नारी ह्रदय फूल के समान कोमल होता है.नारी स्वयं मन की वेदना को व्यथित होकर मन में समा लेती है. नारी बड़े-बड़े आघातों को क्षमा कर देती है, पुरुष विजय के दंभ में चूर होता है, और नारी समर्पण की भावना से युक्त पुरुष पर सब कुछ न्यौछावर कर देती है. पुरुष का दम्भी मन सब कुछ लूटना चाहता है और नारी लुट जाने में ही सुकून पाती है. पिछली यादों को बखूबी जीवित रखना, जिन्दगी के हर मोड़ को संजीदगी से संभाले रखना, रिश्तों की मर्यादा समझना, उन्ही में जीना, उन्ही में मरना, ताउम्र त्याग की मूर्ति बन अपने विशाल ह्रदय में दर्द के दरिया को समेट लेना ही नारी अपने जीवन की सार्थकता समझती है. नारी ह्रदय में काव्य और प्रेम रस की जब अनुभूति होती है तो रोम-रोम वाद्य यन्त्र सा झंकृत होता है. क्योंकि नारी प्रेम की आशक्ति है और इकलौती सृष्टि की सृजनदायिनी है. नारी जगत की आधारभूत सता है, नारी समस्त समाज और राष्ट्र को एक अनोखी डोर में बाँध कर रखती है, जो नारी का पावन, पवित्र प्रेम होता है. दिल के हर जज़्बात को शब्दों में ढालकर बयान करना इतना आसान नही होता. काश, दिल की बात कहना इतना आसान होता, हर अहसास को शब्द कहाँ मिल पाते हैं. कौन सा पैमाना खोजें हम जिससे दिल कि अंतरतम गहराइयों में छुपी दिल की बात को बाहर ला सकें. तुमेह याद हैं वो दिन जब हम दोनों के बीच मधुर रिश्ते अनवरत फूल की खुशबू से महक रहे थे. अचानक ऐसा क्या हुआ कि सब कुछ बिखर गया इतनी कड़वाहट के बीच तुमने कहा था मुझसे कि अपने आप को मेरी जगह रखकर देखो, और मैंने तुमको तुम्हारी नजर से देखा भी, तुम्हारी वेदना भी समझी, तुम्हारी हर उलझन को भी बांटा मैंने, पर तुम मुझे अकेला छोड़कर चले गये, ये बोझ भरी जिन्दगी जीने के लिए , जी रही हूँ , मेरे वजूद को तार-तार कर दिया तुमने, मैं असहाय सी खड़ी रह गयी, निरुत्तर सी……..लेकिन क्या तुमने कभी कोशिश की, ये तो मैं जानती हूँ कि तुम्हारे लिए यह बहुत मुश्किल होगा ये समझना कि नारी क्या है पर कैसे समझोगे तुम क्योंकि उसके लिए तो चाहिए–एक नारी ह्रदय और उसकी संवेदनाएं पर वो दर्द, वो नर्म अहसास तुम कहाँ से लाते क्योंकि तुम तो एक मर्द हो और मर्द ही रहोगे. जो एक दुत्कार से धुआं बन उपेक्षा के घने कोहरे से बरस पड़ते हैं. नारी की वह इच्छाएं , जो बड़ी आतुरता से प्रेमी के आने का इंतज़ार करतीं हैं ठीक उस तरह जैसे प्रेमी के आँखों में अपनी छाया का अस्तित्व ढूढती, विचरती असहाय सी आँखें और दिल जो मान लेता है हर गलती न सी लगती. फिर चाहें वो तुम्हारे अहम् को परोसती हो पर मैं कैसे कहूँ कि तुम अपने आपको मेरी जगह रखकर देखो कभी……………
व्यथित मन तुझसे कुछ कह न सका, बीते दिनों तुम प्रेम-प्रेम सिखाते रहे
मेरा दिल ठहरा बेजुवां कुछ कह न सका और मैं रटते-रटते कोयल से तोता बन गई
रोज-रोज कहकर तुमने प्रेम कहला ही लिया दिन बीते साल बीते सब कुछ ठहर सा गया
तेरी यादें तेरी बातें सब कुछ तेरे संग बीता अब कहते हो खोल देता हूँ पिंजरा
अगर उड़ सकती हो तो उड़ जाओ कैसे उड़ जाऊं, पर तो तुमने मेरे क़तर दिए
चलो फिर भी ये सोचती हूँ कि बेचारे वक्त पर ही इल्जाम लगा देती हूँ
क्योंकि इस बेरहम वक्त ने साथ न दिया, तुम्हारा प्यार पा पहली मैं हो न सकी,
मैं दूसरी, तीसरी क्यों और किसलिए बनू, और चौथी, पांचवी मैं होना नहीं चाहती,
क्योंकि मुझे कोई जल्दी नहीं, सबसे अंतिम होने का प्रस्ताव रखती हूँ
समझ सको तो समझ लेना, विचार लेना मेरे मन में कोई आतुरता नहीं कोई दगा नहीं
जब तुम्हारा दिल, तुम्हारी आत्मा, भर जाए शरीर साथ न दे, जीने का कोई अरमां न हो
तुम्हारी दौलत पे मरने वाले साथ छोड़ दें तुम्हारा, तब तुम मुझे पुकार लेना, मेरे प्रस्ताव पर विचार लेना
मैं आखिरी बनने का इन्तजार करुँगी……..
ताउम्र इन्तजार करुँगी ……मैं बस इन्तजार करुँगी ………….. सुनीता दोहरे……
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