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किस्मत तुझे तो मरना ही चाहिए {जैसे को तैसा }…
शुरू करती हूँ जिन्दगी के सफ़र में किस्मत के खेल की कला बाजियों को और सोचती हूँ कि अगर ये किस्मत न होती तो इस दुनिया का हर व्यक्ति सुकून से जी रहा होता……. इस समाज की परम्पराओं ने बेबसी और लाचारी का नकाब पहनाकर महानता की मुझ पर जिल्द चढ़ा दी, मेरी ज़िन्दगी को एक दर्द की चादर ओढ़ा कर एक सुनहरी किताब बना दी ! सिसकते रहे इन आँसुऔं के बोझिल पन्ने जब लिखावट सूख गई, तो उन्हैं जला दिया….. कभी उन्हैं बेतरतीबी से पलटा, तो कभी उन्हैं राहों मैं बिछा दिया, कभी मोहब्बत के अल्फ़ाज़ लिखकर नफरत की भैंट चढ़ा दिया ! सिद्दत-ए-दर्द जब बढ़ता गया, तो इस खामोशी ने लफ्जों का रूप ले लिया ! जब खामोशियाँ बोलने लगी, तो व़क्त ने करवट ली और एक बार फिर तुम मेरे सामने आ गये ! मैं याद करती गई और दर्द की स्याही से शब्द उभरते गये ! बड़ी कशमकश थी जब मैंनें लिखने के लिये अपनी कलम उठाई थी ! सब कुछ अजीब सा लग रहा था, मन कुछ अशांत था, जीवन एक ढर्रे की तरह चल पड़ा, सुख की तरह दुख भोगने की आदत सी पड़ गयी है, बिना पृतिकार के एक लंबा अरसा गुजार दिया!भूतकाल एक बार नहीं अनेकों बार वर्तमान को झणिक सुख की गर्मी व नरमी देने आ जाता है ! जीवन पीछे लौट जाना चाहता है,पर हजारों मींलों का फासला वापस तय करने के लिये उतनी हिम्मत जुटा पाना हर एक के बस में नहीं!आज सुबह से आसमान बादलों से भरा है खिड़की, दरवाजों और परदों पर गीली-गीली हवा थपेड़े मार रही है माहौल में अजीब सा भारीपन तैर रहा है जब भी बादल आकाश को अपनी मुठ्ठियों में कैद कर लेते हैं तभी ना जाने क्यों मेरी आत्मा सुलगने व चटखने लगती है इन मेघ भरे बैंगनीं अंधेरे में दिल दहल जाता है और अक्सर ये सोचताहै कि रिश्ते क्या होते हैं,ये क्यों पानी की तरह हाथ से छूट जाते हैं ये रिश्ते क्यों बर्फ की तरह जम जाते हैं,जिन्दगी की शीतलता समाप्त कर देते हैं ये बर्फ से रिश्ते निहारते हैं हमारी ओर,आँखों से एक मौन सवाल करते हैं कि जन्म क्या यूं ही बीतेगा. ये बर्फ जैसे सफेद स्याह चेहरे,हमारे जीवन की डोर से बंधकर ,एक अनवरत बंधी सी जिन्दगी जीते हैं. टकटकी लगाये बर्फ रूपी रिश्तों केपिघलने का इन्तजार करते हैं. जीवन की आग में जलकरये रिश्ते हमें दुख से निढाल कर देते हैं जैसे बर्फ से एक-एक बूंद रिसती हैउसी तरह इन रिश्तों की आँखें पीड़ा से कराहती हैं जैसे आँसूं रूपी बूंद एक वेदना में बदल जाती है मन विरक्त सा होने लगता हैएक वेदना के साथ. कभी-कभी सोचती हूँ कि ऊपर वाले तूने ये किस्मत {नसीब, भाग्य, ललाट, तकदीर, अंक, भाल} नाम को इजाद क्यों किया. जब भी किस्मत के बारे मैं सोचती हूँ तो मन कुछ यूँ करता है जिन्हें मैं नीचे दी हुई अपनी रचना के द्वारा आपके साथ बांट रही हूँ ………
किस्मत, भाग्य, तकदीर तुझे तो मरना ही चाहिए….
अब इस रोज-रोज के
झंझट से मुक्ती मिले तो अच्छा है.
तुम देखना, इक दिन मैं भी
बहला–फुसलाकर झांसा देकर
इस बेरहम किस्मत को
हवाई जहाज से घुमाने ले जाउंगी
औरचुपके से नीचे धकेल दूंगी
फिर जोर-जोर से चिल्लाकर कहूंगी
जैसे को तैसा मिलता है……..
फिर तू बिंदास घूमना
किसी नुक्कड की दूकान पर बैठ
चाय की चुस्कियां लेना
सिगरेट पीते-पीते धुएं के छल्ले
उड़ाते हुए खेत खलिहानों के बीच
मुझ जैसे पथिक को तलाशना
जो तेरे (किस्मत) के सहारे बैठा हो
और मैं दूर गगन से तुझे देखकर
जोर-जोर से हसूंगी…………
और हाँ तू किसी घने वृक्ष के तले
ठहर सुस्ताते हुए ये जरुर सोचना
मेरा नाम किस्मत क्यों था
शायद खुदा रहम कर दे तुझ पर
पर तूने तो न किया था रहम
तू भटकनापैदल, अकेले
रात के सन्नाटे में उद्देश्यविहीन,
और वीरान पड़ी चट्टानों को नापना
बिल्कुल विशुद्द कोरे प्रेम की तरह….…..
सुनीता दोहरे ….
{लोकजंग-ब्यूरो} चीफ उत्तर-प्रदेश
विशेष संवाददाता ”ईएनआई” न्यूज़ एजेंसी
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