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देश आपके नेत्रत्व में खुद को लाचार व अपमानित महसूस कर रहा है…..

sach ka aaina
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देश आपके नेत्रत्व में खुद को लाचार व अपमानित महसूस कर रहा है…..

बॉक्स ….. सोनिया जी के तोते नाम “मौन” मोहन जी अब आपने बोलना शुरू किया है तो बोलते ही रहिये भले ही २०१४ के चुनाव में पार्टी को लाभ पहुँचाने के लालच में बोलें……
देखा जाये तो हमारे महान अर्थशात्री व हमारे देश के प्रधानमंत्री “मौन मोहन” ने गत दिनों पाकिस्तानी सेना द्वारा नियन्त्रण रेखा पर दो भारतीय सैनिकों (शहीद हेमराज और शहीद सुधाकर) की बर्बरता पूर्वक की गई हत्या पर एक सप्ताह उपरान्त मौन तोड़ते हुए कहा कि “दो भारतीयों की जघन्य हत्या के बाद पाकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य नहीं रह सकते. इस वीभत्स घटना के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ बड़ी कार्यवाही होनी चाहिए”.
देश में जश्न और बधाई का कारण ये नहीं है कि प्रधानमंत्री जी के इस ब्यान के बाद पाकिस्तान अपने नापाक इरादों पर विराम लगा देगा या भारतीय सरकार अकारण हो रहे देश की संतानों की असमय मृत्यु पर कुछ गंभीर निर्णय लेगी बल्कि देश में उत्साह का माहौल इसलिए है कि हमारे “मौन मोहन” प्रधानमंत्री बोलते भी हैं. पिछले दिनों देश में घटी अनेक घटनाओं और जन-आन्दोलन जैसे बाबा रामदेव का ब्लैक-मनी वापसी पर आधी-रात चोरी छिपे बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं व आम-जनता पर लाठी चार्ज, अन्ना के जन-लोकपाल के मुद्दे पर टीम अन्ना तथा देश को धोखा व देश में बलात्कारियों को फांसी दिए जाने की मांग को लेकर उपजे जन-सैलाब पर हमेशा प्रधानमंत्री जी ने मौन साध लिया . जिसका सीधा सन्देश आम-जनता के सामने ये गया है कि प्रधानमंत्री जी की लगाम की भांति गला भी मैडम सोनिया गाँधी के पंजे में है
परन्तु सैनिकों की हत्या के मुद्दे पर प्रधानमंत्री जी के इस अर्थविहीन व बेतुके ब्यान ने देश के लोगों में जबरदस्त जोश भर दिया है लोग खुश हैं कि “सोनिया मैडम का ये तोता बोलता भी है”
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्रधानमंत्री बोलते ही नहीं हैं हमने अनेक बार इस तोते को उन अवसरों पर बोलते हुए देखा है जब महाभ्रष्ट कांग्रेसी किये गये घोटालों की आंच में घिरते नजर आते हैं. तब ये तोता अपने पर फुलाकर व चौंच तानकर मैडम के प्यादों को बचाने की मुद्रा में दिखाई देता है और जोर-जोर से बोलता है और मामले के साथ-साथ खुद भी शांत होकर बैठ जाता है.
परन्तु भारत माता के बेटों की दरिंदता के साथ की गई हत्या पर अगर प्रधानमंत्री जी के ब्यान का गंभीरता पूर्वक आंकलन किया जाये तो ये ब्यान अर्थविहीन ब बेतुका नजर आता है. प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि “दो भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद पकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य नहीं रह सकते……”
आखिर प्रधानमंत्री जी स्पष्ट ये कहने से क्यों हिचकिचा रहे हैं कि हमारे पकिस्तान के साथ रिश्ते सामान्य नहीं हैं. जिस देश का जांबाज जवान हर वक्त अपने सर को हथेली पर लिए तैयार खड़ा हो वहां के प्रधानमंत्री का इस तरह ब्यान देना यकीनन सेना की ताकत, हौसलों व देशवाशियों के विश्वास को कमजोर करता है. प्रधानमंत्री जी को देश को बताना होगा कि उन्हें सरकार की इच्छाशक्ति या सेना की ताकत, किस पर भरोसा नहीं है.
प्रधानमंत्री ने अपने सन्देश में आगे कहा है कि “इस वीभत्स घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए” देश भ्रमित है कि आखिर प्रधानमंत्री जी किन लोगों पर कार्यवाही की बात कर रहे हैं. ये कोई उत्तेजित लोगों द्वारा लिए गये निर्णय का नतीजा नहीं बल्कि हमारे पडोसी देश की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. भारतीय सैनिकों की हत्या किन्ही लोगों ने नहीं की है. हम भली भांति जानते हैं कि इस अमानवीय कृत्य को पाकिस्तान सरकार की किसी गुप्त योजना के आधार पर वहां की सेना द्वारा की गई है. हमारी सेना में कुब्बत है हम पाक की सेना को धूल चटा सकते हैं. प्रधानमंत्री जी आप सीधे पाकिस्तानी सरकार को लताड़े, दोहरे शब्दों के बयानों के अर्थ अब आम-जनता भी भली-भांति समझने लगी है. आप कहते हैं कि कार्यवाही होनी चाहिए. क्या आप ये बता रहे हैं या पूछ रहे हैं ? देश का गुस्सा उबाल पर है, देश आपके नेत्रत्व में खुद को लाचार व अपमानित महसूस कर रहा है. आप प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे होने के बावजूद भी कहते हैं कि कार्यवाही होनी चाहिए जबकि आप सीधे कार्यवाही का हुक्म जारी कर सकते हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ आपने हमेशा की तरह इस बार भी पहले तो इन्तजार किया कि जलती शहीदों की चिताओं की आंच के साथ-साथ लोगों के गुस्से की आंच को भी ठंडा होने का और फिर मंजे हुए राजनीतिग की भांति ब्यान-बाजी कर घड़ियाली आंसू बहाने का काम किया है देश के जवानों की बर्बर हत्या से आहत, आक्रोशित और सरकार की पंगु नीति से खुद को लाचार व अपमानित महसूस कर रहे देशवासियों को दिलासा देने के नाम पर मायावी ब्यान देकर सरकार के मुखिया ने जनता के जख्मों पर नमक लगाने का काम किया है.
देश के नाम पर कुर्बानी देने वाले परिवार का ढोल पीटने वाले देश के राजनैतिक रूप से सबसे बड़े गांधी परिवार द्वारा इस घटना को इतने हल्केपन से लेना आम-जनता के विश्वास को करारी चोट का एहसास कराता है भले ही कांग्रेसी कार्यकर्ता पार्टी अनुशासन के चलते कुछ न बोलें लेकिन देश प्रेम के वशीभूत वह स्वयं को शर्मिंदा व ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री जी के ब्यान से पहले हमारे देश के वायु सेनाअध्यक्ष व थल सेनाअध्यक्ष का साथ-साथ आया पकिस्तान के खिलाफ तेवर भरा ब्यान देश में प्रधानमंत्री जी के अस्तित्व पर प्रश्नचिंह लगा देता है.
प्रधानमंत्री जी का ये ब्यान किसी कार्यवाही का सूचक नहीं बल्कि विपक्ष के बढ़ते दवाब में व मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से २०१४ के होने वाले चुनाव में नुक्सान से आशंकित तथा यूपीए घटक दलों की नाराजगी का नतीजा है सहयोगी दल सरकार को भले ही समर्थन दे रहे हों लेकिन प्रधानमंत्री जी की मौन नीति से अपने दल की होने वाली फजीहत से खौफजदा हैं. लेकिन कांग्रेस गाँधी परिवार के नाम पर मिलने वाले जन-समर्थन के मद में चूर धड़ल्ले से जन विरोधी फैसले लेकर अपने पैरों पर लगातार प्रहार कर रही है. परन्तु छोटे सहयोगी दलों को तो केवल क्षेत्रिय मुद्दों पर जनता की सहानुभूति का ही आसरा है इन हालातों में छोटे सहयोगी दलों का आँखे तरेरना सही है. सरकार ने पकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए १५ जनवरी से लागू होने वाली वरिष्ठ नागरिकों के लिए बीजा आन अराइवल (आगमन पर वीजा) की व्यवस्था को टाल दिया है और नौ हाकी खिलाड़ी पाकिस्तानियों को वापस स्वदेश भेज दिया है. १५ जनवरी “सेना दिवस” के अवसर पर सेना अध्यक्ष जनरल विक्रम सिंह के घर दावत पर पंहुचे प्रधानमंत्री जी ने दिए गए उपरोक्त निर्णय को उचित ठहराया लेकिन गृह सचिव आर के सिंह का वीजा आन अराइवल व्यवस्था को ठन्डे बस्ते में डालने के फैसले को कुछ तकनीकी कारणों से टाले जाने का ब्यान सरकार की पारदर्शिता, जवाबदेही व कार्यप्रणाली को शक के घेरे में लाता है.
एक तरफ तो देश टकटकी लगाये अपने अपमान के बदले की राह तक रहा है वहीँ दूसरी तरफ एक सप्ताह बाद प्रधानमंत्री जी का राष्ट्रपति जी को सीमा हालातों पर जानकारी देना भी सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति गंभीरता को स्पष्ट प्रदर्शित करता है. आम आदमी तो सुबह का अखबार पढ़कर राष्ट्र-प्रेम में सड़कों पर उतर आता है लेकिन सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति जी को प्रधानमंत्री जी जाकर देश के हालात बताते हैं तभी संवैधानिक कार्यवाही पूर्ण मानी जाती है आम आदमी की नजर में ये दुर्भाग्य पूर्ण व बदलाव का विषय है.
पिछले दिन सरकार के ढुलमुल नीति के कारण ताकत वर होते जन-आन्दोलन का प्रभाव कहीं भारतीय सेना की सीमा में प्रवेश न कर जाये यदि ऐसा होता है तो पकिस्तान का नाम केवल किताबों व अखबार की रद्दी तक ही सिमट कर रह जायेगा. सरकार को समझना होगा कि सैनिकों की हत्या से देश की जनता व सेना में बदलाव की भावना बलबंत होती नजर आ रही है जो लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए कतई उचित नहीं होगा.
प्रधानमंत्री जी अब सिर्फ आपको २०१४ की उल्टी गिनती गिननी चाहिए और अब आपने बोलना शुरू किया है तो बोलते ही रहिये भले ही २०१४ के चुनाव में पार्टी को लाभ पहुँचाने के लालच में बोलें……
सुनीता दोहरे….
लखनऊ …

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