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सपा सुप्रीमो मुलायम की बैचेनी बढ़ती जा रही है….

sach ka aaina
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sunitaसपा सुप्रीमो मुलायम की बैचेनी बढ़ती जा रही है….
बॉक्स…. नेताजी खुद ही ‘विपक्ष’ की भूमिका निभा रहे हैं. क्योंकि उत्तर-प्रदेश में कोई विपक्षी दल अभी फिलहाल बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं है. सिर्फ कहने मात्र को मायावती कभी-कभी आरोप लगाकर इतिश्री कर लेती हैं . कांग्रेस और भाजपा देखा जाये तो मौन ही है……
भाजपा की उत्तर प्रदेश ईकाई ने मंगलवार को कहा कि मुलायम सिंह यादव केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनने के सपने देख रहे हैं जो कि मुंगेरीलाल के सपने की तरह ही है.
प्रदेश पार्टी कार्यालय पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए प्रदेश प्रवक्ता सत्यदेव सिंह ने कहा कि जब से उत्तर-प्रदेश में सपा का राज हुआ है तब से सपा की सरकार को सौ में सौ नम्बर देने वाले मुलायम लगातार कई मंचो पर अपने पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते आ रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि मुलायम सिंह यादव कभी नौकरशाही को दोष देते हैं तो कभी पलटकर अपने मंत्रियों की क्षमता पर सवाल खडे़ करते हैं. इस दिशाहीनता के माहौल में उत्तर-प्रदेशके आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण की चर्चा करना हास्यास्पद लगता है.
क्या आपको नहीं लगता कि इस वातावरण में मुलायम सिंह द्वारा २०१४ के चुनावों के बाद तथाकथित तौर पर तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की सोच मुंगेरीलाल के सपने की तरह ही है. उत्तर-प्रदेश की सत्ता को सपा संभाल नहीं पा रही है. इन हालातों को देखते हुए मुलायम सिंह के लिए अब यही उचित होगा कि उत्तर-प्रदेश की जनता के विश्वास का सम्मान करते हुए प्रदेश की जनता को सुशासन देकर रोजगारयुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त और आतंकवाद तथा अपराध के पोषक तत्वों को समाप्त करने का प्रयास करें……….
देखा जाये तो प्रदेश प्रवक्ता सत्यदेव सिंह का कथन कई हद तक सही है क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर-प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्तारूढ़ होने के बाद से ही समाजवादी-पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में केंद्रीय भूमिका पाने के लिए पूरी एड़ी चोटी का जोर लगाने का भरसक प्रयास कर रही है. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव दिल्ली को अपना रजवाड़ा बनाने के लिए अपने युवराज अखिलेश सिंह यादव की सरकार को भी बख्शने को तैयार नहीं दिखते. सपा सुप्रीमो २०१४ के लोकसभा चुनाव में पार्टी के हित में रिजल्ट देखने के लिए बेहद बेचैन हैं और उत्तर-प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत कर दिल्ली का ताज अपने युवराज को भेंट करना चाहते हैं.
अब समझने की बात ये है कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अखिलेश सरकार के मंत्रियों, कार्यकर्ताओं और नेताओं की क्यों क्लास लेते हुए उत्तर-प्रदेश के हर कार्यक्रम में नजर आते हैं ? क्योंकि वो पार्टी को मिले जनाधार को बांधे रखना चाहते हैं.
अब चुनावी इतिहास पर नजर डालकर देखी जाए तो लोकसभा चुनावों में सपा का २००४ का प्रदर्शन अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा था. उस समय केंद्र में भाजपा नेता अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी और सपा ने उत्तर-प्रदेश में भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए लोकसभा की ८० में से ३५ सीटें जीतीं थी और इसके साथ ही कांग्रेस भाजपा को भी एक किनारे कर दिया था.
सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी भी पिछले दिनों ये दावा कर चुके हैं कि कांग्रेस का मजबूत विकल्प होने का दम भरने वाली भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी खुद इस बात को स्वीकार कर चुके है कि देश की राजनीति के जो हालात हैं, उसे देखते हुए लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों का पलड़ा भारी पड़ सकता है . और तो और राजनीतिक प्रेक्षक भी ये मानते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद यदि समीकरण १९९६ जैसे बने तो सपा-सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की भूमिका बहुत अहम रहने वाली है. उत्तर-प्रदेश के चुनावी आंकड़े सपा के पक्ष में जा सकते हैं.
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सपा की प्रदेश कार्यकारिणी बैठक में अपने तेवरों की तल्खी के साथ नौकरशाहों को सुधरने की चेतावनी देते हुए कहा कि ट्रांसफर होने वाले अफसरों की लिस्ट तैयार है. सुधर जाइए अगर एक बार ट्रांसफर हो गया तो रद्द नहीं किया जाएगा. गौरतलब है कि हाल में बड़ी संख्या में प्रांतीय-पुलिस सेवा और प्रांतीय-लोकसेवा के अफसर आईएएस और आईपीएस में पदोन्नत हुए हैं. ऐसे में बड़े पैमाने पर तबादले होने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं. विगत दिनों में मुलायम ने कई बार अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश सिंह यादव की सरकार की खिंचाई की है. पिछले हफ्ते लखनऊ में पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में भी मुलायम ने पार्टी के सीनियर नेताओं को जमकर लताड़ा. सैफई में भी सपा सुप्रीमों ने ये मुद्दा उठाते हुए अपने पुत्र की सरकार राज पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया. कुछ पार्टी नेताओं पर मनमानी करने के आरोप भी लगाए थे और इसी के चलते ऐसा माना जा रहा है कि अखिलेश सिंह ने प्रशासनिक स्तर पर कुछ फेरबदल भी किया…….
मुलायम के इस कदम के चलते आम-जनता की सोच और राजनीतिक क्षेत्रों में दो तरह की राय कायम हो गई है. एक राय ये है कि नेताजी खुद ही ‘विपक्ष’ की भूमिका निभा रहे हैं. क्योंकि उत्तर-प्रदेश में कोई विपक्षी दल अभी फिलहाल बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं है. सिर्फ कहने मात्र को मायावती कभी-कभी आरोप लगाकर इतिश्री कर लेती हैं . कांग्रेस और भाजपा देखा जाये तो मौन ही है. और दूसरी राय है कि मुलायम सिंह ये सोचकर हैरान हैं कि अखिलेश सरकार के इस बीते वक्त में कोई प्रभावी कदम न उठाने के चलते सांप्रदायिक तनाव और अपराध की घटनाओं की बढ़ोत्तरी लगातार हो रही है. अखिलेश सिंह की एक युवा नेता के तौर पर जो इमेज बननी चाहिए थी वह क्यों नहीं बन पा रही है. पुलिस-प्रशासन मनमानी कर रहा है. नौकरशाही हावी है. मुलायम को लगता है कि उनका मिशन २०१४ कमजोर पड़कर गर्त में जा रहा है. अब सबसे मजे की बात तो ये है कि मुलायम ये सोचते हैं कि सपा के नेता आगामी लोकसभा चुनाव २०१४ पर अपना ध्यान केन्द्रित करने की बजाय अपने हितों तक सीमित होकर रह गये हैं. जिसके तहत अब उन्हें एक जूनून सा सवार हुआ है कि अनाधिकृत लोगों की गाड़ियों से रेड लाइट और झंडे उतारे जाएँ . लेकिन हास्यास्पद स्थिति ये है कि उनकी बात अनसुनी कर दी गई. और जो सपा सुप्रीमों ने करने को कहा, उसका ठीक उलटा हो रहा है. सुनने में ऐसा आया है कि उत्तर-प्रदेश में नेता जी खुद हाशिए पर हैं.
एक समय में सुप्रीमों की हर बात पत्थर की लकीर हुआ करती थी लेकिन आज सत्ता के केंद्रबिंदु अखिलेश यादव हैं….
जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा है सपा सुप्रीमो मुलायम की बैचेनी बढ़ती जा रही है क्योंकि २०१४ के चुनाव में ३०१ लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य मानकर चल रहे मुलायम की धड़कने अपने पूरे वेग से दिल्ली से मैनपुरी की दूरी को नापने का माद्दा रखने वाली मुलायम कि ख्वाहिशें पूरे जोर-शोर से अपनी रफ़्तार के साथ तय करने में लगीं हैं….अब देखना ये है कि दिल्ली की गद्दी पर अपने पुत्र को बैठाने का सपना क्या हकीकत में बदलेगा ?
सुनीता दोहरे
{लोकजंग-ब्यूरो} चीफ उत्तर-प्रदेश…

विशेष संवाददाता ” ईएनआईन्यूज़ ”
लखनऊ …..

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