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प्रेम तप कर निखरता है जब आत्मा के तार करते हैं गठबंधन…

sach ka aaina
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प्रेम तप कर निखरता है जब आत्मा के तार करते हैं गठबंधन…
बॉक्स….. किस लिए छोड़ा जाता है धर्म ? प्रेम के लिए ना, तो फिर प्रेम उंचा हुआ और ये सत्य भी है प्रेम एक ऐसा विस्वास है कि जो सब धर्मो से ऊँचा है………
प्रभु हमारे मन की श्रधा है हमारे मन का विस्वास है ईश्वर हमें इस दुनियां में भेजता है दींन दुखियों की सेवा करने के लिए और साथ ही सौगात में एक ऐसा परिवार देता है जिसमें पिता का प्यार, माँ का दुलार, बहिन का विस्वाश, भाई का एक मधुर रिश्ता समाया होता है. ईश्वर हमें अपने जीवन में बालपन की उम्र से सिखाना शरू कराता है. ईश्वर परिवार की उस भट्टी में हमें धीमे-धीमे तपन देकर निर्मल करता है जिसमें इर्ष्या, नफरत, झगड़ा, तेरा-मेरा जैसे सांसारिक स्वभाव पिघल कर मलिन हो जाते हैं. ताकि मनुष्य का स्वभाव इस भट्टी की तपन से निखर कर प्रेमी स्वभाव का बन सके. ईश्वर ने मनुष्य के आत्मिक परिवार को शारीरिक परिवार के सम्बन्धों से इसलिए जोड़ा है जिससे मनुष्य परिवार के जरिये प्रेम से परिपूर्ण आत्मिक स्वभाव में ढलकर देश और दुनिया का कल्याण कर सके. मनुष्य को प्रेम के विपरीत अर्थ घृणा को त्याग कर ह्रदय में प्रेम और विस्वास का वास कराना चाहिए. आज के आधुनिक युग में मनुष्य में न तो प्रेम है और न ही लगन. लेकिन सच तो ये है कि बिना प्रेम और लगन के किसी तरह का साहस भी पैदा नहीं होता. मनुष्य ने अपनी मूर्खता और अज्ञानता के कारण, मुक्ति को बंधन बना लिया और स्वर्ग को नर्क बना लिया. क्योंकि बदलते आधुनिकता के परिवेश में ढलकर मनुष्य एक अन्जानी और संस्कार रहित राह पर चलते-चलते न सत्य को पा पाया और न असत्य को छोड पाया. हम सभ्य मानव से दानव बन गए…….
प्रेम एक दृष्टिकोण है, प्रेम एक चारित्रिक रुझान है जो किसी मनुष्य के साथ-साथ पूरी दुनिया से हमारे संबंधों को अभिव्यक्त करता है. प्रेम केवल एक लक्ष्य और उसके साथ के संबंधों का नाम नहीं है. यदि एक मनुष्य केवल दूसरे एक मनुष्य से प्रेम करता है और उस दूसरे मनुष्य से जुड़े अन्य सभी व्यक्तियों में उसकी रुचि नहीं है, तो उसका प्रेम, प्रेम न होकर उसके अहं का विस्तार मात्र है. प्रेम, इश्क, चाहत, प्यार, मोहब्बत एक ऐसा अनमोल हसीं तोहफा है जिसकि गहराई आप कभी मांप नहीं सकते. किसी बाल्टी में या दरिया में जितना पानी है तो आप ये नहीं कह सकते कि मेरा प्रेम मेरा इश्क इतना ही भरा हुआ है सच तो ये है कि समुन्दर के जल स्तर को तो मांप सकते हैं पर प्रेम और इश्क को नहीं. एक बार जिससे दिल के, मन के और आत्मा के तार जुड़ कर गठबंधन कर लेते हैं फिर उसे अपने प्रेमी को देखने के लिए आँखों की आवश्यकता नहीं पड़ती. क्योंकि प्रेमी तो पूर्ण रूप से ह्रदय में बस चुका होता है. एक ‘प्रेमी’ या ‘प्रेमिका’ होने का अर्थ है ‘प्रेम’ को पा लेना. तो यह बिलकुल वैसी ही बात है, जैसे कोई व्यक्ति लेख लिखना चाहता है और समझे कि उसे केवल एक प्रेरक-विषय की आवश्यकता है, जिसके मिल जाने पर वह स्वत: ही बढ़िया लेख लिख लेगा…… किस लिए छोड़ा जाता है धर्म ? प्रेम के लिए ना, तो फिर प्रेम उंचा हुआ और ये सत्य भी है प्रेम एक ऐसा विस्वास है कि जो सब धर्मो से ऊँचा है………
ज्यादातर मनुष्य ये समझते हैं कि यदि वे केवल अपने ‘प्रेमी’ या ‘प्रेमिका’ से ही प्रेम करते हैं, तो यह उनके प्रेम की गहराई का प्रतीक है. लेकिन इसका सीधा मतलब निकलता है कि वे प्रेम को एक गतिविधि के रूप में, ‘आत्मा की एक शक्ति’ के नजरिये से नहीं देखते…….
अब सत्य और सार्थक नजरिये से देखिये कि प्रेम, प्यार, दुलार, चाहत को लेना है तो देना सीखो, लेकिन दोगे कहाँ से अन्दर से तो खाली हो, कुछ भी संजोकर नहीं रखा है न अपने बुरे वक्त के लिए न किसी की सहायता के लिए. और जब अन्दर से खाली हैं तो किसके आगे पाने के लिए हांथ फैलाओगे, मिलेगा तो तभी जब तुम्हारे पास देने के लिए हो. अगर तुम्हें प्रेम चाहिए तो पहले प्रेम दो, बताओ कि मेरे अन्दर तुम्हारे लिए कितना प्रेम है, खोल दो मन के कपाट को जाने दो उसमें अपने मन के भीतर जिसे आप अपने मन की सल्तनत का स्वामी बनाना चाहते हैं, वो देख ले तुम्हारे मन में कितना प्यार है, वो जब देख लेगा, समझ लेगा व जान लेगा तो मान भी लेगा फिर तुम्हे कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी वो स्वतः ही समझ जायेगा आपके मन के सागर की गहराइयों को…….
अब सवाल ये उठता है कि हमारे पास प्रेम आएगा कहाँ से तो फिर किस रास्ते चलना होगा जो प्यार के फल की प्राप्ति हो. कहीं नहीं जाना होगा प्यार का वृक्ष आपके आँगन में ही लगा है और फलों से लदा है बस जरुरत है आपके नजरिये की, आपकी निगाह की……..
जिस घर में बुजुर्ग दर्द से कराहते हैं उस घर से खुशियाँ हमेसा नाराज रहती हैं जिस घर में महिलाओं के साथ भेदभाव, दुराचार व शोषण हो उस घर से लक्ष्मी सदैव नाराज रहती है जिस घर में बच्चों की परवरिश भगवान के आसरे छोड़ दी जाती है उस घर से भगवान हमेशा नाराज रहते हैं जिस घर की दीवारों पर रक्त व मदिरा की छीटें पड़ी होतीं हैं उस घर की नींव खोखली हो जाती है जिस घर से गुरु रूठा और साधू भूखा जाता है उस घर से भाग्य भी चला जाता है जिस घर का मुखिया आलसी होता है उस घर में दरिद्रता का राज होता है जो अपने पड़ोसी से बैर रखता है वो मुसीबत के वक्त अकेला खड़ा रहता है जो अपने परिजनों के साथ धोखा और प्रेम के साथ घात करता है वो अल्पायु और अपमानित होकर मौत को प्राप्त होता है. ये सारे तत्व हमें निर्धन बनाते हैं लेकिन इन पर विजय प्राप्त करने वाला सदैव धनवान होता है उसे किसी से प्रेम का अनुग्रह करने की जरुरत नहीं पड़ती जो देखता है वो स्वतः ही उसके रंग में रंग जाता है. प्रेम केवल देने के लिए, पाने की इच्छा किये बिना अगर होता है तो एक गहरे प्रेम सागर का निर्माण होता है. तब मनुष्य के अन्दर क्रोध, इर्ष्या, शक, आशंका केवल क्षणिक पल उथल-पुथल कर पाते हैं. और प्रेम का सागर हिलोरें लेकर निरंतर दिलों पर राज करता है…….
सुनीता दोहरे…
लखनऊ …..

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