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मेरे हिस्से की चांदनी ….
पेशानी पर हलकी सी सलवटें !
चेहरे पर साफगोई जैसे विरह में प्रेम की !
बनती-बिगड़ती धूमिल पड़ती ख्वाहिशें !
जिसमें नाम-बदनाम की फ़िक्र न हो !
कोई सरोकार न हो, कोई परवाह न हो !
या कोई और दूसरी चाहत न हो !
जब होता है प्रेम तो सिर्फ प्रेम, वो भी विशुद्ध प्रेम !
प्रेम में मिला दर्द और तनिक पल का साथ !
दुखों ओर अंधेरों में प्रेमी के बिना जीने की !
ख्वाहिश नहीं करता बल्कि प्रेम को सब कुछ अर्पण !
कर देने की तमन्ना और एक उम्मीद, एक चाहत !
एक स्वस्थ दृष्टिकोण में समर्पण की भावना से !
आसक्त और ओत-प्रोत होता है जैसे ……..
रेशमी किरणों के साये तले, मोतियों की कशमश !
ओस की बूंदों में प्रेम के चेहरे की लालिमा !
जैसे गुजारिश कर रही हो कि ठहरो !
चांदनी का आँचल फैला है, चाँद का नूर बिखरा है !
सब्र के जुगनू में उजालों से नहाए बदन हैं !
गुनगुनाती हंसी शाम की एक पहर में !
भावाग्नी के उच्चताप जैसे बिम्बों का !
मचलना, बनना बिगड़ना फिर धरातल पे लाना !
चाँद का जल-जल कर ये बार-बार कहना कि सुनी !
दर्द का दरिया यहाँ किसी अंतहीन सागर में !
विलीन हो जाने के लिए नहीं बहता और
न ही किसी अंतहीन त्रासदी की ओर प्रस्थान करता है !
अपितु एक स्वछंद, गतिशील, उर्जावान,
प्रेम के रूप को परिभाषित करता है
ओर अनेकों संघर्षों के बीच में जीवित !
रहने की ख्वाहिश एक उम्मीद जगाता है
एक तड़फ के साथ बेताबी बरकरार रखता है.
प्रेम गवाह होता है विरह की पराकाष्ठा का,
अकेलेपन का, पहाड़ियों, वादियों, बादलों,
झीलों और सितारों में प्रेम भटकता है
रात ओर दिन के बीच में जल-जल कर
चाँद कैसे अकेला जी लेता है चांदनी के हिस्से में
सुबह होते–होते फिर वही आंसू, दुःख, भावनाएं,
यादें, और खुद का अकेलापन विरह की अग्नी सा
झुलसाता है निराशा में से आशा की किरणें फूटती है !
फिर वही दिन, शाम ढले और चाँद आये….. और चाँद आये…..
रात भर चाँद को चुपके से सराहा हमने !
भोर होते ही चांदनी को हथेली में छुपाया हमने !!
वो पल जो तेरे साथ गुजारा हमने !
भूल कर भी न दिल से निकाला हमने !! … sunita dohare …
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