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मेरे प्रिय पापा

sach ka aaina
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मेरे प्रिय पापा :–

समय की बेलगाम रफ़्तार ने

पापा आपकी छत्रछाया से

साँसों के प्रवाह से

आपको मुक्त कर दिया

दुनिया कहती हैं  कि ईश्वर है कहाँ ?

शायद दुनिया पागल हैं

पर पापा आप ही तो ईश्वर का रूप हो

मुझसे पूछे ये दुनिया, जब पिता नहीं होते

तो ईश्वर के नाम से जाने जाते है

आपके जाने के बाद

तमाम कोशिशों के बावजूद

सामने की दीवार पे

आपकी तस्वीर नहीं लगा पाई

आपने तो देखा था  पापा

फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के

चुपचाप खड़े जो हो गये थे मेरे साथ

सूनी सपाट दीवार पे

एक कील भी न लगा पाई थी मैं

हाथ तो चल रहे थे

दिमाग भी साथ दे रहा था

पर ये व्याकुल, व्यथित मन

ये तो उतारू था विद्रोह पे

बार-बार व्यथित, व्याकुल मन

विद्रोह करता ईश्वर से कि

क्यों दूर कर दिया आपको मुझसे

मेरे वजूद में शामिल था आपका अंश

इतना आसान नहीं आपसे अलग होना

मैं भी समझ नहीं पाई

कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट

को कैद कर दूं  इस फ्रेम की चारदिवारी में

आपसे बेहतर मेरे मन का द्वंद्व

कौन समझ सकता है पापा …….

आपके जाने के साथ

मेरा बचपना भी अनायास

साथ छोड़ गया , माँ के

अकेलेपन के पायदान

अब मुझे साफ़ नज़र आते हैं…….

मुझे याद नहीं कि आपके होते

कभी ईश्वर से हमने कुछ माँगा

ऐसा भी नहीं  की ईश्वर में विश्वाश नहीं

आपके साए का विस्तार इतना ज्यादा था

कि उससे बाहर जाने के लिए सोचा ही नहीं……

मेरे प्रिय पापा…… …………..

……..sunita dohare ………

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