बॉक्स…. हालांकि अभी तक मायावती ही इकलौती ऐसी मुख्यमंत्री रहीं हैं, जिन्होंने न सिर्फ राजा भैया की हरकतों पर लगाम लगाई, बल्कि उसे जेल में बंद करके उनपर पोटा भी लगा दिया था. इस राजा भैया को इसी तरह के किसी मुख्यमंत्री की जरूरत है जिससे इसके कुकर्मों पर लगाम लग सके……..
यूपी में सीबीआई का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि किसी भी मामले में असली कातिल उसने शायद ही पकड़ा हो. एजेंसी को केस की जांच की बजाए राजनीति में कितना मजा आता है. सिर्फ इसी मामले से सीबीआई की काबिलियत पर संदेह खड़ा हो जाता है. और अगर सिर्फ आरुषि हत्याकांड और डिप्टी सीएमओ सचान हत्याकांड की ही बात कर लें तो उसमें सीबीआई को कोर्ट की फटकार के बाद दोबारा से जांच शुरू करनी पड़ी थी…….
ये सच है कि सीबीआई के पुराने कई रिकॉर्ड्स बताते हैं कि उसकी जांच और काबिलियत पर हमेशा से राजनीतिक दबाव हावी होते रहे हैं. अब अगर कहीं इस मामले में भी ऐसा होता है तो कोई विशेष बात नहीं होगी. अगर सही मायने में जांच की बात की जाए तो सीबीआई की जांच उत्तर-प्रदेश पुलिस से बेहतर नहीं मानी जा सकती क्योंकि आरुषि मामले में ही देख लीजिए आखिरकार सीबीआई को उत्तर-प्रदेश पुलिस की ही थ्योरी पर ही चलना पड़ा था.
सीओ जियाउल हक की हत्या के आरोपी रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की बेंती कोठी के पीछे सैकड़ों एकड़ के तालाब के बारे में एक से एक खतरनाक किस्से सुनाने में आते हैं. स्थानीय लोग अब भी कहते हैं कि राजा भैया ने इस तालाब में घड़ियाल पाल रखे हैं और वह अपने दुश्मनों को मारकर इसी तालाब में घड़ियालों का भोजन बनाकर फेंक देता हैं. लेकिन राजा भैया इस तरह की किसी भी बात से इन्कार करते हुए कहता हैं कि ऐसा वही लोग प्रचारित करते हैं जो मानिसक रूप से दिवालिएपन के शिकार हो गए हैं. लेकिन राजा भैया ये तो जानते ही होंगे कि धुँआ वहीँ उठता है जहाँ चिंगारी होती है. राजा भैया की अपराध में संलिप्तता कोई पहली बार नहीं है. इससे पहले भी राजा भैया कई बार अपराध करके अपनी नामर्दगी का सुबूत देते रहे हैं. मेरे विचार से जो व्यक्ति अपराध करके बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दे वो नामर्द ही होता है. जब भी सपा का शासनकाल आया तो इस राजा भैया नामक अजूबे अपराधी ने अपना रौद्र रूप दिखाया है. लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाला ये रघुराज प्रताप सिंह हर बार कुंडा सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव जीतता है. उसकी जीत का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. क्योंकि गुंडई के बल पर जीत को हासिल करने वाला राजा भैया अपने आतंक से पूरे कुंडा को भय से भ्रमित करता है.
इस हत्या के पहले भी सीबीआई के पास राजा भैया के खिलाफ दो ऐसे मामले हैं, जिनमें राजा भैया का नाम उभर कर आया है लेकिन सीबीआई अभी तक उन पर हाथ नहीं डाल सकी है. २००७ में उत्तर-प्रदेश पुलिस के इंस्पेकटर राम शिरोमणि पांडेय की संदिग्ध हालात में सड़क दुघर्टना में मौत हो गई थी. अब सोचने की बात ये है कि पांडेय ने २००२ में मायावती शासनकाल में राजा भैया के यहां छपा मारा था. और उस छपे को उनकी संदिग्ध मौत से जोड़कर देखा जा रहा था पर इंस्पेकटर राम शिरोमणि पांडेय के मामले की जांच में भी सीबीआई कुछ खास हासिल करती नहीं दिखी.
और सच्चाई तो ये है कि साल २००४ से २००६ के बीच यह सिलसिला लगातार अपने चरम पर था जैसे मिड डे मील, संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, अंत्योदय योजना, जैसी स्कीमों के तहत राज्य को आवंटित अनाज की जमकर कालाबाजारी की गई थी. इस दौरान राजा भैया के पास फूड एवं सिविल सप्लाई मंत्रालय का जिम्मा था. लेकिन सीबीआई ने अब तक राजा भैया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक सीबीआई की जांच बलिया, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, लखनऊ, गोंडा और वाराणसी जिलों में चल रही है. लेकिन वही ढाक के तीन पात…….
यूपी की अखिलेश यादव सरकार के 53 फीसदी मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं. क्या आपको ज्ञात है कि इनमे से एक मंत्री मनोज कुमार पारस के खिलाफ रेप का भी मुकदमा दर्ज है. जिस समय पूरा देश डीएसपी जियाउल हक की हत्या के आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने की मांग कर रहा था उसी समय उत्तर-प्रदेश की सरकार के पास ऐसे स्टाम्प, कोर्ट फीस और रजिस्ट्रेशन के राज्य मंत्री मनोज कुमार पारस हैं, जिन पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज है. और सरकार उनको अपनी छत्रछाया में पाल रही है.
देखा जाये तो अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव डीएसपी के परिवार वालों को 50 लाख का मुआवजा देकर और घटना की सीबीआई जांच करवाने का ऐलान कर सरकार को मुश्किल से उबारने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सत्ता के गलियारे में चर्चा है कि कानून व्यवस्था का मामला हो, या कोई नीतिगत फैसला, अधिकारियों का ट्रांसफर या अपने मंत्रियों पर लगे आरोपों से निपटने की बात हो, हर कदम पर सरकार न सिर्फ विपक्ष की, बल्कि आम लोगों की भी आलोचना का शिकार बन रही है. आलोचनाओं के घिरी सरकार जल्दबाजी में फैसले दर फैसले लिए जा रही है, और प्रदेश में आम आदमी की सुरक्षा पर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रही है.
सबसे शर्मनाक बात तो ये है कि देश और देश की सरकारें जब विधानसभा में किसी मुद्दे को लेकर एकत्रित होतीं हैं तो हर बहस हंगामे की भेंट चढ़ जाती है. जैसे विगत दिनों प्रतापगढ में सीओ की हत्या के मामले में लिप्त अभियुक्तों की गिरफ्तारी और घटना की सीबीआई जांच की मांग को लेकर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ, जिस कारण पूरा प्रश्नकाल हंगामे की भेंट चढ़ गया. और इसके बाद बजट पर बहस शुरू हुई तो 90 प्रतिशत विधायक और मंत्री सदन से गायब हो गए. क्या सही मायने में यही हमारे देश के मुखिया हैं जिनका प्रतिनिधित्व अपनी पहचान खो चुका है……
हालांकि अभी तक मायावती ही इकलौती ऐसी मुख्यमंत्री रहीं हैं, जिन्होंने न सिर्फ राजा भैया की हरकतों पर लगाम लगाई, बल्कि उसे जेल में बंद करके उनपर पोटा भी लगा दिया था. इस राजा भैया को इसी तरह के किसी मुख्यमंत्री की जरूरत है जिससे इसके कुकर्मों पर लगाम लग सके……
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