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क्या समाप्त हो जानी चाहिए वर्जिनिटी की अवधारणा – Jagran Junction Forum

sach ka aaina
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क्या समाप्त हो जानी चाहिए वर्जिनिटी की अवधारणा – Jagran Junction Forum

22-3-2013…..

बॉक्स ….. भारतीय समाज में पुरुष विवाह से पहले चाहे कितने भी संबंध बना ले लेकिन वह किसी का भी जवाबदेह नहीं होता. वहीं अगर महिला ऐसा कर ले तो यह उसकी सामाजिक-पारिवारिक  अवहेलना का कारण बन जाता है और उसका पूरा जीवन एक बुरा सपना बनकर रह जाता है…….
आजकल वर्जिनिटी (कौमार्य) पर कई प्रकार की चर्चाएँ पढ़ने को मिल रही हैं. रूढ़ियों पर आघात करने वाली कुछ मित्रों ने जहाँ वर्जिनिटी के विचार को भट्टी में झोंकने और इस अवधारणा का नाश होने का नारा दिया वहीँ इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप यह भी पढ़ने को मिलता है कि “कुछ प्रगतिशील औरतें अपने हर अनैतिक क़दम पर ऊँगली न उठाने की मांग कर रही हैं”.
भारतीय समाज में पुरुष विवाह से पहले चाहे कितने भी संबंध बना ले लेकिन वह किसी का भी जवाबदेह नहीं होता.
वहीं अगर महिला ऐसा कर ले तो यह उसकी सामाजिक-पारिवारिक अवहेलना का कारण बन जाता है.और उसका पूरा जीवन एक बुरा सपना बनकर अंधेरों में डूब जाता है. इसलिए क्योंकि हमारा समाज आज भी सिर्फ शारीरिक सम्भंधों को अपेक्षाकृत ज्यादा अहमियत देता है. मेरे समझ में एक बात नहीं आती कि आखिर क्यों हमने दुनिया के सबसे सहज स्वाभाविक, सुन्दर तथा प्रेम से निष्पन्न होने वाली क्रिया को इतना दुरूह जटिल और असुन्दर बना दिया और फिर उसमें वर्जिनिटी के भ्रम जाल का भी निर्माण कर दिया. हाँ ठीक पढ़ रहे हैं आप —-मैं इसे भ्रम ही कह रही हूँ, क्योंकि मेरे अपने अनुभव और रिसर्च का आधार यही कहता है कि विपरीत लिंग के साथ प्रथम संसर्ग को ही यदि कौमार्य भंग कहते हैं तो पुरुष भी वर्जिन ही होता है तो फिर क्या पुरुष का कौमार्य भंग होना कोई मायने नही रखता.
पहले हम औरतें एक साधारण पुरुष को पूज-पूज कर ईश्वर बना देती हैं. व्रत, उपवास, पूजा, अर्चना, लंबी उमर की कामना, सीता, सावित्री बनने की इच्छा वगैरह. बच्चा होश बाद में संभालता है उसे यह अहसास पहले होने लगता है कि वो लड़की से सुपीरियर है.धीरे-धीरे जब वो अपने भीतर देवत्व महसूस करने लगता है तब हम उसे खुद को खुदा मानने के आरोप में जकड़ देते हैं. वो कहते हैं न कि सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा. देखा जाये तो स्त्रियों का सबसे बड़ा दुश्मन वर्जिनीटी का कंसेप्ट है मतलब कि स्त्रियों की वर्जिनिटी उसके पति की अमानत है और इसी को कंट्रोल करने के लिए तमाम तरह की वर्जनाएं, नैतिकताएं और धार्मिक मान्यताएं गढ़ी गई हैं. इसका एक मतलब ये भी है कि स्त्रियां तो एक ही पुरुष से संबंध बनाए जो उसके भाग्य का विधाता भी हो लेकिन पुरुषों पर ऐसी कोई बंदिश नहीं की गई हैं. मैंने यहाँ कई युवा लड़कियों, महिलाओं से इस विषय पर चर्चा की, उनका साफ़ तौर पर यही कहना था कि विदेशों के खुले वातावरण में निश्चित रूप से सेक्स और वर्जिनिटी जैसे विषय पर आप बात करेंगी तो आपको सही मार्गदर्शन मिलेगा.
वर्जिनिटी का विचार मनुष्य के मन में जन्म कैसे लिया इसके बारे में एक अनुमान जरुर लगाया जा सकता है. आदिम काल में जब मनुष्य जंगल और गुफाओं में रहता था तो उस समय समाज और शासन व्यवस्था का ये रुप नहीं था. स्त्री-पुरुषों का संबंध किसी नियम में न बंधे होने के साथ-साथ सभी लोग स्वच्छंद थे सिर्फ मां का पता होता था. कौन किसका पिता है ये ज्यादा मायने नहीं रखता था कुल मिलाकर उस दौरान  स्त्रियां ज्यादा आजाद थी- हम अभी भी इसका थोड़ा सा रुप आदिवासी समाज की स्त्रियों में देख सकते हैं जो तथाकथित सभ्य समाज की तुलना में अपनी महिलाओं को ज्यादा आजादी दिए हुए है. मानव सभ्यता के तमाम ऐतिहासिक चरण आर्थिक आधारों पर तय हुए हैं- सच तो ये है कि जंगल में जब शिकार की कमी और पड़ोसी कबीलों से लड़ाई की वजह से सरदार नाम की संस्था का जन्म हुआ तभी से स्त्रियों की हालत खराब होने लगी. सरदार बनने की ये प्रक्रिया ,राजतंत्र और व्यवस्था के मजबूत होने के पहले चरण में कबीले की व्यवस्था सरदार के हाथों रहने लगी. धीरे-धीरे सरदार ने ये सोचा कि उसके कबीले का प्रभाव और उसकी सत्ता उसी की संतान के हाथों में हस्तांतरित होनी चाहिए. इसके लिए ये सुनिश्चित करना जरुरी हो गया कि जो बच्चा आगे जाकर सरदार की सत्ता को संभालने वाला है वो बच्चा उसी का हो. और जंगल की जिदगी के बाद जब आदि मानव बस्तियां बसाकर रहने लगे तो उनके मन में व्यक्तिगत संपत्ति की भावना ने जोर पकड़ा जिसके तहत विवाह नाम की संस्था का जन्म हुआ जिससे औरत की यौनिकता को खूंटे में बांध दिया गया  ऐसा इसलिए किया गया कि औरत किसी दूसरे के साथ संबध न बना सके और बच्चे के पिता की पहचान सुनिश्चित की जा सके. इस प्रथा ने औरत की यौन आजादी को तो खूंटे में बांध दिया लेकिन पुरुषों को बेलगाम छोड़ दिया-वे चाहें तो कई-कई औरते रख सकते थे. वहीँ दूसरी तरफ वैधानिक जामा पहनाने के लिए पुजारी वर्ग ने सरदार से सांठगांठ करके दैवीय वैधानिकता प्रदान करवा ली कि राजा, देवता का प्रतिनिधि है और राज करने के लिए पैदा हुआ है. तमाम तरह के धार्मिक साहित्य रचे और औरतों के खिलाफ एक से एक नियम कानून बना डाले. चूंकि औरत सशक्त नहीं थी, शासक नही थी- सो इस ‘देवप्रवक्ता’का विरोध वो नहीं कर पाई. राजा और पुजारी की चालें अपने मनमाफिक नियमकानून बनाने में मशगूल हो गई. जाहिरा तौर पर औरतों का हित किसी के एजेंडे में कभी नहीं आया. और आज के जमाने में भी जब औरते अपने हक की आवाज उठा रही हैं तो यहीं चालें और इसकी समाज पर थोपी मानसिकता औरतों को सिर्फ वर्जिनीटी के आधार पर कुचलने के लिए आमादा है.
मेरे शोध के दौरान शुरू-शुरू में जब महिलाओं से मैं इस विषय पर बात करती थी तो उस दौरान मेरे मन में कई तरह के भ्रमित करने वाले सवाल उठते थे, जिन्हें मैं बेहिचक पूंछ लिया करती थी जैसे कि: सेक्स प्रेमी के साथ किया या फिर केवल फन के लिए किया ? पहली बार सेक्स किस उमर में किया ? किसी व्यक्ति से पहली बार मिलने के कितने समय बाद सेक्स तक पहुंचे ? क्या वर्जिनिटी सच में कुछ होती है या उसे खोने का क्या अनुभव होता है ? आज तक कितने लोगों के साथ सेक्स किया ?  आदि आदि…….
पर यहाँ विषय है वर्जिनिटी का तो मैं केवल यह आपको बताना चाहती हूँ कि मुझे किसी ने भी यह नहीं कहा कि उन्हें वर्जिनिटी को खोने का कोई विशेष अनुभव हुआ हो अथवा पहली बार सेक्स के बाद ऐसा लगा हो कि कुछ खो गया, कहने का तात्पर्य यह कि ये केवल एक भ्रम ही है, जिसे सोच-सोच कर औरत और मर्द खुश होते रहते हैं.
कुछ लोगों का मानना था कि पहली बार सेक्स करके आप कुछ भी खोते नहीं हैं बल्कि प्रेम के एक नए अनुभव को पाते हैं. प्रेम तो सेक्स के बिना सहज संभाव्य है, परन्तु सेक्स यदि प्रेम के बिना हो रहा है तो वह बलात्कार है.
जबकि ‘वर्जिनिटी की अवधारणा’ पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कुछ लोगों का यह स्पष्ट कहना है कि, उसे वर्तमान हालातों और युवाओं की बदलती मानसिकता को पूरी तरह स्वीकार कर वर्जिनिटी की अवधारणा को ही समाप्त कर देना चाहिए। आज चारो ओर आधुनिकता अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रही है.

साथ काम करने और पढ़ने-लिखने के कारण स्त्री-पुरुषों के बीच निकटता बढ़ती जा रही है। अगर ऐसे में उनके बीच किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध विकसित होते हैं तो उन्हें मात्र नैसर्गिक संबंधों की ही तरह देखा जाना चाहिए। इसमें सही और गलत की तो कोई बात ही नहीं है। यह व्यक्तिगत मसला है और इसमें समाज का किसी भी प्रकार का दखल नहीं होना चाहिए। आज जब महिला और पुरुष दोनों ही विवाह पूर्व सेक्स करने से नहीं हिचकते तो ऐसे में अगर महिला विवाह के बाद किसी भी तरह से प्रताड़ित की जाती है तो इसका कारण सिर्फ और सिर्फ हमारी खोखली हो चुकी मानसिकता है, जिसे जल्द से जल्द परिवर्तित कर देना चाहिए.
जब हजारों वर्षों तक शिक्षा के मामले में भारतीय महिलाएं हाशिए पर थीं तब समाज का एक वर्ग था जो अध्यनरत था …. वर्तमान समाज में प्रचलित अधिकांश धारणाएं उन्हीं के द्वारा स्थापित हैं ….. अगर आपको उनकी धारणाओं को काटना है तो उनसे ज्यादा अध्यनरत होना पड़ेगा …….. नारीवादियों की थोथी बातें सतह पर ही वार करेंगी , जबकि जरूरत है जड़ पर प्रहार करने की.
पिछले दो-चार दशकों के अध्यन के दौरान ही कुछ स्त्रियॉं के अंदर अगर नारिवाद पनप रहा है जो एक स्वाभाविक प्रक्रिया ही है (ज्ञानवर्धन व अहंकारवर्धन समानान्तरगामी हैं ) तो फिर आसानी से पुरुषों के मर्दवाद को समझा जा सकता है ….. !!!!!!
कुछ महिलाओं ने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए नफरत फैलाने का ज़ो ठीका लिया है वह काबिले तारीफ है , भले ही वो इसका ठीकरा मर्दों पड़ फोड़ती हों …..!!!!! वे नारी स्वतन्त्रता की जगह नारी-स्वच्छंदता की मांग कर रही हैं… ऐसा लगता है जैसे नारी स्वतन्त्रता का पहला सोपान योनिक स्वतन्त्रता ही है …… !!!!!!
हम सभी जानते हैं एक स्त्री जब जन्म लेती हैं , तब उसके अंदर योनिकता जैसी कोई बात नहीं होती ….. तब उसके लिए जरूरी होता है उसका आहार , पोषण , स्वास्थ्य आदि ….. फिर कुछ बड़े होने पर शिक्षा , सुरक्षा, सुविधा आदि का मुद्दा आता है ….. योनिकता तो बहुत बाद की कड़ी है जो जवानी के साथ समाप्त भी हो जाती है ….. मगर पोषण , स्वास्थ्य , शिक्षा जैसे मुद्दे जीवन पर्यंत बने रहते हैं …. !!!!! नारीवादी नारी सम्मान के प्रति सही में गंभीर हैं तो उन्हें योनिकता की जगह इन मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए …. !!!!
कुछ दिनों पहले एक सर्वे में दावा किया गया था कि भारत में लगभग 40% बच्चे असुरक्षित अवस्था में जीने को मजबूर हैं. तो निस्संदेह इसमें सिर्फ भावी पुरुष ही नहीं भावी महिलाएं भी होंगी.  अब यह मुद्दा नारीवादियों कि प्राथमिकता में है ही नहीं … !!!!! तो फिर इस मुद्दे को कौन उठाएगा ….???
एक आंकड़े के अनुसार लगभग 6.8 लाख सेक्स वर्कर रजिस्टर्ड हैं , नाको के अनुमान के अनुसार अभी लगभग 12.63 लाख सेक्स वर्कर भारत में हैं…. !!!! इनकी माली हालत जग जाहीर है , ये भी महिलाएं ही हैं ….. इनके मुद्दे को कौन उठाएगा ….???
जहाँ तक योनिकता का सवाल है तो हमारे मनीषियों ने संयमित जीवन(जीने की बात की है संकीर्णता की नहीं … अगर ऐसा होता तो हमारे यहाँ कामसूत्र नहीं लिखी जाती , अजंता एलोरा , खजूराहों की मूर्तियाँ नहीं बनती ……, क्या ये सब हमारी संकीर्ण सोंच का नतीजा है ??? यह हमारी उद्दात्त सोंच है …. इसकी कभी पश्चिम से तुलना नहीं की जा सकती ….!!!! जहाँ तक धर्म ग्रन्थों का सवाल है तो उसकी रचना उसके ठेकेदारों ने की है , आम जनता ने नहीं …. अत: धर्म ग्रन्थों का हवाला देकर आम पुरुषों को नहीं घसीटा जा सकता या घसीटा जाना चाहिए , जैसा अकसर नारीवादियाँ करती हैं ….!
भारतीय परिप्रेक्ष्य में वर्तमान नारिवाद दिशाहीन ही नज़र आ रही है. मुझे उम्मीद है कि आगे आने वाली पीढ़ी से है , जो स्त्री विमर्श के मुद्दे को संजीदगी से उठाएगी.  वह सिर्फ 9-10% महानगरीय कामकाजी स्त्रियॉं को ही शामिल नहीं करेंगी अपितु ज्यादा से ज्यादा स्त्रियॉं को समावेशित करेगी …… !!!!! वह पीढ़ी सिर्फ धर्म ग्रन्थों से दकियानूसी ही नहीं ढूंढेगी , इसके साथ ही इतिहास , भूगोल , जीव विज्ञान , मनोविज्ञान आदि का भी अध्यन करेगी और एक समग्र दृष्टिकोण के साथ मुद्दों को उठाएगी …..!!!!!
अब चुकीं लोहा ही लोहा को काटता है, अत: स्त्रियॉं को भी लोहे की तरह गलना , ढलना और जरूरत पड़ने पर चलना सीखना होगा….तभी यह संघर्ष आगे की दिशा ले पाएगा। यह एक प्रक्रिया है..जो अनवरत चलती रहनी चाहिए ….. !!!!
स्त्री-पुरुष के बीच नफरत , घृणा , द्वेष आदि फैलाने वाला कोई भी वाद हमें अस्वीकार्य होना चाहिए, उसका सामाजिक बहिष्कार हो और एक ऐसा समाज बने जहाँ स्त्री पुरुष के बीच प्यार , सम्मान व संवाद की स्थिति हो ….!!!!
याद रखिए संवादात्मक समाज का निर्माण ही समानता के मूल्य को स्थापित कर सकती है…….
वहीं दूसरी ओर परंपराओं और नैतिक सामाजिक मान्यताओं के पक्षधरों का मानना है कि अगर विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों के क्षेत्र में समाज अपना दखल देना बंद कर देगा तो हालात बद से बदतर होते जाएंगे. वर्जिनिटी की अवधारणा को समाप्त करने का अर्थ है युवाओं को सेक्स की खुली छूट देते हुए किसी भी प्रकार की नैतिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर देना. अगर हम ऐसा कुछ भी करते हैं तो यह सामाजिक और पारिवारिक ढांचे को पूरी तरह समाप्त कर देगा. कैजुअल सेक्स जैसे संबंध हमारे समाज के लिए कभी भी हितकर नहीं कहे जा सकते, इसीलिए अगर परंपराओं, नैतिकता और मूल्यों को सहेज कर रखना है तो वर्जिनिटी की अवधारणा को भले ही जोर-जबरदस्ती के साथ लेकिन कायम रखना ही होगा.
लेकिन ये मुद्दा विचारणीय है कि कैजुअल सेक्स की बढ़ती पहुंच के बावजूद आधुनिक युग में लगभग ७० प्रतिशत पुरुष अपने लिए कुंवारी (वर्जिन) पत्नी की तलाश कर रहे हैं।” वह ऐसी महिला को अपनी जीवनसंगिनी नहीं बनाना चाहते जिसने विवाह से पहले किसी के साथ सेक्स किया हो. भारतीय युवाओं की मानसिकता और उनकी प्राथमिकताओं को मद्देनजर रखते हुए एक ओर जहां वन नाइट स्टैंड और कैजुअल सेक्स का प्रचलन जोरों पर है, वहां “वर्जिन पत्नी” की मांग थोड़ी अटपटी सी लगती है.

sunita dohare ….


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