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दो घूंट जहर पिया सिर्फ तुम्हारे लिए

sach ka aaina
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sunita

मेरी कुछ रचनाएं.…
{ दो घूंट जहर पिया सिर्फ तुम्ह्रारे लिए }…

{१}…प्रेम एक समाधी…

अक्सर हमने देखा है ये आलम
अटूट प्रेम की समाधियाँ
विरह नामक अग्निकुंड में
रोज अर्पित होतीं हैं…..

और यूँ ही न जाने कितनी
अनंत सदियाँ गुजर गई
न कोई अग्निदेव प्रकट हुआ
न ही कोई वरदान मिला
ना प्रेम का यौवन लौटा…..

बस देखा तो सिर्फ
निश्छल ह्रदय के प्रेमियों को
“स्वाह” का उच्चारण करके
रोज “स्वाह” होते हुए.……..सुनीता दोहरे

तुम सुबह सी खिली धुप सी…

सुबह की पौ फटते ही,
वह अनन्त रहस्यों की मूर्ति !
जन्नत की परियों सा, उसका एहसास,
सौन्दर्य की मधुर छुअन,
हरे-हरे खेतों में, सकुचाई सी,
तुम यादों की पगडंडी पर ,
दूर निकल जाती हुई !
घने काले बादलों से,
झूमते हुये, तुम्हारे ये केश !
सुनहरी बालियों सी, तुम्हारी ये लचक !
बे-मौसम बूंदो का रिमझिम-बरसना,
तेरे अनकहे अधरों से, आह-निकलना !
आधे होते सूरज का निखरना
जैसे सारी कायनात, थिरक उठी हो !
वो हँसी तो मोती झरने की, तरह झरने लगे !
उस पर उसकी शोखी का आलम,
पल्लू को हौले से छू कर, बहती हुई पुरवाई !
है नाजनीना,फलसफा-ए-हुस्न की ,
तेरे अफसाने से शुरू हुई, इब्तिदा-ए-जिंदगी की !
देखते-देखते उसका, सोचों में गुम हो जाना !
वो हर बार तेरा इम्तहान लेना,
बफा-ए-हर पहलू को परख लेना !
वो हिमालय की बर्फ सा पिघल जाना !
फिर अचानक मुस्कराना तेरा, मेरा ये सोचना
कि तू ही मेरी इबादत है, तू ही मेरी मोहब्बत है,
तू ही मेरा जुनून है, मेरी आँखों ने बेसूद इबादत की है !
तू ना ले इम्तहान मेरी जिन्दगी का !!
फिर तेरा शर्मो-हया के आँचल में,
दिल के जज्बातों, को छुपाना ,
और अचानक घबरा के, ये कह देना,
मुझे तुमसे शिकायत है !
मुझे तुमसे शिकायत है!… मुझे तुमसे शिकायत है!……………….सुनीता दोहरे

{३}… मन का दर्पण..

एक ऐसा दर्पण हो,
जो मन का कुंदन हो
आंसूं हों सौगातें हों,
बस एक तुम्हारी यादें हों.…

तुम हो मेरे सामने,
बस मूक भाषा का इजहार हो
जिसमें सच और झूठ की,
न कोई तकरार हो.…….

तेरी प्रगति के साथ में,
मेरी जिन्दगी की धार हो
कुछ मैं बहूँ कुछ तुम बहो,
धीरे-धीरे जिन्दगी की साँझ हो…….

जिसका ह्रदय पावन नहीं,
मेरे लिए पत्थर वही
तुम साथ हो जग साथ है,
फिर चाहें कोई न साथ हो …..

ये सारा जग मेरा मीत है,
खुशियाँ मेरा संगीत हैं
दुःख मेरे हो जाएँ सारे,
बस तुझे न कोई रंज हो…….

क्या हार है क्या जीत है,
तुमसे जीतना सीखा नहीं
जिस सत्य की मैं भोगिनी,
उस सत्य से तुम दूर हो….सुनीता दोहरे..

अश्कों में भीगी रात…

प्रेम, दर्द की अनुभूति करा देता है
कहीं मिलने की आकांक्षा तो
कहीं विरह का गम देता है……….

वो समझे हैं कि मैं शब्दों से खेलती हूँ
बड़े नादां हैं, वो क्या जाने…
यूँ ही रिस-रिस के रोज मैं
अपने जख्मों को हवा देती .हूँ……

दो लफ्ज तक महफूज
न रह सके दिल में तेरे,
तेरे साथ घ्ररौंदा बनाते
तो भला क्यों बनाते ???????

पहले भीगी ओस में
फिर अश्कों से भीगी रात
छुप-छुप के बरसी रोज
फिर आँगन में मेरे रात.….सुनीता दोहरे....

काश तुम लौट आओ....

बन वियोगिनी मैं बैठी हूँ !
अश्रुओं की धार बनके !
भूल चुकी वो कडुवी रातें !
जग लगे है सूना-सूना मुझको !
अब भी है उम्मीदों की तपिश !
जब ख्वाहिशों का दरिया !
बालों की सफेदी में पिघल जाये !
तुम मुझे आवाज देना !
सारे गुनाह मांफ कर मैं लौट आउंगी…….

जब एहसास हो भूल का तो !
तुम मुझे आवाज देना !
सारे गुनाह मांफ कर मैं लौट आउंगी.….

तेरी मूक सांत्वना की छाया में !
प्रभात की पंखुरियों को संवार लूंगी !
विरह के वो अनमोल पल !
तेरे प्रेम से निखार लूंगी !
सत्य की हो तुमेह जिस दिन पहचान !
तो तुम मुझे आवाज देना !
सारे गुनाह माफ कर में लौट आउंगी……..

है मौन सब कुछ पड़ा !
जलते ह्रदय की तू साधना !
हर दर्द तीखा लग रहा !
पतवार क्या मझधार क्या !
जब गुरुर तेरा घट जाए !
और न ईमान तेरा डगमगाए !
जिन्दगी की जब पहचान हो !
तुम मुझे आवाज देना !
सारे गुनाह मांफ कर मैं लौट आउंगी.….

इन्द्रधनुषी रंग लिए !
भाव सुरभित हृदय के स्पंदन में !
दुर्गम अन्जान राहों पर !
चल पड़े थे गर कभी !
सपनों के भाव से सदभाव से !
तन्हाइयां चुभने लगे !
तो तुम मुझे पुकार लेना !
सारे गुनाह मांफ कर मैं लौट आउंगी…….

जीवन की अनबूझ पहेली !
उलझी मगर सुलझी नहीं !
रिश्तों की गहराई को !
अथाह समुन्दर की बैचेनी को !
पहचान जाओ तो कभी !
तुम मुझे आवाज देना !
सारे गुनाह माफ कर में लौट आउंगी .….. सुनीता दोहरे …

{लोकजंग-ब्यूरो} चीफ उत्तर-प्रदेश
विशेष संवाददाता ”ईएनआई” न्यूज़ एजेंसी

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