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सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट के जरिये हो रही गन्दी राजनीति…

sach ka aaina
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सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स  के जरिये हो रही गन्दी राजनीति…….
Box…….देखा जाये तो सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के जरिये राजनीति के नाम पर राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ता जो कुछ कर रहे है उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि ये हमारे संस्कारों के हमारी परम्पराओं के खिलाफ है.
सच तो ये है कि संवाद के आदान-प्रदान का कारगर हथियार सोशल नेटवर्किंग है.क्योंकि इस पर कोई ख़ास प्रतिबंध नहीं है और ना ही किसी बात का भय है. इस भूमण्डलीयकरण के दौर में सोशल नेटवर्किंग की अपनी एक अलग दुनियां स्थापित हो चुकी है. जहां न तो कोई कायदा है ना कोई क़ानून. इसकी अपनी एक अलग संस्कृति है. पर कष्ट इस बात का है कि इस संस्कृति की राह को एक पढ़ा-लिखा उच्च-वर्ग स्तेमाल करते हुए राजनैतिक रंग में रंगकर अपनी भाषा-शैली की महत्ता को खोता जा रहा है. देश का एक बहुत बड़ा वर्ग
सोशल नेटवर्किंग से जुड़ा है. जो जब चाहे सत्ता का तख्ता पलट सकता है. और इसी को देखते हुए मैं एक ऐसी बात कहना चाह रही हूँ जो शायद मुझे नहीं कहनी चाहिए. पर मैं समझती हूँ कि इस आजाद देश में इतना तो हक है मुझे कि मैं अपने मन में उठे विचारों को आप लोगों तक पहुंचा सकूं. मेरे जहन में ये बात हमेशा खटकती है……..
मैं पिछले कई सालों से देख रही हूँ. मुझे ऐसा लगता है कि सब राजनैतिक पार्टियों ने सोशल-साइटों पर अपने आदमियों को नियुक्त कर रखा है. हर सोशल-साईट पर राजनीति से जुडी कोई भी पोस्ट और हर न्यूज़ चैनल पर राजनीति से जुडी कोई भी न्यूज़ हो उस पर टिप्पड़ी के रूप में भद्दी और गन्दी गालियों का प्रयोग नीचता की हद तक समाज को गन्दा कर रहा है. दूर क्यों जाते है. भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी के समर्थकों को ही ले लीजिये. भाजपा समर्थकों की बात तो कुछ अलग ही निराली है. इन लोगों का जैसे कोई दीन-धर्म ही नहीं है. हिन्दू धर्म के नाम पर सोशल साइटों में किसी भी राजनीतिक पोष्ट पर और किसी भी न्यूज़ चैनल की राजनीतिक न्यूज़ पर जनता के बीच भडकाऊ गन्दी गलियों का प्रयोग करके आम जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करना कहाँ तक उचित है. सीधे-सीधे मुद्दे पर आकर कहूँ तो मोदी को हिन्दुत्व से जोड़कर, हिन्दु-धर्म को मोदी समर्थकों ने अपनी जागीर समझ कर अपने हिसाब से चलाने के लिए सोशल-साइटों पर समर्थन में लिखकर पोस्ट करना शुरू कर दिया है.
क्योंकि २०१४ का चुनाव सर चढ़कर बोलने लगा है. जो इन समर्थकों के विपक्ष में कुछ भी लिख दे या “हिन्दुत्व के आधुनिक अगुवा” पर कोई नकारात्मक टिप्पणी कर दे तो उसे व्यक्तिगत रूप से गन्दी और भद्दी गालियां देकर धर्म विरोधी क़रार दे देते है. क्या यही हमारा समाज है ? क्या यही हमारे संस्कार हैं ? मुझे तो ये लगता है कि हर पार्टी के किराए पर लिए हुए ये आदमी फर्जी एकाउंट बनाकर सोशल-साइटों पर बैठाए जाते हैं. और राजनैतिक न्यूज़ पर गन्दी टिप्पड़ी कर अपनी गन्दी मानसिकता का परिचय देते हैं. और यही भाजपा , कांग्रेस  व अन्य पार्टियों के  कार्यकर्त्ता भी कर रहे हैं.
बहरहाल जो भी हो आम–जन के नजरिये से देखा जाए तो सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से राजनीतिक चालों, अपराध व अश्लीलता का बढ़ता मायाजाल, अपसंस्कृति को खुल्ले आम बढ़ावा दे रहा है.इससे समाज में हजारो तरह की बुराइयां विकसित हो रहीं हैं. सच तो ये है कि अभिव्यक्ति की आजादी के मायने ये नहीं कि आप ट्विटर, गूगल, याहू, यू ट्यूब और फेसबुक जैसी वेबसाईट को लोगों की राजनीतिक, धार्मिक, व्यक्तिगत भावनाओं से खेलते हुए अश्लील टिप्पड़ी और अश्लील पोष्ट करें ? या फिर किसी व्यक्ति विशेष के लिए कोई असवैधानिक पोष्ट या तस्वीरें डालें ?
देखा जाये तो सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर जो कुछ हो रहा है उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि ये हमारे संस्कारों के हमारी परम्पराओं के खिलाफ है. इसलिए केंद्र सरकार को अब भी सचेत हो जाना चाहिए. क्योंकि भ्रष्ट सरकार, भ्रष्ट राजनीति, भ्रष्ट प्रशासन और भ्रष्ट पार्टियों के कार्यकर्ताओं के मंसूबे जो देश की जनता को गुमराह करें वो कभी सफल नहीं हो सकते……

सुनीता दोहरे…..
{लोकजंग-ब्यूरो} चीफ उत्तर-प्रदेश…
विशेष संवाददाता ” ईएनआईन्यूज़ ”

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