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मुलायम ने सजाई नरम हिंदुत्व, नरम मुस्लिमवाद से सजी थाल…….
बॉक्स…. मुलायम ने भाजपा को सलाह देकर जनता के सामने अच्छा बनकर अपने स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए भले ही अपनी चमक बिखेरी हो पर भारतीय राजनीति के छोर पर इस समय वो अकेले ही खड़े नजर आते हैं. बहरहाल जो भी हो हमारा यही आंकलन है कि यदि मुलायम और भाजपा एक साथ आते हैं तो शायद दोनों के ही परंपरागत वोटर उनसे दूर चले जायेंगे……..
राजनीति की रस्सा-कसी में कब कौन दोस्त बन जाए और कब दुश्मन, इसका अनुमान लगा पाना बेहद ही कठिन है. अब भले ही ये बातें महज कयास लगें, लेकिन एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह ने बुधवार को भाजपा को जो सलाह दी उससे तो यही अनुमान लगाया जा सकता है. भाजपा अध्यक्ष के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में चर्चा के दौरान मुलायम ने कहा, राजनाथ की तारीफ करते हुए कहा था कि ‘हम राजनाथ सिंह को उनके भाषण के लिए बधाई देते हैं क्योंकि उन्होंने इसमें समाजवादी विचारधारा का उल्लेख किया है. अब आप भाजपा के अध्यक्ष है तब इन नीतियों को भी लागू करें और अपनी विचारधारा को बदलें. अगर आपकी विचारधारा ठीक होती तो हमें कांग्रेस क्यों समर्थन देना पड़ता. मंदिर-मस्जिद के बारे में हमारी भाजपा से काफी दूरी है. इस मामले में देश को एकजुट रखने के लिए उस समय हमारी सरकार को अयोध्या में गोली चलाने का आदेश देना पड़ा. क्या हमें यह अच्छा लगा ? बिल्कुल नहीं. सपा सुप्रीमों ने भी कहा कहा कि देशभक्ति, सीमा सुरक्षा और भाषा के मामले में उनकी पार्टी और बीजेपी की एक नीति है.
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने संसद में भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मुसलमानों और मंदिर, मस्जिद के प्रति पार्टी की सोच और विचारधारा बदलने के लिए अपनी ओर से पहल करने का सुझाव देते हुए कहा कि अगर ऐसा हुआ तब दोनों दलों के बीच दूरियां कम हो जाएंगी. सपा सुप्रीमों ने ये भी कहा कि अगर भाजपा कश्मीर और मुस्लिम पर अपनी नीति ले तो हमारी और बीजेपी के बीच की दूरी कम हो जाएगी. उनका ये ब्यान राजनीतिक पंडितों को चौकानें वाला था. राजनाथ सिंह ने इसके जवाब में कहा कि हमारे और आपके बीच दूरी कहां है… अगली बार आप निश्चित तौर पर हमारे साथ होंगे. मुलायम ने अब मुख्य विपक्षी पार्टी के प्रति अपना रुख कुछ हद तक नरम कर लिया है. मुलायम ने साथ में यह भी कहा कि मुझे खुशी है कि वो बदलाव लाने की कोशिश करेंगे. लोकसभा में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में मुलायम सिंह यादव के बयान से ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या ऐसा संभव है कि बीजेपी और समाजवादी पार्टी की दूरियां खत्म हो सकती हैं ? समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अपनी धुर-विरोधी पार्टी भाजपा के साथ गलबहियां करने को तैयार बैठे हैं. फिलहाल इन दिनों के बर्ताव को देखते हुए लगता तो कुछ ऐसा ही है कि राजनैतिक हवा का रुख भांपने में माहिर सपा सुप्रीमों मुलायम को क्या भाजपा के साथ समाजवादी पार्टी की राहें साझा करने में कोई बड़ा लाभ नज़र आने लगा है. अब सोचने की बात तो ये है कि क्या सपा 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन देगी ? या फिर यूपीए सरकार की नीतियों से परेशान मुलायम सिंह किसी और राजनीतिक पार्टनर की तलाश में हैं ?
फिलहाल जो भी हो राजनैतिक गलियारे में तो ये चर्चा अभी जोरों पर है कि क्या मुलायम को सप्रंग का पतन और भाजपा के नेत्रत्व वाले राजग को उत्थान नज़र आ रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा के विरोध की राजनीति करने वाले मुलायम किसी बड़े मौके को हथियाने कि फिराक में है.
उनके ही पार्टी के अंदरूनी सूत्रों से हमें मालूम हुआ कि नेता जी राजनीतिक हवाओं से डरते नहीं उनके सामने खड़े होकर राजनीतिक बवंडरों के रुख को भांप कर निर्णय करते हैं जो भी निर्णय करते है वो पार्टी और समाज के हित में होता है. विपक्षी पार्टियों के कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि मुलायम की छवि मौकापरस्त नेता की रही है, वो अब भाजपा का प्रयोग करना चाहते है. हमारे पार्टी के बड़े नेताओं को मुलायम से दूर रहना चाहिए. सपा सुप्रीमों मुलायम का ये कहना कि कि देशभक्ति, सीमा सुरक्षा और भाषा के मामले में उनकी पार्टी और भाजपा की एक नीति है. मैं समझती हूँ कि मुलायम के इस बयान पर अगर गौर किया जाए तो आने वाले समय के राजनीतिक समीकरण का अनुमान लगाया जा सकता है. सपा सुप्रीमो के इस फार्मूले की धमक राजनीतिक गलियारों में महसूस की जा सकती है इस ब्यान को लेकर सबसे ज्यादा बेचैनी भाजपा के दिग्गजों को है क्योंकि मुलायम थोड़े फेरबदल के साथ उसी रेसिपी को नई पैकिंग में अब बेचने की फिराक में हैं जो खुद भाजपा सालों से तैयार करके रखे है. यानि विकास, नरम हिन्दुत्व, नरम मुस्लिमवाद से सजी नरम समाजवाद से परखी गयी रेसिपी को धर्मनिरपेक्षता की पैकिंग में हिन्दुस्तान को परोसना मुलायम को सफलता के द्वार दिखा सकता है. सही मायने में देखा जाए तो सत्य तो ये है कि कभी भी भाजपा ने इस खास नरम मुस्लिमवाद की रेसिपी को पेटेंट कराने की कोशिश नहीं की और अब पासा पलट गया क्योंकि मुलायम ने नरम हिन्दुत्व, नरम मुस्लिमवाद से सजी नरम समाजवाद से परखी गयी रेसिपी को एक थाल में सजाकर जनता के सामने पेश कर दिया है. मुलायम ने भाजपा को सलाह देकर जनता के सामने अच्छा बनकर अपने स्वार्थ को पूर्ण करने के लिए भले ही अपनी चमक बिखेरी हो पर भारतीय राजनीति के छोर पर इस समय वो अकेले ही खड़े नजर आते हैं. बहरहाल जो भी हो हमारा यही आंकलन है कि यदि मुलायम और भाजपा एक साथ आते हैं तो शायद दोनों के ही परंपरागत वोटर उनसे दूर चले जायेंगे……..
सुनीता दोहरे……
लोकजंग-ब्यूरो चीफ उत्तर-प्रदेश
विशेष संवाददाता ”ईएनआई” न्यूज़ एजेंसी
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