांग्रेस का या यूँ कहे कि राजनीति में एक ही भाषा चलती है “यदि तुम सामने वाले को सहमत नहीं कर पाते हो, तो उसे भ्रम में डाल दो…”। पाठक गढ़ ये विचार कर रहे होंगे कि “आप” की तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम ????? का इस मार्केटिंग सिद्धांत से क्या लेना-देना है. तो सज्जनों अगर हम पिछले कुछ माह की घटनाओं और विभिन्न पात्रों, जिनमें से प्रमुख अरविन्द केजरीवाल के व्यवहार पर एक सरसरी निगाह डालें, तो हमें यह स्पष्ट हो जाता है कि अरविन्द केजरीवाल, इसी “नई तीसरी कम्पनी” के रूप में उभरे हैं, जो कि वास्तव में कांग्रेस नामक कम्पनी का ही “बाय-प्रोडक्ट” है. जिसे कांग्रेस ने भाजपा जैसी दिग्गज पार्टी के वोटों को कम करने के लिए और आम जनता को भ्रमित करने के लिए राजनीति के बाजार में उतारा है वैसे एक बात तो माननी पड़ेगी कि अरविन्द केजरीवाल जैसा आम अदमी “आप -आप” करके सरेआम शीला और सोनिया के क्षेत्र में कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए बिजली के खंभे पर चढ़ जाता है और जबरन बिजली विभाग द्वारा किसी की काटी गई बिजली जोड़ने के बाद वहाँ खड़े होकर मुस्कुराते हुए फ़ोटो खिंचवाना फिर पत्रकारों को इंटरव्यू देकर बड़े ही इत्मीनान से निकल जाए…क्या किसी ने ऐसा कारनामा देखा है ? और तो और इतना सब होने पर भी उस व्यक्ति के खिलाफ़ एक भी ऍफ़आईआर तक दर्ज ना हुई क्यों ? क्योंकि आम परिस्थितियों में कोई भी आम आदमी ऐसा नहीं नही सकता, लेकिन यदि उस आम आदमी को ख़ास आदमी बनाकर परदे के पीछे से कांग्रेस का पूरा समर्थन हासिल हो तब तो अवश्य हो सकता है. विगत दिनों दिनांक ६ दिसंबर को अन्ना हजारे जी ने अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध जो वक्तव्य दिया था उससे अरविन्द केजरीवाल की निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लग गया. गौरतलब हो कि अन्नाजी ने कहा था कि अरविन्द केजरीवाल सत्ता और धन के लिए राजनीति कर रहे हैं और वे कभी भी केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट नहीं डालेंगे. सोचने की बात है कि अन्नाजी कोई दिग्विजय सिंह जैसे बडबोले नहीं है जिनके कथन को हवा में उड़ा दिया जाए. सीढ़ी सी बात है अन्नाजी के कारण ही केजरीवाल ज़ीरो से हीरो बन गए. इसी का फायदा उठाकर केजरीवाल ने यश और प्रसिद्धि के लिए अन्ना जी का भरपूर दोहन किया. जब अन्नाजी को केजरीवाल की असलियत का पता लगा तो उन्होंने बिना देर किये केजरीवाल से संबन्ध तोड़ लिया. अरविन्द केजरीवाल की निष्ठा अन्ना के जन आन्दोलन के साथ आरंभ से ही सन्दिग्ध रही है. ये भी सत्य है कि कांग्रेस के एजेन्ट स्वामी अग्निवेश केजरीवाल की ही अनुशंसा पर अन्ना जी की कोर कमिटी के सदस्य बने. इसी बीच अग्निवेश के चरित्र को सबसे पहले किरण बेदी ने पहचान लिया जिसे किरण बेदी ने वीडियो के माध्यम से आम जनता के सामने रखा था. देखा जाये तो किरण बेदी और केजरीवाल के बीच मतभेदों की यही से शुरुआत हो गयी थी. जो आज भी बरकरार है. लेकिन केजरीवाल के संबन्ध आज भी स्वामी अग्निवेश से पूर्ववत हैं. ये आम आदमी बनाम ख़ास आदमी का कथन है कि दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ना मेरा पहला लक्ष्य है, जबकि देखा जाये तो वास्तव में यह लक्ष्य कांग्रेस का है, कि किसी भी तरह शीला दीक्षित को चौथी बार चुनाव जितवाया जाए, इसलिए यदि केजरीवाल को आगे करने, बढ़ावा देने और उसके खिलाफ़ कोई कड़ी कार्रवाई न करके, दिल्ली विधानसभा की 20-25 सीटों पर भी भाजपा को मिलने वाले वोटों की “काट” खड़ी की जा सके, तो यह कोई बुरा सौदा नहीं है. ये भी सत्य है कांग्रेस और भाजपा को मिलने वाले वोटों का प्रतिशत लगभग समान ही होता है, लिहाजा एक प्रतिशत वोटों से कोई भी पार्टी हार या जीत सकती है. शीला दीक्षित हो या कांग्रेस के बड़ बोले मंत्री, किसी की भी “मार्केट इमेज” अच्छी नहीं है. अब इन हालातों में यदि अरविन्द केजरीवाल बनाम आम आदमी बनाम “आप” नामक प्रोडक्ट को बाज़ार में लांच कर दिया जाए और मार्केट शेयर यानी वोट प्रतिशत का सिर्फ़ 2-3 प्रतिशत बँटवारा भी हो जाए, तो कांग्रेस की मदद के रूप में नैया पार ही होगी. और वैसे भी इस कांग्रेसियों का कोई भरोसा नही क्योंकि जो कांग्रेस सरकार कानूनन अनुमति लेकर आमसभा और योग करने आए निहत्थे लोगों को रामलीला मैदान से बड़ी ही क्रूरता से आधी रात को मार-मारकर अधमरा करके भगा देती है, वही सरकार केजरीवाल बने ख़ास आदमी को बड़े आराम से बिजली के तार जोड़ने और मुस्कराते हुए फ़ोटो खिंचाने की अनुमति दे देती है. जो सरकार बाबा रामदेव के खिलाफ़ अचानक सैकड़ों मामले दर्ज करवा देती है, वही सरकार केजरीवाल के NGO के खिलाफ़ एक सबूत भी नहीं ढूँढ पाती ? आखिर क्यों ?? और अब सबसे आखिरी में सिर्फ़ एक ही सवाल पर विचार करिए तो सारी बात साफ़ हो जाएगी कि भ्रष्टाचार के मूल मुद्दों को पीछे धकेलने और भाजपा की बढ़त को रोकने के लिए मीडिया और कांग्रेस किस कदर हाथ से हाथ मिलाकर सफ़र कर रही हैं… सबसे बड़ा और अहम् सवाल है कि कितने पाठक हैं जिन्होंने उमा भारती की गंगा नदी को बचाने के लिए यात्रा और गंगा से जुड़े मुद्दों पर मुख्य मीडिया में बड़ा भारी कवरेज देखा हो. केजरीवाल और उमा भारती की संगठन क्षमता की तुलना के साथ-साथ केजरीवाल को मिलने वाले कवरेज और उमा भारती को मिलने वाले कवरेज, दोनों का मिलान कर लीजिए, इससे आपके समक्ष ये स्पष्ट हो जाएगा कि वास्तव में केजरीवाल कितनी “पहुँची हुई चीज़” हैं. यदि आप राजनैतिक गणित का आकलन करने की छमता रखते हैं तब तो आपके लिए यह समझना बहुत ही आसान होगा कि, केजरीवाल की इस कथित मुहिम का लाभ किसे मिलेगा ? और यदि केजरीवाल को कुछ सीटें मिल जाती हैं तो इससे किसका फ़ायदा होगा ? सोचने की बात है कि अन्ना के मंच से “भारत माता का चित्र हटवाने वाले”केजरीवाल क्या कभी भाजपा के साथ आ सकते हैं ? यहाँ पर मेरा इस तरह की बातों को कहने का मकसद कांग्रेस द्वारा “मोहरे” खड़े करने की पुरानी राजनीति को बेनकाब करना है. सच तो ये है कि जब हमारा देश गठबंधन सरकारों के दौर में हैं तब केजरीवाल द्वारा 2-3 प्रतिशत वोटों को प्रभावित करने से क्या कांग्रेस के तीसरी बार सत्ता में आने का रास्ता साफ़ नहीं होगा ??? अर्थात मेरा कहने का मतलब है कि आप अगले पाँच साल “UPA-3” को झेलने के लिए तैयार हैं क्या ? यदि नहीं झेल सकते तो इन सियासी मगरमच्छों के घडियाली आसुओं की बाढ़ से सावधान रहिये. अच्छा मजाक बना रखा है इन मिथ्या अहंकार में मदमस्त गैर जिम्मेदार, लोकतंत्र विरोधी, सामंत वादी मानसिकता के पोषक सियासी चालबाजों ने. अपनी शहंशाही बरकरार रहे इसलिए इनका विरोध जारी रहेगा. ये कोई आम आदमी की आशा के चिराग नहीं बल्कि राजनीति के खिलाड़ियों और पूंजीवादियो की लगायी हुई आग है और ऐसी आग जिससे भारत माता की आम जनता के घर जले, बेरहम तबाही आये और लोकतंत्र कमजोर हो ताकि इन जैसे भ्रष्ट पार्टियों का एकाधिकार रहे……
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